दुनिया के सामने आएगी 1857 के भूले-बिसरे क्रांतिकारियों की गाथा, इतिहासकारों ने उठाया यह बीड़ा

1857 की क्रांति को अंग्रेजों और वामपंथी इतिहासकारों ने केवल गदर, विद्रोह कहकर इसका महत्व कम करने का प्रयास किया। इस क्रांति को दबाने के लिए अंग्रेजों ने अमानुषिक अत्याचार किए।

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1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अपना सर्वस्व होम करने वाले भूले-बिसरे क्रांतिकारियों की गाथा को दुनिया के सामने लाया जाएगा। मेरठ के इतिहासकारों ने इसका बीड़ा उठाया है। इसके साथ ही अंग्रेजों द्वारा बागी घोषित किए गए गांवों को क्रांति गांव घोषित कराने के लिए भी प्रयास तेज होंगे।

महत्व कम करने का प्रयास
1857 की क्रांति को अंग्रेजों और वामपंथी इतिहासकारों ने केवल गदर, विद्रोह कहकर इसका महत्व कम करने का प्रयास किया। इस क्रांति को दबाने के लिए अंग्रेजों ने अमानुषिक अत्याचार किए। जबकि इस क्रांति में सामान्य वर्ग से लेकर जमींदार और राजाओं तक ने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजाया। सर्वप्रथम वीर सावरकर ने इसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहकर पुकारा। वामपंथी इतिहासकारों का झूठ सामने आने से 1857 की क्रांति के अज्ञात-अल्पज्ञात, भूले-बिसरे क्रांतिकारियों की गाथा सामने आने लगी है।

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क्रांति की शुरुआत
जाने-माने इतिहासकार और इतिहास संकलन समिति के क्षेत्र संगठन मंत्री प्रो. विघ्नेश त्यागी और कई इतिहासकारों ने इसका बीड़ा उठाया है। उनके प्रयासों से ही अल्पज्ञात क्रांतिकारियों की वीरता दुनिया के सामने आ रही है। इसका बड़ा उदाहरण बलिदानी धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व में क्रांति की शुरुआत होने का सच सामने आया। इसके बाद से ही धन सिंह कोतवाल का महिमामंडन शुरू हुआ और उन्हें अपेक्षित सम्मान मिलने लगा। खुद 10 मई को मेरठ आए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने धन सिंह कोतवाल की प्रतिमा पर माल्यार्पण करके नमन किया था।

सभी जिलों के किसान शामिल
पश्चिम उप्र के गांवों के किसानों ने लिया क्रांति में भागः मेरठ में क्रांति की शुरुआत के बाद अंग्रेज इधर-उधर भागने लगे तो पश्चिम उप्र के गांवों के किसानों ने उन्हें पकड़ कर मार दिया। इसमें मेरठ, बागपत, गाजियाबाद समेत सभी जिलों के किसान शामिल थे। क्रांति के विफल होने के बाद मेरठ के भामौरी गांव में क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया गया। इसी तरह से बागपत के बसौद गांव में भी अंग्रेजों ने बहुत अत्याचार किए। गाजियाबाद के पांच गांवों को बागी घोषित करके उन्हें अंग्रेजों ने जला दिया।

मेरठ से दिल्ली तक निकाली थी पदयात्रा
चौधरी चरण सिंह विवि की सांस्कृतिक-साहित्यिक परिषद के बैनर तले 1857 की क्रांति के उपलब्ध में कई दिन तक कार्यक्रम आयोजित हुए। इसमें अज्ञात-अल्पज्ञात क्रांतिकारियों के बारे में इतिहासकारों ने अपने शोध पत्र भी प्रस्तुत किए। 1857 की क्रांति की की 165वीं वर्षगांठ पर रविवार को मेरठ से दिल्ली के लाल किले तक पदयात्रा निकाली गई। इसमें इतिहासकार, प्रोफेसर, शोधार्थी शामिल रहे। सात मई को मेरठ से चलकर यह यात्रा 11 मई को दिल्ली पहुंची।

गांवों को क्रांति गांव घोषित
एमएम कॉलेज मोदीनगर के इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ. केके शर्मा बताते हैं कि क्रांति के विफल होने के बाद गांवों में लोगों पर अंग्रेजों ने बड़े अत्याचार किए। इन गांवों को क्रांति गांव घोषित कराने की मुहिम शुरू की गई है। सभी जिलों के गांवों की सूची बनाकर प्रदेश सरकार को भेजी जाएगी।

नई पीढ़ी को बताएंगे क्रांति गाथा
प्रो. विघ्नेश त्यागी ने बताया कि प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष में जन सामान्य की भागीदारी और संघर्ष में किए गए योगदान को नई पीढ़ी के सामने लाने के प्रयास जारी है। अंग्रेज इतिहासकारों एवं अंग्रेजों के पिट्ठू भारतीय इतिहासकारों ने एक लंबे कालखंड तक विश्व की सबसे बड़ी महा क्रांति को क्रांति के रूप में जनसामान्य के सामने आने ही नहीं दिया, जबकि वास्तव में देश के जन सामान्य वर्ग व सभी धर्म के लोगों ने इसमें बढ़-चढ़कर भागीदारी की थी। वास्तव में यह पूर्णरूपेण महाक्रांति थी, जिसने ब्रिटिश साम्राज्यवाद को हिला कर रख दिया था।

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