शपथ लें कि मातृ भाषा का अधिकतम उपयोग करेंगे- अमित शाह

किसी भी संतान को जन्म देने वाली एक मां ही होती है और उससे ही बच्चे सबसे पहले भाषा को सुनते और बोलते हैं। पाठशाला जाने से पहले तक बच्चे जो भी बोलना सीखते हैं उसमें सबसे ज्यादा योगदान मां का ही होता है। अत: स्वाभाविक है कि इस भाषा को मातृभाषा कहा जाता है।

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केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह देशवासियों को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की शुभकामनाएँ दीं हैं। उन्होंने, मतृ भाषा के महत्व को समझाते हुआ लिखा है कि, देशवासियों को शपथ लेनी चाहिये कि, वे मातृ भाषा का अधिकतम उपयोग करेंगे।

अपने ट्वीट के माध्यम से केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि ‘अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की सभी को शुभकामनाएँ। यह दिन अपनी मातृभाषा से जुड़ उसे और अधिक समृद्ध करने के संकल्प का दिन है। जब व्यक्ति अपनी मातृभाषा को समृद्ध करेगा तभी देश की सभी भाषाएँ समृद्ध होंगी और देश भी समृद्ध होगा। अपनी मातृभाषा के अधिकतम उपयोग करने का संकल्प लें।’

अमित शाह ने कहा कि ‘जब कोई बच्चा अपनी मातृभाषा में पढ़ता, बोलता और सोचता है, तो इससे उसकी सोचने की क्षमता, तर्क शक्ति, विश्लेषण और शोध की क्षमता बढ़ती है। इसी को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने ‘नई शिक्षा नीति’ के माध्यम से मातृभाषा में शिक्षा पर जोर दिया है। यही भारत के स्वर्णिम कल का आधार बनेगा।’

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मातृ भाषा दिवस का महत्व
यूनेस्को ने भाषायी विविधता को बढ़ावा और संरक्षण देने के लिए 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया था। मातृभाषा ही किसी भी व्यक्ति के शब्द और संप्रेषण कौशल की उद्गम होती है। एक कुशल संप्रेषक अपनी मातृभाषा के प्रति उतना ही संवेदनशील होगा, जितना विषय-वस्तु के प्रति। मातृभाषा व्यक्ति के संस्कारों की परिचायक है। वास्तविकता यह है कि मातृभाषा एक कुशल गुरु की भांति ही मार्ग प्रशस्त करती है। मातृभाषा बालक की प्रवृत्तियों को जगाकर स्वतंत्र रूप से सर्जन की प्रेरणा देती है। मातृभाषा में सरसता और पूर्णता की अनुभूति होती है। मातृभाषा मात्र संवाद ही नहीं, अपितु संस्कृति और संस्कारों की संवाहिका भी है। मातृभाषा सहज रूप में अनुकरण के माध्यम से सीखी जाती है। अन्य भाषाएं भी बौद्धिक प्रयत्न से सीखी जाती हैं। दोनों प्रकार की भाषाओं के सीखने में अंतर यह है कि मातृभाषा तब सीखी जाती है जब बुद्धि अविकसित होती है, अर्थात बुद्धि-विकास के साथ मातृभाषा सीखी जाती है। इससे ही इस संदर्भ में होने वाले परिश्रम का ज्ञान नहीं होता है।

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