कोलकाता उच्च न्यायालय के आदेश से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस को राहत मिली है। उच्च न्यायाल की पांच न्यायाधीशों वाली पीठ ने नारदा स्टिंग प्रकरण में चार नेताओं को अंतरिम जमानत दे दी है। इन्हें प्रकरण की जांच कर रही केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई ने 17 मई 2021 को गिरफ्तार किया था।
कोलकाता उच्च न्यायालय के निर्णय से तृणमूल कांग्रेस को बड़ी राहत मिली है। इस प्रकरण को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपनी प्रतिष्ठा का मुद्दा बना दिया था। अब न्यायालय से सुब्रत मुखर्जी, फिरहाद हकीम, मदन मित्रा और सोवन चटर्जी को अंतरिम जमानत मिल गई है।
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इन चारों नेताओं को न्यायालय ने दो-दो लाख रुपए का निजी मुचलका जमा कराने को कहा है। इसके अलावा ये किसी भी मीडिया को साक्षात्कार नहीं दे सकते। जमानत की किसी भी शर्त के उल्लंघन पर इनकी जमानत रद्द की जा सकती है। ये सभी नेता 19 मई से ही हाउस अरेस्ट थे।
नारद स्टिंग ऑपरेशन
पश्चिम बंगाल में वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव से पहले नारद स्टिंग टेप सार्वजनिक किया गया था। इसमें दावा किया गया था कि यह टेप वर्ष 2014 में रिकॉर्ड किया गया था। इसमें टीएमसी के मंत्री, सांसद और विधायक की तरह दिखने वाले व्यक्तियों को कथित रुप से एक फर्जी कंपनी के प्रतिनिधियों से कैश लेते दिखाया गया था। स्टिंग ऑपरेशन कथित तौर पर नारद न्यूज पोर्टल के पत्रकार मैथ्यू सैमुअल ने किया था। कलकता उच्च न्यायालय ने मार्च 2017 में स्टिंग ऑपरेशन मामले की सीबीआई जांच का आदेश दिया था।
राज्यपाल ने दी थी अनुमति
मीडिया रिपोर्टस को देखने के बाद पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने पश्चिम बंगाल सरकार के नेताओं के अभियोजन के लिए मंजूरी दे दी थी। राज्यपाल ने फिरहाद हकीम, सुब्रत मुखर्जी, मदन मित्रा और शोभन चटर्जी के संबंध में अभियोजन के लिए मंजूरी दी थई। जिन दिनों ये अपराध हुआ था, उस समय ये सभी बंगाल सरकार में मंत्री थे। इस संबंध में एक विज्ञप्ति के माध्यम से कहा गया था कि चारों नेताओं के विरुद्ध प्रकरण चलाने की मंजूरी मांगते समय सीबीआई द्वारा मामले से संबंधित दस्तावेज राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किए गए थे।
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संविधान के 163 व 164 आर्टिकल के तहत मंजूरी
राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने संविधान के 163 और 164 आर्टिकल के तहत अधिकार का प्रयोग करते हुए ये अनुमति दी है। संविधान के आर्टिकल 163 और 164 के तहत राज्यपाल को इस तरह का अधिकार प्राप्त है। इन आर्टिकल्स के तहत राज्यपाल कानून के संदर्भ में मंजूरी प्रदान के लिए सक्षम प्राधिकारी हैं, क्योंकि वे संविधान के 164 के संदर्भ में मंत्रियों को नियुक्त करते हैं। 163 के तहत कुछ विषयों में राज्यपाल के विवेकानुसार किया गया कार्य ही अंतिम होगा और उस पर कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकेगा।