राहुल का झूठा राग, रणजीत सावरकर ने दिया सबूतों के साथ करारा उत्तर

दोहरी कालापानी की सजा भुगतनेवाले स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर राष्ट्रद्रोही सदा आरोप लगाते रहते हैं। ऐसे लोगों को अब करारा उत्तर मिलने लगा है।

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राहुल गांधी ने अपनी सभा में स्वातंत्र्यवीर सावरकर के जिस माफीनामे को दिखाया है, वह कांग्रेस और राहुल का झूठ है। वीर सावरकर क्रांतिकारी थे और दोहरी कालापानी की सजा भुगतनेवाले देश के अकेले बंदी थे। उस काल में सरकार को लिखे जानेवाले पत्राचार की भाषा वही थी। परंतु, राहुल गांधी उसका गूगल ट्रांसलेट करके लोगों को गुमराह कर रहे हैं। जो मूर्खता से कम नहीं है।

वीर सावरकर के पौत्र रणजीत सावरकर उस काल के सरकारी पत्रों को प्रस्तुत किया है। जिसमें अंग्रेजों की दृष्टि में वीर सावरकर क्या थे, यह स्पष्ट पता चलता है।

1. वीर सावरकर द्वारा राजबंदियों को छोड़ने का पत्र
भारत सरकार के गृह विभाग का पत्र (क्र.64, जनवरी 1918)

भारत सरकार के गृह विभाग के सचिव ने सर टी.डब्लू होल्डरनेस को 9 जनवरी, 1918 को पत्र लिखा है, जो अंग्रजों के राजा के कार्यालय में उप सचिव थे। इस पत्र में लिखा है…

‘गृह विभाग के पत्र क्रमांक 89 के 9 फरवरी, 1911 को भेजे पत्र को अग्रेसित कर रहां हू। यह विनायक दामोदर सावरकर द्वारा भेजी गई याचिका है, जो अंदमान द्वीप पर बंदी हैं। इस पत्र में उनकी याचिका है कि, उन सभी बंदियों को आम माफी दी जाए जो राजनीतिक अपराधों के अंतर्गत दोषी हैं।’

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2. वीर सावरकर के निर्वाह भत्ते में भेद
रत्नागिरी – 1929 से 1931 ( रेफरेन्स – शोध सावरकरांचा – य.दी. फडके)

स्थानबद्धता में रहनेवालों को 1928 से हिंदुस्थान सरकार ने भोजन के लिए प्रतिदिन 1.5 रुपए, कपड़े आदि के खर्च में प्रत्येक के लिए चौंतीस रुपए, अन्य खर्च को मिलाकर सालाना 100 रुपए का भत्ता मंजूर किया था।

सावरकर के निर्वाह भत्ते पर गृह विभाग के सचिव हेन्री नाईट ने टिप्पणी लिखी थी,
‘सावरकर को भत्ता चाहिये हो तो उन्हें खुशी से कारागृह में वापस जाकर बची हुई सजा भुगतनी चाहिये। उन्होंने, स्वखुशी से शर्तें स्वीकार की हैं। सावरकर को भत्ता मंजूर करना अनिष्ट होगा। यदि सरकार ने ऐसा किया तो सावरकर सामान्य बंदी न होकर राजबंदी हैं ऐसा मान्य करने जैसा होगा।’

3.महात्मा गांधी को 450 रुपए
महात्मा गांधी को स्थानबद्धता काल में अंग्रेजों द्वारा 450 रुपए का भत्ता दिया जाता था। क्रांतिकारियों को जहां कालापानी और अन्य कारागृहों में बहुत ही कष्टप्रद कारागृह में बंदी बनाकर रखा जाता था, वहीं महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू को आगा खान पैलेस में रखा जाता था।

4. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी नेहरू लेते रहे अंग्रेजों की अनुमति
जवाहरलाल नेहरू ने 28 अप्रैल, 1948 को डोमिनियन (अधिराज्य) स्टेटस के अतंर्गत बंगाल के गवर्नर चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया के पद पर नियुक्त किया। इसके लिए उन्होंने इंग्लैंड के महाराज की अनुमति मांगी थी।

5. नेहरू की अंग्रेज परस्ती
नेहरू ने ली राजा जॉर्ज षष्ठम के नाम से शपथ, 2 सितंबर, 1946 को जवाहरलाल नेहरू ने ली थी शपथ।

मैं, जवाहरलाल नेहरू सत्यनिष्ठा से वचन देता हूं कि, मैं भारत के छठे सम्राट किंग जॉर्ज, उनके कानूनी उत्तराधिकारियों के प्रति वफादार रहूंगा और सच्ची निष्ठा रखूंगा।

6. जलियांवाला के वीरों का अपमान
द कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी – 6 अक्टूबर 1920, सूरत
जलियावांला बाग के संबंध में महात्मा गांधी लिखते हैं, ‘जलियावांला बाग में मारे गए पुरुष और महिलाएं वीर या हुतात्मा नहीं हैं। यदि वे वीर होते तो जनरल डायर के आने के बाद वे तलवार या डंडों से मुकाबला करते और मृत्यु को स्वीकार कर लेते।’

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