उत्तर प्रदेश चुनावः विपक्षी पार्टियां इस तरह कर रही हैं, भाजपा का काम आसान!

जाति और धर्म की धूरी बन चुकी उत्तर प्रदेश की सियासत में सभी पार्टियों में अपनी समर्थक जातियों को अपने पक्ष में जोड़े रखने की होड़ मची हुई है ।

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उत्तर प्रदेश के चुनावी दंगल में विपक्षी दलों की आपसी लड़ाई तीखी हो गई हैं। बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती कांग्रेस को वोट न देने की अपील कर रही है और कांग्रेस पर हमला बोल रही है लेकिन भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से हटाने के लिए आक्रामक प्रचार नहीं कर रही हैं।

कांग्रेस-बसपा बने एक दूसरे के विरोधी 
जाति और धर्म की धूरी बन चुकी उत्तर प्रदेश की सियासत में सभी पार्टियों में अपनी समर्थक जातियों को अपने पक्ष में जोड़े रखने की होड़ मची हुई है । कांग्रेस और बसपा दोनों ही जाटव दलित को अपना वोट बैंक मानती है । उत्तर प्रदेश में लगभग 22 प्रतिशत दलित आबादी है । इसमें जाटव वोटों का शेयर अधिक है।

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की खिसकी जमीन
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की सक्रियता की चर्चा सोशल मीडिया पर भले दिखाई दे लेकिन जमीनी स्तर पर उसके नेता और कार्यकर्ता पार्टी को अलविदा कह रहे हैं । कांग्रेस अपना जनाधार खो चुकी है। इसकी वजह है, पार्टी का दलित वोट बैंक का खिसकना। बसपा के उदय के बाद कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही है। कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाकर ही बसपा और समाजवादी पार्टी ने प्रदेश में अपनी स्थिति मजबूत की है । समाजवादी पार्टी का यादव वोट बैंक तो बरकरार है लेकिन बसपा को अपने वोट बैंक के खिसकने का डर है । वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अच्छा प्रर्दशन किया था और 18.2 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 21 सीटें जीती थीं । लेकिन 2009 के बाद कांग्रेस और बसपा की स्थिति कमजोर होती गई।

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भाजपा का गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव वोटों पर कब्जा
विपक्ष की आपसी लड़ाई के बीच भाजपा ने एक सधा हुआ प्रयोग करते हुए पिछड़ो और दलितों को अपने साथ जोड़ना शुरू कर दिया। वर्ष 2014-2017 और 2019 में भगवा पार्टी को भारी जीत मिली । सवाल उठता है कि आखिर समाजवादी पार्टी से गैर यादव ओबीसी और बसपा से गैर जाटव दूर क्यों हुआ। सपा यादवों की पार्टी है । एक ही जाति का पार्टी पर प्रभुत्व है। इस कारण भाजपा ने पिछड़ों और दलितों को अपने साथ लाने की रणनीति अपनाई।

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