शिवसेना के दीपक केसरकर ने बताई विधायकों की स्थिति… पढ़ें पूरा पत्र

महाराष्ट्र की राजनीति में चल रही उहापोह नित नए रंग में प्रकट हो रही है। इस बीच एक पत्र जनसमुदाय के लिए सोशल मीडिया के माध्यम से वायरल हुआ है।

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महाराष्ट्र सरकार के मंत्री और असंतुष्ट गुट की ओर से प्रवक्ता के रूप में प्रस्तुत होनेवाले दीपक केसरकर का एक पत्र वायरल हुआ है। इसमें केसरकर ने शिवसेना विधायकों की दिक्कतें, उनके अपमान, उनके स्वाभिमान के साथ छेड़छाड़ को प्रकट किया है। मराठी और अंग्रेजी में लिखित उस व्यथा का हिंदी रूपांतरण इस प्रकार है….

पिछले पांच दिनों से महाराष्ट्र की राजनीति बड़े उलटफेर देख रही है। हम वंदनीय बालासाहेब ठाकरे के, शिवसेना के शिवसैनिक कुछ समय के लिए बाहर क्या निकले, कचरा हो गए, सूअर हो गए। हमारी शक्ति पर राज्यसभा में बैठनेवाले प्रतिदिन विषैली भाषा बोलते हैं। अब तो हमारे शवों की आस उन्हें लगी है। मुख्य मुद्दा यही है, गुवाहाटी में बैठकर शिवसेना की आवाज बुलंद करने का यही सही कारण है और यही उस सम्मान की लड़ाई की पार्श्वभूमि है। यह विद्रोह नहीं है, बल्कि शिवसेना के आत्मसम्मान की लड़ाई है। जिसे वर्तमान नेतृत्व समझते हुए भी कार्रवाई नहीं कर रहा है, यह हमारा बड़ा दु:ख है। आज हमें बिका हुआ बतानेवाले कौन, कब, और किसके हाथों, इसे संक्षिप्त रूप में व्यक्त करने का यह प्रयत्न है।

वर्तमान में जो परिस्थिति खड़ी हुई है, उसकी जड़ें बहुत पुरानी हैं। शिवसेना और भाजपा का गठबंधन बहुत पुराना है। 2014 में लोकसभा चुनाव हमने साथ लड़ा था। शिवसेना की ताकत थी ही, परंतु, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और माननीय श्री उद्धवजी ठाकरे साहेब के परिश्रम से शिवसेना के 18 उम्मीदवार सांसद बन गए। विधान सभा चुनाव भी हमने एक साथ लड़ने का निश्चय किया था। उस समय युवा नेता आदित्य जी ने मिशन 151+ की घोषणा की थी। उस समय भाजपा ने 140 जगहों का प्रस्ताव दिया था। परंतु, बातचीत में भाजपा को 127 और शिवसेना को 147 स्थानों पर लड़ने की बात निश्चित हो गई। शिवसेना की ताकत थी ही परंतु, चार जगहों का आग्रह सुलझाया नहीं जा सका। अंत में जो नहीं होना था, वही हुआ। लंबे काल से चल रहा गठबंधन टूट गया और हमें अलग-अलग लड़ना पड़ा। यहां एक उल्लेख करना आवश्यक है कि, 2014 का चुनाव हो या 2019 के बाद राज्य में खड़ी हुई परिस्थिति, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या भाजपा के केंद्रीय या राज्यस्तरीय नेता किसी ने भी हमारे वंदनीय शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे पर निम्नस्तरीय टिप्पणियां नहीं कीं।

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अगले कुछ दिनों में ही शिवसेना और भाजपा फिर साथ आ गई। केंद्र में हमारे भी मंत्री थे। परंतु, यही वह समय था, जब से संजय राऊत ने केंद्र की भाजपा सरकार पर टिप्पणियां करने का विषैला क्रम शुरू किया। इसका अर्थ ये कि, केंद्र में मंत्रिपद लेकर, मोदी मंत्रिमंडल में रहकर, राज्य सरकार में घटक पक्ष रहकर मोदी पर विषैली टिप्पणियां की जा रही थीं। इसके माध्यम से दोनों पार्टियों के बीच दूरी बढ़ाने का कार्य क्रमवार किया गया। इस समय भी समय-समय पर हम सभी विधायक उन बातों को पक्ष नेतृत्व के संज्ञान में लाने का कार्य कर रहे थे। परंतु, उसका कोई परिणाम नहीं हो रहा था। प्रतिदिन अति अश्लील शब्दों में टिप्पणियां हो ही रही थीं। कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी या देश की अन्य कोई पार्टी भी जिस भाषा का उपयोग नहीं करती थी, वह भाषा हमारे संजय राउत के मुंह में हमेशा रहता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा विकसित हो ही रही थी, साथ ही शिवसेना भी अपनी शक्ति बढ़ाने का कार्य सतत कर रही थी। इन कार्यों से हिंदुत्व का विचार अधिक प्रबल हो रहा था, हमें इसी का आनंद था। आक्रामक हिंदुत्व ही बालासाहेब द्वारा हमें दी गई पहली और अंतिम शिक्षा है, जो इसके बाद भी आजन्म रहेगी जो किसी युति और गठबंधन से अधिक आवश्यक है। हमारा जन्म हुआ हो या मृत्यु हिंदुत्व की चादर ओढ़कर ही होगी।

