रहस्यमय ही नहीं, रोमांचकारी भी थी वास्को डी गामा की भारत खोज यात्रा

कोलंबस ने 3 अगस्त, 1492 को स्पेन से अपनी यात्रा शुरू की। 2 महीने से अधिक की यात्रा के बाद, उसके जहाजों ने जमीन को छुआ और कोलंबस को लगा कि वह भारत पहुंच गया है।

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वास्को डी गामा (Vasco da Gama) एक ऐसा नाम है जिसे भारत (India) की खोज करने का श्रेय दिया जाता है। इस खोज के पीछे उनका मकसद पूरी तरह से व्यावसायिक (Commercial) था। अपनी लंबी यात्रा के दौरान वह पहली बार 20 मई 1498 को भारत के दक्षिण में कालीकट पहुंचे। यह खोज उनके लिए वाकई बहुत बड़ी थी। इसका कारण यह था कि उसे अरब जगत का वह रहस्य पता चल गया था, जिसे वह अब तक यूरोपीय देशों (European Countries) से बिना बताए भारी मात्रा में धन लेता रहा था।

दरअसल, यूरोपीय देश मसाले और चाय अरब जगत के रास्ते खरीदते थे। ये सब उन्हें भारत से मिलता था। अरब जगत ने कभी भी यूरोपीय देशों को यह रहस्य उजागर नहीं करने दिया कि वे ये सामान कहां से लाते हैं। वहीं, यूरोपीय देश लगातार उस देश के बारे में जानना चाहते थे जहां से ये सब आता है। इसी दुविधा के बीच इटली के क्रिस्टोफर कोलंबस ने अपनी लंबी यात्रा शुरू की। उनका उद्देश्य भारत की खोज करना था। लेकिन अटलांटिक महासागर में आकर वह भटक गया और अमेरिका की ओर चला गया। जब वह अमेरिका के तट पर पहुंचे तो उन्हें लगा कि वह भारत की खोज करने में सफल हो गए हैं, लेकिन जल्द ही उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ।

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भारत की खोज करते हुए वास्को सबसे पहले अफ्रीका पहुंचे
वास्को डी गामा की यात्रा कोलंबस की यात्रा के लगभग पांच साल बाद शुरू हुई। उन्होंने 1497 में एक विशाल नाव और 200 से अधिक नाविकों के साथ यह यात्रा शुरू की थी। उसके साथ चार और जहाज थे। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वह एक अच्छे कप्तान थे। भारत की खोज करते हुए वास्को सबसे पहले अफ्रीका पहुंचे। वहां उन्हें एहसास हुआ कि यह वह जगह नहीं है जिसे उन्हें खोजना था। उसे अभी भी बहुत लंबा रास्ता तय करना था। यह सोचकर वह केप ऑफ गुड होप से हिंद महासागर में प्रवेश कर गया। लेकिन इस लंबी और थका देने वाली यात्रा के दौरान उनके कई साथी बीमार पड़ गए और उनके खाने-पीने का सामान भी खत्म होने लगा। इसे देखते हुए उन्होंने मोजाम्बिक में रहने का फैसला किया। उन्होंने वहां के सुल्तान को कई बहुमूल्य उपहार दिये और बदले में भारत और रास्ते के बारे में जानकारी भी प्राप्त की। यहां से उन्होंने अपनी जरूरत के हिसाब से खाने-पीने का सामान भी खरीदा।

पूरी यात्रा में उनके साथ केवल 55 नाविक ही जीवित लौटे
आखिरकार, एक लंबी यात्रा के बाद, 20 मई 1498 को वास्को डी गामा ने भारत के कालीकट की भूमि को छुआ। यही वह जगह थी जिसकी उसे तलाश थी। यहां वह सब कुछ था जो यूरोप ने खरीदा था। यहां उनकी मुलाकात कालीकट के राजा से हुई और उन्हें व्यापार के लिए राजी किया। कालीकट में तीन महीने बिताने के बाद वह पुर्तगाल चले गये। इस पूरी यात्रा में केवल 55 नाविक ही उनके साथ जीवित लौट सके। 1499 में जब वे लिस्बन पहुंचे, तब तक उनकी भारत की खोज की खबर हर जगह फैलने लगी थी। इसके बाद 1502 में पुर्तगाल के राजा ने वास्को डी गामा को नौसेना के साथ भारत भेजा।

24 मई 1524 को उनकी मृत्यु
इस बार उसका लक्ष्य कालीकट के आसपास के क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित करना था। उसने कालीकट पर कई बड़े हमले किये, जिसके बाद राजा को संधि करने के लिए मजबूर होना पड़ा। यह वास्को डी गामा की बहुत बड़ी जीत थी। इस जीत के बाद वह 1502 में पुर्तगाल वापस चले गए। 1522 में वह दोबारा भारत आए। यहां कुछ समय रहने के बाद 1524 में उनका स्वास्थ्य खराब हो गया। यहीं 24 मई 1524 को उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें कोच्चि में ही दफनाया गया। 1538 में उनकी कब्र खोदी गई और उनके अवशेषों को पुर्तगाल ले जाया गया।

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