सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार को बड़ा झटका दिया है। न्यायालय ने भारतीय जनता पार्टी के 12 विधायकों का निलंबन रद्द कर दिया है। न्यायालय के इस फैसले पर महाराष्ट्र से दिल्ली तक की राजनीति गरमा गई है। महाराष्ट्र में जहां इस फैसले पर तरह-तरह की बातें कही जा रही हैं, वहीं दिल्ली में ठाकरे सरकार की खूब किरकिरी हो रही है।
विपक्ष के विधायकों ने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के राजनीतिक आरक्षण को बनाए रखने के लिए केंद्र से सांख्यिकीय जानकारी प्राप्त करने हेतु मानसून सत्र के दौरान विधानसभा में एक प्रस्ताव लाने का आह्वान किया था। इस दौरान विधानसभा में पीठासीन अधिकारी भास्कर जाधव को कथित तौर पर गाली और धमकी देने के आरोप में भाजपा के 12 विधायकों को एक वर्ष के लिए निलंबित कर दिया गया था। भाजपा ने इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। अब न्यायालय ने ठाकरे सरकार के इस निर्णय को असंवैधानिक बताते हुए उनका निलंबन रद्द कर दिया है।
Supreme Court quashes one-year suspension from the Maharashtra Legislative Assembly of 12 BJP MLAs while terming it unconstitutional and arbitrary. MLAs were suspended for one year for allegedly misbehaving with the presiding officer. pic.twitter.com/LsXiT9MtNR
— ANI (@ANI) January 28, 2022
इससे पहले की सुनवाई में पीठ ने की थी यह टिप्पणी
संबंधित विधायकों के साल भर के निलंबन के कारण पूरे साल विधानसभा में उनके निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं होगा। जनप्रतिनिधियों के निलंबन के मामले में निर्वाचन क्षेत्रों के प्रतिनिधित्व के लिए एक वैकल्पिक प्रणाली होनी चाहिए। पीठ ने कहा था कि एक साल का निलंबन संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के लिए बड़ी सजा है। न्यायालय ने तर्क दिया कि संविधान के प्रावधानों के अनुसार निर्वाचन क्षेत्र छह महीने से अधिक समय तक विधानसभा में प्रतिनिधित्व के बिना नहीं रह सकता है।
भाजपा को बड़ी राहत
सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, वहीं भारतीय जनता पार्टी की यह बड़ी जीत मानी जा रही है। प्रदेश की राजनीति पर इसका दूरगामी परिणाम होना निश्चित है।
क्या है पूरा मामला?
5 जुलाई, 2021 को विधान सभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया और 12 भाजपा विधायकों को कदाचार के आरोप में एक साल के लिए निलंबित कर दिया गया। इसे भाजपा ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। ध्यान दें कि एक साल का निलंबन संविधान द्वारा निर्धारित अवधि से अधिक है। जस्टिस ए. एम. खानविलकर और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने 11 जनवरी को इस मामले की सुनवाई की थी।