वो अपनी शर्तों पर जीवन जीते थे…कल्याण सिंह की अंत्येष्टि सोमवार को

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उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का जीवन कभी किसी के निर्णय पर आधारित नहीं रहा। वे अपनी शर्तों पर निर्णय लेते थे और उसी के अनुसार चलते थे। यही कारण था कि भारतीय जनता पार्टी से उनका मतभेद भी हो गया था। लेकिन, हिंदुवादी नेता के प्रखर विचार एक बार फिर उन्हें भाजपा में खींच लाए और शीर्ष पद तक पहुंचे। कल्याण सिंह की अंत्येष्टि सोमवार को गंगा किनारे होगा।

कल्याण सिंह राजस्थान के पूर्व राज्यपाल थे, वे एक समय में हिंदी पट्टी में भाजपा के सबसे बड़े नेता थे। 5 जनवरी, 1935 को अलीगढ़ में जन्मे कल्याण सिंह किसान परिवार से थे और अपने शुरुआती वर्षों से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े थे। वे बड़े होकर शिक्षक बने और फिर राजनीति में आ गए। उन्होंने 1967 में जनसंघ के टिकट पर अपना पहला चुनाव लड़ा और उत्तर प्रदेश विधान सभा में पहुंचे। वे पहली बार 1977 में मंत्री बने। 89 वर्षीय कल्याण सिंह ने अयोध्या आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वे भाजपा का ओबीसी चेहरा थे और भाजपा के उत्तर प्रदेश में पहले मुख्यमंत्री भी थे (जून 1991 से दिसंबर 1992 तक)।

अडिग और अटल कल्याण सिंह

  • उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को बड़े यत्नों से सत्ता प्राप्त हुई थी। लेकिन बाबरी विध्वंस के साथ ही वह भी गिर गई
  • बाबरी विध्वंस के बाद बड़े हिंदू नेता के रूप में उभरे
  • बाबरी विध्वंस को विफल करने में असफल रहने के लिए काटी सजा
  • कट्टर हिंदुत्वादी होने के साथ-साथ कल्याण सिंह की एक अद्वितीय ओबीसी नेता के रूप में भी पहचान
  • 90 के दशक में ‘कमंडल’ (हिंदुत्व) और ‘मंडल’ (आरक्षण) के बीच राजनीति में सफल हुए कल्याण सिंह की नीतियां
  • अल्पकालिक लाभ के लिए समझौता न करनेवाले नेता थे
  • 1995 के कुख्यात राज्य गेस्ट हाउस की घटना के बाद मायावती सरकार का समर्थन करने वाली भाजपा का किया विरोध
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