सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस अनिरुद्ध बोस की अध्यक्षता वाली बेंच ने बॉम्बे उच्च न्यायालय का नाम बदलकर ‘महाराष्ट्र उच्च न्यायालय’ करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस मामले पर फैसला संसद को करना है। कोर्ट संसदीय प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। इस पर याचिकाकर्ता ने संसद के समक्ष इस मांग को रखने की अनुमति देने की मांग की जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने नामंजूर कर दिया।
यह याचिका मुंबई के श्रम न्यायालय के एक पूर्व जज वीपी पाटिल ने दायर की थी। वीपी पाटिल ने 1974 में महाराष्ट्र में न्यायपालिका में अपनी सेवा की शुरुआत की थी। उन्होंने वर्ष 2000 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी। पाटिल ने अपनी याचिका में कहा था कि महाराष्ट्र शब्द महाराष्ट्रियों के जीवन की एक अलग पहचान है। इस पहचान को उच्च न्यायालय के नाम के साथ भी जोड़ा जाना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 19, 21 एवं 29 के तहत ये संस्कृति की अभिव्यक्ति और विरासत की रक्षा के अधिकार के तहत आता है।
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याचिका में कहा गया था कि राज्य के नाम के साथ उच्च न्यायालय का नाम जोड़ा जाना महाराष्ट्र और वहां की जनता के हित में है। द उच्च न्यायालय (अल्टरनेशन ऑफ नेम्स) बिल, 2016 को संसद में देश के विभिन्न उच्च न्यायालय के नामों को बदलने के लिए लाया गया था। इस बिल में उच्च न्यायालय ऑफ जुडिकेचर एट बॉम्बे की जगह उच्च न्यायालय ऑफ जुडिकेचर एट मुंबई के अलावा कलकत्ता उच्च न्यायालय को कोलकाता और मद्रास हाई कोर्ट को चेन्नई उच्च न्यायालय करने का प्रस्ताव है। ये बिल इसलिए पारित नहीं हो सका क्योंकि इस पर सहमति नहीं बन सकी और इसकी समय सीमा खत्म हो गई।
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