हिमालय से सत्ता के शिखर तक… ऐसी रही मोदी की यात्रा

नरेंद्र मोदी का जीवन हर समय शीर्ष पर रहा।

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नरेन्द्र मोदी 71 साल के हो गए… इन वर्षों में बचपन का युक्तिवान बच्चा, युवावस्था में सन्यासी प्रवृत्ति वाला बना और हिमालय पहुँच गया, लेकिन हिमालय भी व्याकुल नरेन्द्र के मन को ज्यादा नहीं रोक पाया और वह भटकते हुए पहुँच गया राजनीति के अखाड़े में और बन गया देश का प्रधानमंत्री।

नरेन्द्र मोदी वह नाम है जिसने गरीबी देखी, फकीरी देखी और एक दिन राजनीति के फर्श से अर्श पर जा पहुंचा। मोदी के आसमान छूने की शुरुआत हुई २००१ में, जब वह मुख्यमंत्री बने। नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व को समझने के लिए ज़रूरी है काल की गर्त में जाकर नरेन्द्र मोदी को समझना।

ऐसी है पारिवारिक पृष्ठभूमि
गांधीनगर से लगभग ८० किलोमीटर दूर है मेहसाणा जिले का वडनगर गाँव…. जहाँ १७ सितम्बर १९५० को दामोदर दास और हीरा बा को पुत्र जन्मा जिसका नाम रखा गया नरेन्द्र। नरेन्द्र पांच भाई और एक बहन हैं। जिनमें नरेन्द्र तीसरे नंबर पर हैं। बड़े भाई का नाम सोमभाई, अमृतभाई और उनके बाद नरेन्द्र। नरेन्द्र के बाद एक बहन है इसका नाम वासंती है और उसके बाद प्रहलाद और पंकज।

बात करें पारिवारिक पृष्ठभूमि की तो वडनगर स्टेशन पर ही नरेन्द्र मोदी के पिता दामोदरदास की चाय की स्टाल थी। ६ साल की उम्र में स्कूल के बाद नरेंद्र पिता के पास वडनगर रेलवे स्टेशन निकल जाते और वहां चाय बेचकर मदद करते थे।

और पहुंच गए संघ की शाखा में
वडनगर स्टेशन की चाय दुकान पर आरएसएस के कार्यकर्ता लक्ष्मणराव इनामदार उर्फ वकील साहब प्रतिदिन आते थे। उनसे नरेन्द्र की अच्छी जमने लगी और ६ साल का बच्चा आरएसएस की तरफ आकर्षित होने लगा और ८ साल की उम्र में बालक संघ में बाल स्वयंसेवक बन गया।

और फिर नहीं लौटे नरेन्द्र
नरेन्द्र ने कालेज में दाखिला ले लिया, लेकिन परिवार तब सकते में आ गया जब नरेन्द्र ने माँ से आकर यह कहा की वह अध्यात्मिक खोज के लिए हिमालय जाना चाहता है…. माँ रोने लगीं… उन्हें साधूओं के साथ नरेन्द्र की तल्लीनता का प्रभाव दिखने लगा था। नरेन्द्र के लिये माँ ने कंसार बना कर दिया। नरेन्द्र दो साल तक हिमालय में घुमते रहे। इस बीच घर से कोई संबंध और खबर नहीं दी और अचानक एक दिन घर लौटे छोटी बहन वासंती ने भाई को देखा तो दौड़ते-दौड़ते माँ के पास पहुंची। दो साल बाद लौटे बेटे को देखने माँ भी दौड़ पड़ी, माँ ने बेटे को रोटला-सब्जी बनाकर खिलाया। दो वर्षो बाद घर लौटे नरेन्द्र भोजन के बाद गाव में घूमने निकल गए। नरेन्द्र की उम्र अब १९ साल की थी और एक दिन और एक रात रहने के बाद नरेन्द्र ने फिर माँ को यह कहकर घर छोड़ दिया की मैं जा रहा हूँ, इसके बाद नरेन्द्र कभी घर नहीं लौटे।

संघ से बना अटूट संबंध
हिमालय की यात्रा के बाद नरेन्द्र ने कैलाश मानसरोवर की भी यात्रा की…. अध्ययन, पर्यटन और मानवता इस सब कार्यों के बीच नरेन्द्र की उम्र २१ साल की हो चुकी थी। इसी दौरान नरेन्द्र की मुलाकात फिर एक बार वकील साहब से हुई। वकील साहब यानि लक्ष्मण राव इनामदार ने उन्हें संघ के साथ जुड़ने की सलाह दी। जिसके बाद नरेन्द्र मोदी ने चाचा का घर छोड़ दिया और हेडगेवार भवन निकल गए और वहीँ रहने लगे।

छपी पहली पुस्तक
अध्ययनशील नरेन्द्र मोदी की एक और विशेषता सामने आई। इस दौरान अच्छा लिखने भी लगे थे। १९७५ में उनकी किताब ‘संघर्ष में गुजरात’ का प्रकाशन हुआ। जो आपातकाल के समय महत्वपूर्ण साबित हुई।

