क्या आप मुंबई लोकल में यात्रा करते हैं? अगर हां, तो ये खबर आपके लिए है

मुंबई लोकल की सुखद यात्रा को दुखद बनाने वालों में कई खतरनाक प्रजाति के लोग होते हैं। वे अपनी थोड़ी-सी सुविधा या सनक के कारण दूसरे यात्रियों के लिए बड़ी मुश्किल पैदा कर देते हैं।

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मुंबई की लोकल ट्रेन अपनी उपयोगिता और विशेषता के लिए देश-दुनिया में प्रसिद्ध है। मुंबईकरों की तो ये जीवन रेखा यानी लाइफ लाइन ही है। साथ ही इसे मुंबई की धड़कन भी कहते हैं। समझा जा सकता है कि मुंबईकरों के लिए यह कितना उपयोगी और महत्वपूर्ण है।

इसकी उपयोगिता को समझने के लिए कुछ और बातें जानने-समझने की कोशिश करते हैं। मुंबई की तीनों लाइनों पश्चिम, मध्य और हार्बर को मिला दें तो हर दिन करीब 80 लाख लोग इनमें यात्रा करते हैं। मुंबई और इसके उपनगरों की आबादी करीब 1.40 लाख है। समझना मुश्किल नहीं है कि आबादी के करीब 50 प्रतिशत लोग इनमें हर दिन किसी न किसी कारण से यात्रा करते हैं।

इसलिए लोकल है मुंबईकरों की पहली पसंद
इतनी बड़ी संख्या में लोगों के मुंबई लोकल में यात्रा करने के कई कारण हैं। पहला इससे समय की बचत होती है और दूसरा पैसे भी काफी कम लगते हैं और अगर तीसरा भी मान लें तो इसमें सफर करना काफी सुविधाजनक तथा स्वास्थ्यकारक है। स्वास्थ्यकारक किस तरह, यह सवाल आपके मन में उठ सकता है। तो इस बात को ऐसे समझिए, कि सड़क मार्ग से यात्रा करने में जहां प्रदूषण काफी अधिक रहता है, वहीं देर तक बैठने और सड़क पर वाहन के हिचकोले खाने से स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ने की आशंका बनी रहती है। यही कारण है कि मुंबई में जो लोग हर दिन दूर तक बाइक से यात्रा करते हैं, अक्सर उनके कमर में दर्द की शिकायत रहती है। इसके साथ ही एक और बात ये भी है कि ट्रेन से दुर्घटना होने का भी खतरा न के बराबर रहता है, जबकि सड़क मार्ग से निजी या सार्वजनिक वाहन से यात्रा करने पर दुर्घटना होने की आशंका हमेशा बनी रहती है। हालांकि सुबह-शाम पिक ऑवर में लोकल की यात्रा काफी कष्टकर होती है, लेकिन सुबह 11 बजे से शाम 4-5 बजे तक इसका सफर काफी सुहाना होता है।

ऐसे लोग बढ़ाते हैं यात्रियों की परेशानी
फिलहाल हम इस मामले में अधिक बारीकी से चर्चा नहीं कर असली मुद्दे पर आते हैं। मुंबई लोकल के महत्व और उपयोगिता को लेकर शायद ही किसी के मन में कोई शंका हो लेकिन कुछ यात्रियों के व्यवहार तथा नासमझी के कारण  अन्य यात्रियों की परेशानी काफी बढ़ जाती है। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि ऐसे लोग कोई पहली बार मुंबई लोकल में यात्रा कर रहे होते हैं, बल्कि वे वर्षों से इसमें सफर करते हैं और अपनी थोड़ी-सी सुविधा या सनक के कारण दूसरे यात्रियों के लिए बड़ी मुश्किल पैदा कर देते हैं।

गेट पर लटककर यात्रा करने की सनक
बहुत-से लोगों ने आदत बना रखी है कि वे गेट पर लटक कर या खड़े होकर ही यात्रा करेंगे। चाहे ट्रेन पूरी तरह खाली हो या भरी हुई। यही नहीं, इनमें से कुछ लोग तो स्टेशन आने पर उतरने- चढ़ने वाले यात्रियों को भी ठीक से जगह नहीं देते। इस कारण यात्रियों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ता है। कई बार तो ऐसे लोगों के कारण यात्री ट्रेन में चढ़ भी नहीं पाते और कई बार लोग गिरकर घायल हो जाते हैं। यहां तक कि कई लोगों की जान भी चली जाती है।

टोकना है काफी खतरनाक
ऐसे लोगों को कुछ कहकर छेड़ना भी खतरनाक साबित होता है। वे कुछ कहने या समझाने पर झगड़ा और यहां तक कि मारपीट करने पर उतारू हो जाते हैं। बहस तो इनके लिए आम बात है। इनका तर्क होता है कि मैं तो वर्षों से ऐसे ही यात्रा करता हूं। अरे भाई, वर्षों से कोई गल्ती कर रहा हो, इसका मतलब ये नहीं कि वह सही हो गया। कृपया अगर आप भी ऐसे लोगों में से हैं, तो कृपया बुरा न मानें और जरा दूसरों की सुविधा और इससे बढ़कर जान का ख्याल रखें।

गेट पर बैठकर यात्रा करने में आनंद का अनुभव
मुंबई लोकल की सुखद यात्रा को दुखद बनाने वालों में ऐसे लोगों से भी खतरनाक प्रजाति के लोग होते हैं। उनको तो गेट पर बैठ कर यात्रा करने में ही मजा आता है। ट्रेन खाली हो, भरी हुई हो, वे गेट पर बैठ कर यात्रा करना अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझते हैं। ऐसे लोगों में से अधिकांश लोग अपनी आंखें बंद कर नींद का आनंद उठा रहे होते हैं या सोने का ड्रामा किए हुए रहते हैं। अगर कोई इन्हें टोकता है तो वे मारपीट करने पर उतारू हो जाते हैं। कुत्तों की प्रजाति के ऐसे लोगों को केवल अपनी ही चिंता होती है, दूसरे यात्री किस परेशानी में सफर कर रहे हैं, इससे इन्हें कोई वास्ता नहीं है।

गुटखा खाकर यात्रा करने वाले यात्री
इनके आलावा यात्रियों का एक वर्ग ऐसा भी है, जो गुटखा खाकर यात्रा करने में असीम आनंद की अनुभूति करते हैं। ऐसे लोग दूसरे लोगों की परवाह किए बिना मुंह में गुटखा दबाए हुए यात्रा करते हैं। ये अक्सर ग्रुप में रहते हैं और बात करते समय कई बार इनके मुंह से गुटखा और थूक मुंह से बाहर निकलकर दूसरों के ऊपर गिर जाता है। इसके साथ ही ये बार-बार थूकने के लिए गेट के बाहर सिर निकालकर दूसरे यात्रियों के लिए असुविधा बढ़ाने का भी काम करते हैं। मना करने पर इनका पूरा ग्रुप झगड़ा करने पर अमादा हो जाता है। इसलिए समझदार लोग चुपुचाप इनसे होने वाली परेशानी झेलना ही बेहतर समझते हैं।

क्या आप भी?
कहीं आप भी इन वर्गों में तो शामिल नहीं हैं, अगर हां तो कृपया बुरा न मानें। नियम और कानून के पचड़े को छोड़िए, मानवता और सभ्यता-शिष्टाचार के नाते ही ऐसा न करें तथा अपने साथ दूसरे यात्रियों के लोकल प्रवास को सुहना बनाएं।

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