विधान परिषद में बड़े बदलाव हुए हैं। जहां कांग्रेस के अंतिम दीपक का कभी टाइम खतम हो गया है और कोई नेता विपक्ष नहीं होगा। यह परिस्थिति भाजपा के लिए अनुकूल है, जहां उच्च सदन में उसके अब तक के इतिहास में उसके सबसे अधिक सदस्य हैं।
उत्तर प्रदेश विधान परिषद में वर्ष 1910 में मोतीलाल नेहरू का मनोनयन हुआ था, उन्हें कांग्रेस का पहला सदस्य माना जाता है। इसके पश्चात लगभग 62 वर्षों तक कांग्रेस ही उच्च सदन में सत्ता में रही। परंतु, वर्ष 1989 से कांग्रेस विधायकों की संख्या निरंतर कम होती गई। जो अब वर्ष 2022 में आते-आते शून्य पर पहुंच गई है। विधान परिषद में कांग्रेस के अंतिम सदस्य दीपक सिंह का टाइम खतम हो गया और उन्हीं के साथ उच्च सदन कांग्रेस मुक्त हो गया है।
ऐसे हुआ कांग्रेस का सफाया
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की उलटी गिनती 1989 में शुरू हुई, 9वीं विधान सभा में कांग्रेस के अंतिम मुख्यमंत्री थे नारायण दत्त तिवारी। उनके बाद सपा के मुलायम सिंह यादव की सरकार आई और प्रदेश में कांग्रेस मुक्त सरकारों का उदय हुआ। इसी समय से विधान परिषद में भी कांग्रेस सदस्यों की संख्या तेजी से गिरती गई।
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वर्ष 2012 के विधान सभा चुनावों में कांग्रेस के 28 विधायक चुनकर आए थे, जो वर्ष 2017 के विधान सभा चुनाव में 7 पर पहुंच गए और वर्ष 2022 के विधान सभा चुनाव के बाद यह संख्या 2 पर सिमट गई है। कांग्रेस के दो विधायकों की संख्या से विधान परिषद में किसी सदस्य को भेजना असंभव है, जिसके कारण दीपक सिंह का कार्यकाल 6 जून को समाप्त हो गया।
विधान परिषद में नहीं होगा नेता प्रतिपक्ष
कुल सीटों के अनुसार दस प्रतिशत विधायक संख्यावाले दल के पास ही नेता प्रतिपक्ष का पद जाता है। उच्च सदन में समाजवादी पार्टी सबसे बड़ा दल है, जिसके विधायकों की संख्या 9 है, जबकि बहुजन समाज पार्टी का एक सदस्य है। कुल 100 सदस्यों में से 10 सदस्य भी किसी दल के नही हैं, इस कारण अब विधान परिषद में विपक्षी दल के सदस्य तो हैं परंतु, नेता विपक्ष कोई नहीं बन पाएगा।
विधान परिषद क्षमता
परिषद के कुल सदस्यों की संख्या 100 हैं, जिसमें से 38 सदस्यों का चुनाव विधान सभा द्वारा हिता है, जबकि 36 सदस्यों का चुनाव स्थानीय निकायों द्वारा होता है, 16 सदस्यों का चुनाव शिक्षक और स्नातकों द्वारा किया जाता है और 10 सदस्यों का राज्य सरकार द्वारा मनोनयन होता है।