देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में वायु प्रदूषण के कारण बढ़ रही फेफड़ों की बीमारियों ने चिंता बढ़ा दी है। विशेषज्ञ डॉक्टरों ने मुंबईकरों को विशेष सावधानियां बरतने की सलाह दी है।
कोविड के बाद प्रदूषित हवा ने ज्यादा असर डाला है। विशेषकर वरिष्ठ नागरिकों को वायु प्रदूषण से निपटने में अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है। अब बच्चे भी इसका असर महसूस करने लगे हैं। कोविड संक्रमण से फेफड़े सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। कोविड लहर के खत्म होने के बाद अब मुंबई में वायु प्रदूषण ने फेफड़ों की बीमारियों की चिंता बढ़ा दी है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
विशेषज्ञों ने पाया है कि खराब हवा का मुंबईकरों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जब मौसम ठंडा हो जाता है तो वातावरण में धूल जमीन पर बैठ जाती है। आबोहवा प्रभावित होने से मरीज बढ़ते जाते हैं। खांसी-जुकाम के सायन अस्पताल की ओपीडी में 50 फीसदी से ज्यादा मरीज दर्ज किए गए हैं। इनमें ज्यादातर वरिष्ठ नागरिक शामिल हैं। मुंबई में वायु प्रदूषण से उच्च रक्तचाप, अस्थमा, हृदय रोग, ब्रोंकाइटिस और गुर्दे की बीमारी वाले वरिष्ठ नागरिक विशेष रूप से प्रभावित हैं। यदि खांसी, दमा या सीओपीडी की बीमारी पुरानी है तो ठंडे वातावरण में संक्रमण, धूल और प्रदूषण से सांस लेने में तकलीफ हो सकती है और रोगियों के रक्त में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है। समय पर इलाज न कराने पर मरीज के हार्ट फेल होने की आशंका रहती है। सायन अस्पताल के प्रोफेसर डॉ. नीलकांत अवध बताते हैं कि कोविड काल में नागरिकों के फेफड़े सबसे अधिक प्रभावित हुए। इससे फेफड़ों की रोग प्रतिरोधक क्षमता पहले से कम हो जाती है। शीतकाल में वायु में प्रदूषकों को गर्म एवं आर्द्र वायु नहीं मिल पाती है, इसलिए वायु में उनके विघटन एवं विघटन की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। प्रदूषण फैलाने वाले तत्व हवा में ही रहते हैं। बढ़ती आबादी के साथ-साथ लगातार निर्माणकार्य, वाहनों के धुएं, औद्योगिक प्रदूषण, जीवाश्म ईंधन और कचरे के जलने से मुंबई में वायु प्रदूषण में वृद्धि हुई है। सर्दियों के तापमान यानी कोहरे के दौरान धुएं और कोहरे से मिश्रित हवा सुबह जल्दी टहल रहे नागरिकों के लिए परेशानी का सबब होती है। प्रदूषण बढ़ने से सांस लेने वाली हवा खासकर बच्चों, गर्भवती महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों के फेफड़ों को प्रभावित करती है।
डॉ. चेतन जैन के अनुसार शरीर के सभी अंग फेफड़ों द्वारा आपूर्ति की जाने वाली ऑक्सीजन पर निर्भर करते हैं। अगर हम प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं तो यह न केवल हमारे फेफड़ों बल्कि अन्य अंगों को भी नुकसान पहुंचाती है। खराब हवा एलर्जी संबंधी विकार, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, सीओपीडी और पोस्ट-कोविड स्थितियों के रोगियों को जोखिम में डालती है। डॉ. तन्वी भट्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वायु प्रदूषण में जहरीले प्रदूषक श्वसन संक्रमण से लेकर हृदय रोग तक कई बीमारियों का कारण बनते हैं। उच्च स्तर के वायु प्रदूषण वाले शहरों में रहने वाले लोगों में श्वसन संबंधी बीमारियों के विकसित होने की संभावना अधिक होती है।
लक्षण और बचाव
वायु प्रदूषण के लक्षण – आंखों में पानी आना और खुजली होना । सिरदर्द और चक्कर आना। खांसी – सीने में जकड़न और बुजुर्गों और बच्चों में घरघराहट। सुबह के समय बाहरी योग करने से बचें। बाहर निकलने से पहले हवा की गुणवत्ता की जांच करें। उच्च प्रदूषण के दौरान दरवाजे और खिड़कियां बंद रखें। अस्थमा पीड़ितों को एयर प्यूरीफायर का उपयोग करना चाहिए । सार्वजनिक परिवहन या इलेक्ट्रिक वाहन से यात्रा करने का प्रयास करें। प्राणायाम और श्वास संबंधी व्यायाम करें। सुबह टहलने से बचें। दमा रोगी यात्रा के दौरान अपने साथ इन्हेलर रखें। गर्म पानी या ग्रीन टी पिएं। सुबह बाहर निकलने से बचें। शाम का समय टहलने के लिए अच्छा होता है क्योंकि सुबह की तुलना में प्रदूषण कम होता है। जिन्हें अन्य समस्याएं हैं उन्हें घर पर ही व्यायाम करना चाहिए।