बाबासाहेब पुरंदरे के हाथों ‘सावरकर विस्मृतिचे पडसाद’ का विमोचन

स्वातंत्र्यवीर सावरकर के जीवन पर दो ग्रंथ अंग्रेजी में प्रसिद्ध लेखक विक्रम संपत द्वारा लिखा गया है। जिसके प्रथम खण्ड का मराठी में अनुवाद अब लोगों के अध्ययन और पठन के लिए प्रस्तुत है।

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छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन चरित्र देश-विदेश तक ले जानेवाले बाबासाहेब पुरंदरे के हाथों ‘सावरकर विस्मृतिचे पडसाद’ नामक मराठी ग्रंथ का विमोचन संपन्न हुआ। इस ग्रंथ का मूल अंग्रेजी में ‘सावरकर: इकोस फ्रॉम ए फॉरगॉटन पास्ट’ नाम से है जिसका भाषांतर स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के कार्याध्यक्ष रणजीत सावरकर और कोषाध्यक्ष मंजिरी मराठे द्वारा किया गया है।

स्वातंत्र्यवीर सावरकर छत्रपति शिवाजी महाराज को अपना देव मानते थे। उनके लिए उन्होंने आरती और ग्रंथ की रचनाएं की। ऐसे क्रांतिकारियों के अग्रणी स्वातंत्र्यवीर सावरकर के जीवन को उल्लेखित करते ग्रंथ का विमोचन बाबासाहेब पुरंदरे जैसे अलौकिक प्रतिभा के धनी के हाथों होना बड़ी बात है। स्वातंत्र्यवीर सावरकर के लिए महाराज का जीवन मार्गदर्शक और आदर्श था, तो महाराज के जीवनचरित्र को जन-जन तक पहुंचाने के लिए बाबासाहेब पुरंदरे ने अपना पूरा जीवन अर्पण कर दिया। इस तारतम्य को सार्थक करने का प्रयास है ‘सावरकर विस्मृतिचे पडसाद’ का विमोचन।

आयु का शतकोत्सव मना रहे बाबासाहेब पुरंद शिवचरित्र को जन-जन तक पहुंचाने के लिए प्रयत्नशील रहे, इसके लिए उन्हें ‘शाहीर’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। उन्हें इसके लिए पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आयु के शतकोत्सव में प्रवेश करनेवाले बाबासाहेब पुरंदरे से भेंट करने के उद्देश्य से स्वातंत्र्यवीर सावरकर के पौत्र रणजीत सावरकर और मंजिरी मराठे ने भेंट की। स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक की ओर से उन्हें शुभकामनाएं दी गई।

‘सावरकर विस्मृतिचे पडसाद’ स्वातंत्र्यवीर सावरकर के जीवन के प्रथम कालखण्ड यानि वीर सावरकर के बाल्यकाल से रत्नागिरी पहुंचने तक के जीवन को चित्रित करता है।

शिवचरित्र का उदय
शिवशाहीर बाबासाहेब पुरंदरे बताते हैं, एक बार केसरी वाडा में स्वातंत्र्यवीर सावरकर आए हुए थे। 12-13 वर्ष की आयु रही होगी, सावरकर कैसे भाषण देते हैं, इसकी नकल बाबा ने सावरकर के समक्ष किया। सावरकर ने शाबाशी दी और अपने पास बुलाया। वे बोले, तुमने अच्छी नकल की, परंतु तू जीवन भर ऐसे ही नकल करते रहेगा क्या? अपना भी तो कुछ कर। यह शब्द बाबा के मन में बैठ गया और तभी से उन्होंने नकल करना छोड़ दिया। अपने पास कथनशैली है, इसका भान बाबा को हुआ और वहीं से शिव चरित्र का जन्म हुआ।

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