धीरे-धीरे शिवसेना की राजनीति ने नए आयाम छूने शुरू कर दिये थे। राजनीति की दिशा बदल रही थी। यह राजनीति शिवसेना को बढ़ाने के लिए, हिंदुत्व के विचार की उन्नति के लिए होती तो उसे समझ सकते थे, परंतु सत्ता अपने को समाप्त करने के बल पर हमें कदापि स्वीकार नहीं। शिवसेना का अस्तित्व ही न बचे तो मिलनेवाली सत्ता और पद किस काम के?

धीरे-धीरे यही दीमक जिला परिषद, नगरपालिका, ग्राम पंचायत स्तर पर पहुंच गई। शिवसेना की लड़ाई सत्ता के लिए नहीं थी, सत्ता में तो हम थे ही, लेकिन, संजय राऊत की सलाह से पूरी पार्टी यदि शरद पवार के साथ बांध दी जाएगी तो शिवसेना का अस्तित्व ही क्या बचेगा?

जिस कश्मीर के मुद्दे पर वंदनीय हिंदूहृदयसम्राट शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे ने स्पष्ट भूमिका ली, कश्मीरी पंडितों को महाराष्ट्र में आमंत्रित किया, उस अनुच्छेद 370 की समाप्ति पर हमारे नेताओं को बोलने भी न आए, यह कितनी विपरीत स्थिति है। सोनिया गांधी और शरद पवार को खुश करने के चक्कर में हम अपना आत्मसम्मान छोड़ दें क्या? सभी महत्वपूर्ण विभाग कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को देकर मात्र मुख्यमंत्री पद रख लिया जाए। दाऊद से संबंध होने का आरोप झेलनेवाले मंत्री का बचाव करें भी तो कैसे? राज्यसभा चुनाव में यह पार्टियां शिवसेना उम्मीदवार को हराएं तो क्या किया जाए? सिर्फ सहन करते बैठे रहें?

दु:खद यह है कि, जो खुद कभी चुनाव नहीं लड़े, वह संजय राऊत पार्टी समाप्त करने के लिए निकल पड़े हैं। संजय राऊत ही शरद पवार के गले की मणि हैं। भाजपा से आप शिवसेना को दूर कर सकते हैं, परंतु, शिवसेना को हिंदुत्व से दूर करने की कोशिश करेंगे तो हम कैसे सहन करें? इससे दुखदायी यह है कि, संजय राऊत की बात सुनकर यदि पार्टी चलाई जाएगी और हमारे जैसे जनता द्वारा निर्वाचित विधायकों को दूर ढकेला जाएगा तो हम करें भी तो क्या? उद्धव जी और हमारे बीच खाई बढ़ाने का पाप संजय ने किया है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता बंदूक चलाएं, संजय के कंधे का उपयोग करें और उससे मरे कौन तो शत्रु नहीं हम ही। यह हमें स्वीकार नहीं। इसलिए हमारी लड़ाई शिवसेना की है, शिवसेना प्रमुख के विचारों की है, शिवसेना के अस्तित्व की है। यह विद्रोह नहीं है, यह शिवसेना के आत्मसम्मान की लड़ाई है और उसे जीते बिना अब पीछे नहीं हटेंगे। इसीलिए महाराष्ट्र की शुभकामनाओं और आशीर्वाद की शक्ति हमें मिली है। हम शिवसेना के साथ ही हैं, शिवसेना के व हमारे नेता उद्धव ठाकरे साहब हमारे आग्रह पर विचार करें वर्तमान गठबंधन के बदले में भाजपा से युति करें। महाराष्ट्र ने जो युति निर्वाचित करके दी है, उसे पुनर्जीवित करें।

हम समाप्त नहीं होंगे, हम रुकेंगे नहीं, महाराष्ट्र को पुन: नई ऊंचाई पर ले जाने तक हम पीछे नहीं हटेंगे!
जय महाराष्ट्र!

दीपक केसरकर

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