उत्तर प्रदेश की सियासत में मायावती सत्ता में रहें या न रहे, वे हमेशा चर्चा में रहती है । उत्तर प्रदेश की 4 बार मुख्यमंत्री रहीं मायावती इस बार चुनाव में अब तक खामोश रहीं, मायावती की खामोशी को लेकर कई तरह के सवाल उठे , लेकिन मायावती ने आगरा में अपनी चुप्पी तोड़ी ।
क्या बदलेंगे बसपा के हालात?
बसपा सुप्रीमो मायावती ने दलितों के गढ़ आगरा से चुनाव प्रचार की शुरूआत की। मीडिया और विरोधी पार्टियों पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि हमे कम आंका जा रहा है । पिछले चुनावों में हमारे साथ धोखा हुआ। स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं ने हमारे साथ गद्दारी की लेकिन इस बार उम्मीदवारों का चयन समझदारी से किया है । मायावती ने आगरा रैली में अपने खिलाफ बने परसेप्शन को तोड़ने की कोशिश की है । उनको दलित वोट बैंक के बिखरने का डर सता रहा है । मायावती ने ये संदेश भी दिया कि वे चुनाव में पूरी तरह से सक्रिय हैं ।
किसे नफा, किसे नुकसान
सवाल यह है कि मायावती के चुनाव प्रचार में उतरने से किसके वोट बैंक पर असर पड़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस को होगा। उसके बाद समाजवादी पार्टी को भी दलित वोटों के कटने से नुकसान हो सकता है। भारतीय जनता पार्टी को इन तीनों पार्टियों के नुकसान होने से स्वाभाविक रुप से लाभ होने की बात कही जा रही है।
बहुजन समाज पार्टी का उदय
कांशीराम ने वर्ष 1984 में बहुजन समाज पार्टी की नींव रखी । बहुजन समाज पार्टी पहली बार वर्ष 1993 में सुर्खियों में आई, जब उसने 67 सींटे जीतीं और समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाई । वर्ष 2007 में बहुजन समाज पार्टी ने 207 सीटें जीतकर अपने दम पर सरकार बनाई लेकिन उसके बाद बहुजन समाज पार्टी का ग्राफ लगातार नीचे आता गया ।
इस तरह रहा वोटो का प्रतिशत
- 1993 में बसपा ने 11.12 प्रतिशत वोट लेकर 67 सीटें जीतीं।
- वर्ष 1996 में 19.64 प्रतिशत वोट प्राप्त किये और 67 सीटें जीतीं।
- 2002 में वोट प्रतिशत बढ़कर 23.06 प्रतिशत हुआ और 98 सीटें जीतीं।
- 2007 में 30.43 प्रतिशत वोट पाकर 206 सीटों पर जीत हासिल की ।
- 2012 में 25.95 प्रतिशत वोट पाकर 80 सीटें जीतीं।
- 2017 में महज 19 सीटें ही जीतीं ।