२५-२६ जून १९७५ की आधी रात को देश में अचानक आपातकाल को घोषणा हो गई। जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी और मोरारजी देसाई जैसे नेता गिरफ्तार हो गए। लेकिन इस पूरे आपात्काल में नरेन्द्र को पकड़ा नहीं जा सका। वह अलग-अलग रूप में भूमिगत रहे।

ऐसे हुआ राजनीति में पदार्पण
१९८६ में नरेन्द्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी में गुजरात प्रदेश संगठन महासचिव के रूप में भेजा गया। नरेन्द्र मोदी अपनी योजनाबद्ध कार्यशैली के लिए जाने जाते थे। सबसे पहले वह पार्टी के सदस्य, बूथ समिति की स्थापना, मंडल समिति समेत एक डाटा तैयार किया। जिसके कारण ही १९८७ में हुए अहमदाबाद नगर निगम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को पहली बार सफलता मिली। पार्टी के महत्वपूर्ण फैसलों में शामिल किया जाने लगा था। नरेन्द्र मोदी ने नारा दिया “अब तो बस भाजपा – एक मौका भाजपा को” १९९० में नरेन्द्र मोदी की छवि बड़े परिप्रेक्ष्य में उभर कर आई। जब भाजपा ने जनता दल के साथ मिलकर सरकार बनाने का निर्णय किया। १९९० के चुनावों में जनता दल को ७० और भाजपा को ६७ सीटें मिली थीं और नरेन्द्र मोदी ने गैर कांग्रेसी सरकार बनाने के लिए सत्ता में जनता दल के साथ भागीदारी की

स्ट्रेटेजी मेकर की पहचान
नरेन्द्र मोदी अब राजनेता, स्ट्रेटेजी मेकर बन गए थे। न्याय यात्रा में उनकी भूमिका सभी देख चुके थे और २५ सितम्बर १९९० को राम रथयात्रा निकली। यह यात्रा सोमनाथ से शुरू की जाए यह आग्रह नरेन्द्र मोदी ने ही लालकृष्ण अडवानी से किया था और यात्रा सोमनाथ से निकली जिसमें नरेन्द्र मोदी को सोमनाथ से मुंबई तक की जवाबदारी सौंपी गई। जिम्मेदारियों और पूर्ति का सिलसिला चलता रहा। १२ दिसम्बर १९९१ को एकता यात्रा प्रारंभ हुई। इसकी जिम्मेदारी भी नरेन्द्र मोदी को सौंपी गई और जालंधर के पास यात्रा पर आतंकी हमला हुआ। जिसमें चार यात्री शहीद हुए। लेकिन नरेन्द्र मोदी ने आतंकियों को ललकारते हुए २६ जनवरी १९९२ को  श्री नगर के लाल चौक पर झंडा फहरा दिया।

नरेन्द्र मोदी भले देश की राजनीती में सशक्त रूप से उभरने लगे थे। इसी कारण अमेरिका ने युवा नेता के रूप में १९९२ उन्हें अमेरिका बुलाया। इस दौरान नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका में स्वामी विवेकानंद के भाषण के शताब्दी समारोह में हिस्सा लिया।

गुजरात में खिला कमल
जबकि गुजरात में भाजपा को यश दिलाने की नरेंद्र मोदी की कोशिश गतिवान हो चुकी थी। १९९५ में भाजपा ने गुजरात विधान सभा का चुनाव अकेले लड़कर १२१ सीटों पर विजय हासिल की और पहली बार भाजपा की अकेले की सरकार बनी। लेकिन शंकर सिंह वाघेला के विद्रोह के कारण सरकार ज्यादा दिन नहीं टिक पाई। बहरहाल, १९९८ में हुए राज्य विधानसभा के चुनाव में भाजपा को एक बार फिर जनमत सरकार बनाने का मिला और केशुभई मुख्यमंत्री बने।

नरेंद्र मोदी की ऊंची उड़ान
२००१ के विनाशकारी भूकंप के बाद केशुभाई अपने आप को संभाल नहीं पाए और ७ अक्टूबर २००१ को नरेन्द्र मोदी को मुख्यमंत्री बनाया गया। एक सामान्य परिवार का लड़का, छोटी छोटी युक्तियों से परेशानीयों से लड़ने वाला, संघ का साधारण प्रचारक अब राजनीति के बड़े कैनवास पर था। उसका संन्यासी मन अब राज्य की राजनीती के शिखर पर था।

मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री
लगातार ४ बार और ४,६०९ दिन मुख्यमंत्री रहने के बाद नरेन्द्र दामोदरदास मोदी ने देश के प्रधानमंत्री के रूप में जिम्मेदारी संभाली।

मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दौर सर्वविदित है। स्वामी विवेकानंद का आदर्श मन में लेकर जीवन देश की सेवा में समर्पित करने वाले नरेन्द्र का संघर्षकाल अपने आप में लोकतंत्र में आम जनमानस की भूमिका और समर्पण की मिसाल बनकर खड़ा है।

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