Mathura: संत मीराबाई की जयंती संस्कृति और परंपरा का उत्सव – मोदी

यह कहते हुए कि “भारत युगों से नारी शक्ति के प्रति समर्पित रहा है", प्रधानमंत्री ने कहा कि यह ब्रजवासी ही हैं जिन्होंने इस तथ्य को अन्य लोगों की तुलना में अधिक स्वीकार किया है।

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Mathura: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) ने 23 नवंबर को उत्तर प्रदेश के मथुरा में संत मीराबाई (Saint Mirabai) की 525वीं जयंती मनाने के लिए आयोजित कार्यक्रम ‘संत मीराबाई जन्मोत्सव’ में भाग लिया। प्रधानमंत्री मोदी ने संत मीरा बाई के सम्मान में एक स्मारक टिकट और सिक्का जारी किया। प्रधानमंत्री ने एक प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया और एक सांस्कृतिक कार्यक्रम देखा। यह अवसर संत मीराबाई की स्मृति में साल भर चलने वाले अनगिनत कार्यक्रमों की शुरुआत का प्रतीक है।

मथुरा के कन्‍हैया गुजरात आने पर द्वारकाधीश बन गए
गुजरात के साथ भगवान कृष्ण और मीराबाई के संबंधों पर प्रकाश डालते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि यह उनकी मथुरा यात्रा को और भी विशेष बनाता है। उन्होंने जोर देकर कहा, “मथुरा के कन्‍हैया गुजरात आने के बाद द्वारकाधीश बन गए”, संत मीराबाई जी, जो राजस्थान से थीं और मथुरा के गलियारों को प्यार और स्नेह से भर देती थीं, उन्‍होंने अपने अंतिम दिन गुजरात के द्वारका में बिताए थे। उन्होंने जोर देकर कहा कि गुजरात के लोगों को जब उत्तर प्रदेश में फैले ब्रज और राजस्थान में जाने का अवसर मिलता है तो वे इसे द्वारकाधीश का आशीर्वाद मानते हैं। मोदी ने यह भी कहा कि वह 2014 में वाराणसी से सांसद बनने के बाद से वह उत्तर प्रदेश का हिस्सा बन गए हैं।

संत मीराबाई की 525वीं जयंती संस्कृति और परंपरा का उत्सव
प्रधानमंत्री ने कहा कि संत मीराबाई की 525वीं जयंती (birth anniversary) केवल एक जयंती नहीं है बल्कि “भारत में प्रेम की संपूर्ण संस्कृति और परंपरा का उत्सव है।” नर और नारायण, जीव और शिव, भक्त और भगवान को एक मानने वाली सोच का उत्सव।” प्रधानमंत्री ने याद दिलाया कि मीराबाई बलिदान और वीरता की भूमि, राजस्थान से आई थीं। उन्होंने यह भी बताया कि 84 ‘कोस’ का ब्रज मंडल उत्तर प्रदेश और राजस्थान दोनों का हिस्सा है। उन्होंने कहा, “मीराबाई ने भारत की चेतना को भक्ति और अध्यात्म से पोषित किया। उनकी स्मृति में आयोजित किया गया यह कार्यक्रम हमें भारत की भक्ति परंपरा के साथ-साथ भारत की वीरता और बलिदान की याद दिलाता है क्योंकि राजस्थान के लोग भारत की संस्कृति एवं चेतना की रक्षा करते हुए एक दीवार की तरह अडिग रहे।”

भारत युगों से नारी शक्ति के प्रति समर्पित रहा है
यह कहते हुए कि “भारत युगों से नारी शक्ति के प्रति समर्पित रहा है”, प्रधानमंत्री ने कहा कि यह ब्रजवासी ही हैं जिन्होंने इस तथ्य को अन्य लोगों की तुलना में अधिक स्वीकार किया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि कन्हैया की भूमि में, हर किसी के स्वागत, संबोधन और अभिनंदन की शुरुआत ‘राधे राधे’ से होती है। मोदी ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि, “कृष्ण का नाम तभी संपूर्ण होता है जब उसके आगे राधा जुड़ जाए।” उन्होंने राष्ट्र-निर्माण और समाज को आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त करने में महिलाओं के योगदान का श्रेय इन आदर्शों को दिया। इस तथ्य को रेखांकित करते हुए कि मीराबाई एक आदर्श उदाहरण हैं, प्रधानमंत्री ने उनका एक दोहा सुनाया और उसके अंतर्निहित संदेश को समझाया कि आकाश और पृथ्वी के बीच जो कुछ भी आता है वह अंततः समाप्त हो जाएगा।

महान समाज सुधारक भी थीं मीराबाई
प्रधानमंत्री ने कहा कि मीराबाई ने उस कठिन समय में यह दिखाया कि एक महिला की आंतरिक शक्ति पूरी दुनिया का मार्गदर्शन करने में सक्षम है। संत रविदास उनके गुरु थे। संत मीराबाई एक महान समाज सुधारक भी थीं। उन्होंने कहा कि यहां छंद आज भी हमें रास्ता दिखाते हैं। वह हमें रूढ़ियों से बंधे बिना अपने मूल्यों से जुड़े रहना सिखाती हैं।

भक्ति काल के संतों ने देश को एकजुट किया
प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर भारत की अटूट भावना को उजागर किया और कहा कि जब भी भारत की चेतना पर हमला हुआ है या वे कमजोर हुईं हैं, देश के किसी हिस्से से एक जागृत ऊर्जा स्रोत हमेशा नेतृत्व करने के लिए उभरा है। उन्होंने कहा कि कुछ दिग्गज योद्धा बने तो कुछ संत। भक्ति काल के संतों अर्थात् दक्षिण भारत के अलावर एवं नयनार संतों तथा आचार्य रामानुजाचार्य, उत्तर भारत के तुसलीदास, कबीरदास, रविदास तथा सूरदास, पंजाब के गुरु नानक देव, पूर्व में बंगाल के चैतन्य महाप्रभु, गुजरात के नरसिंह मेहता और पश्चिम में महाराष्ट्र के तुकाराम एवं नामदेव का उदाहरण देते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने त्याग का मार्ग अपनाया और भारत को भी गढ़ा। प्रधानमंत्री ने कहा कि भले ही उनकी भाषाएं एवं संस्कृतियां एक-दूसरे से भिन्न थीं, लेकिन उनका संदेश एक ही था और उन्होंने अपनी भक्ति एवं ज्ञान से पूरे देश को एकजुट किया।

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