दिल्लीवालों से दिल-लगी, महाराष्ट्र के किसानों से दूरी, राउत साहब ये कैसी मजबूरी!

शिवसेना सांसद संजय राउत, अरविंद सावंत के साथ ही विनायक राउत इतने उत्साहित हो गए कि वे गाजीपुर बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे भारतीय किसान यूनयिन के नेता राकेश टिकैत और अन्य किसान नेताओं से मिलने पहुंच गए।

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एवरीथिंग इज फेयर इन पॉलिटिक्स। इस कहावत के उदाहरणों की कमी नहीं है। फिलहाल एक और उदाहरण देखने को मिला है। महाराष्ट्र के महाविकास आघाड़ी सरकार ने कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली के बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों को अपना समर्थन जताया है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार से लेकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे तक सभी नेतओं ने कृषि कानूनों को किसान के हितों के खिलाफ बताया है। यहां तक शिवसेना सांसद संजय राउत, अरविंद सावंत के साथ ही विनायक राउत इतने उत्साहित हो गए कि वे गाजीपुर बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे भारतीय किसान यूनयिन के नेता राकेश टिकैत और अन्य किसान नेताओं से मिलने पहुंच गए। वे उनसे मिले और उनके आंदोलन को अपना समर्थन का भी ऐलान किया। गणतंत्र दिवस पर हिंसा करने और लाल किले पर तिरंगे के अपमान करने के मामले में भी केंद्र की भारतीय जनता पार्टी की सरकार की आलोचना करनेवाली महाविकास आघाड़ी सरकार खुद की गिरेबान में झांकने की जरुर नहीं समझती।

महाराष्ट्र में किसानों की दुर्दशा
कृषि कानूनोंं पर केंद्र की मोदी सरकार की जी भर कर आलोचना करनेवाली शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस पार्टियां  महाराष्ट्र के किसानों की दुर्दशा को दूर करने के लिए कोई कदम उठाने की जरुरत नहीं समझतीं। दिल्ली में ट्रैक्टर परेड के दौरान एक किसान की मौत को हत्या बतानेवाले संजय राउत जरा महाराष्ट्र में आत्महत्या को गले लगाने वाले किसानों के दर्द को समझने की कोई जरुरत नहीं समझते। वे महाराष्ट्र के किसानों और आत्महत्या करने वाले किसानों के परिजनों से मिलने की कोई जरुरत नहीं समझते।

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महाराष्ट्र में हर दिन छह किसान करते हैं आत्महत्या
 महाराष्ट्र में हर दिन छह किसान मौत को गले लगाने पर मजबूर हैं। लेकिन इससे इन नेताओं को कोई फर्क नहीं पड़ता।  क्योंकि इससे उन्हें राजनीति को चमकाने में मदद नहीं मिलेगी। गाजीपुर बॉर्डर पर जाने की वजह से मीडिया और खास कर टीवी चैनलों पर छाने का मौका नहीं मिलता। भारतीय जनता पार्टी के नेतृ्त्व में युति सरकार के कार्यकाल में भी किसान आत्महत्या कर रहे थे, आज शिवसेना के नेतृत्व में महाविकास आघाड़ी की सरकार चल रही है, तब भी किसान आत्महत्या कर रहे हैं। इसे रोकने के लिए उद्धव सरकार कोई कारगर कदम उठाने की जरुरत नहीं समझती। एक तरह से इन्होंने मान लिया है कि यहां किसानों की आत्महत्या कोई अनहोनी या बड़ी बात नहीं है। इसलिए हर दिन यहां छह किसानों की आत्महत्या को रुटीन मामला मान लिया जाता है।

किसानों की समस्याओं पर घड़ियाली आंसू
आपको जानकर हैरत होगी, कि जब महाराष्ट्र में जोड़तोड़ की सरकार बनाने की कोशिश की जा रही थी, भाजपा को सत्ता से बदेखल करने और एनसीपी तथा कांग्रेस के साथ मिलकर शिवसेना सरकार बनाने की पटकथा तैयार कर रही थी, उन दिनों भी राज्य में तीन सौ किसानों ने मौत को गले लगा लिया था। लेकिन नेता अपनी नेतागिरी चमकाने में लगे थे और अन्नदाता अपनी जान देने के मजबूर थे। किसानों की समस्याओं पर घड़ियाली आंसू बहानेवाली शिवसेना के हाथ में अब तो सत्ता है, वह उनकी आत्महत्याओं को रोकने के लिए कोई कारगर कदम क्यों नहीं उठाती। लेकिन सच तो ये है कि कारगर कदम तो छोड़िए वह कोई कदम उठाने की जरुरत ही नहीं समझती। महाराष्ट्र मेे केंद्र के कृषि कानूनों को लागू नहीं किया गया है तो फिर शिवसेना की नेतृत्व वाली महाविकास आघाड़ी सरकार ऐसा कोई कानून क्योे नहीं बनाती, जो किसानों की आत्महत्याओं को रोक दे या कम कर दे।

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किसानों की आत्महत्या के मामले में महाराष्ट्र है नंबर वन
मात्र जून 2020 से जनवरी 2021 तक के आंकड़े को देखें तो पता चलता है कि इन महीनों में महाराष्ट्र में 1074 किसानों ने आत्महत्या की, यानी रोज 6 किसानों ने मौत को गले लगा लिया। महाराष्ट्र किसानों की आत्महत्या के मामले में आज भी नंबर वन बना हुआ है। पिछले साल देश भर में कुल 10349 किसानों ने आत्महत्या की। इनमें से 34.7 फीसदी किसान अकेले महाराष्ट्र के हैं। महाराष्ट्र का नाम देश के विकसित राज्यों में किया जाता है। लेकिन किसानों की आत्महत्या के मामले में यह देश के सभी राज्यों से आगे है। राज्य के विदर्भ और मराठवाड़ा में सबसे ज्यादा किसान खुदकुशी करते हैं।

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नेताओं की आय में लगातार वृद्धि
प्रदेश के नेता चाहे किसी भी पार्टी के हों, पिछले पांस सालों में सभी विधायकों की औसत आय दुगुनी हो गई। साल 2019 के विधानसभा चुनाव में 118 विधायक दुबारा चुनकर आए थे। इनकी औसत आय 2014 में 14.55 करोड़ थी, जो 2019 में बढ़कर 25.86 करोड़ हो गई। जाहिर है, नेताओं की आमदनी का ग्राफ लगातार चढ़ता जा रहा है लेकिन किसानों की आमदनी का ग्राफ लगतार नीचे गिरता जा रहा है।

क्या है उपाय?
1-किसानो के लिए शुरू की गई तमाम  योजनाएं फेल हो गई हैं। कर्जमाफी भी काम नहींं आ रही है। कृषि मामलों के विशेषज्ञों के मुताबिक किसानो को बेहतर मार्गदर्शन की आवश्यकता है। उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की  योजनाओं का वक्त पर लाभ पहुंचा कर ही उन्हें गलत कदम से रोका जा सकता है।

2-अर्थशास्त्री देवेंद्र वसाल का मानना है कि महज कर्जमाफी से आत्महत्या नहीं रुकेगी। केंद्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को जमीन पर उतारना जरुरी है। किसानों के पास जानकारियों का अभाव है। सही मार्गदर्शन और आर्थिक मदद से उनके जीवन स्तर को ऊंचा उठाकर और आर्थिक मजबूती प्रदान कर उन्हें इस तरह के कदम उठाने से बचाया जा सकता है।

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