जानिये, क्या है जैन धर्म में शरीर त्याग करने की प्रथा संथारा!

जैन धर्म में मान्यता है कि जब कोई व्यक्ति या मुनि अपनी जिंदगी पूरी तरह जी लेता है और स्वास्थ्य उसका साथ देना बंद कर देता है तो वह संथारा ले सकता है। संथारा को संलेखना भी कहा जाता है।

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जैन धर्म में मान्यता प्राप्त संथारा को लेकर विवाद काफी पुराना है। हालांकि इसे फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय का समर्थन प्राप्त है और आज भी कई जैन धर्मावलंबी इस मान्यता को बड़ी श्रद्धा और उत्साह से अनुसरण कर रहे हैं।

दरअस्ल, जैन धर्म में ऐसी मान्यता है कि जब कोई व्यक्ति या मुनि अपनी जिंदगी पूरी तरह जी लेता है और स्वास्थ्य उसका साथ देना बंद कर देता है तो वह संथारा ले सकता है। संथारा को संलेखना भी कहा जाता है। इसे एक धार्मिक संकल्प माना जाता है। संथारा लेना वाला व्यक्ति धीरे-धीरे अन्न का पूरी तरह त्याग कर देता है और मृत्यु को प्राप्त होता है।

पूर्व की जानकारी
जैन धर्मावलंबी न्यायमूर्ति टीके तुकोल ने एक पुस्तक लिखी है, ‘संलेखना इज नोट सुसाइड।’ इ पुस्तक में कहा गया है कि संथारा का उद्देश्य आत्मशुद्धि है। इसमें संकल्प लिया जाता है। कर्म के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करना मनुष्य जीवन का उद्देश्य होता है। इस उद्देश्य को पूरा करने में संथारा के माध्यम से मदद मिलती है।

मुनि और गृहस्थ दोनों ले सकते हैं संथारा
संथारा लेने की धार्मिक मान्यता मुनि या आम गृहस्थ दोनों को प्राप्त है। दूसरी शताब्दी में आचार्य समंतभद्र की लिखी पुस्तक रत्नकरंड श्रावकाचार में संथारा का विस्तार से उल्लेख पाया जाता है। श्रावक या साधक का व्यवहार किस तरह का होना चाहिए, इस बारे में इस पुस्तक में उल्लेख किया गया है। इसे जैन धर्म का महत्वपूर्ण पुस्तक माना जाता है। इस पुस्तक में लिखा गया है कि जो व्यक्ति इस धार्मिक मान्यता का अनुसरण करता है, उसे साफ मन से बुरी भावना छोड़कर सबकी गलतियों को माफ कर देना चाहिए और अपनी गलती मानते हुए शरीर का त्याग करना चाहिए।

धर्मगुरु की स्वीकृति जरुरी
धार्मिक मान्यता के अनुसार संथारा के लिए धर्मगुरु की स्वीकृति जरुरी है। उनकी स्वीकृति के बाद ही कोई व्यक्ति इस प्रथा को अपनाना शुरू कर सकता है। सबसे पहले वह व्यक्ति अन्न का त्याग कर देता है। उसके बाद पानी का भी त्याग कर देता है। इस दौरान उस व्यक्ति के आसपास धार्मिक पाठ और प्रवचन का क्रम अनवरत चलते रहता है।

मृत्यु एक उत्सव
इसे एक उत्सव माना जाता है और जैन धर्म में उस व्यक्ति को बड़ी श्रद्धा और सम्मान से देखा जाता है। लोग उससे मिलने और आशीर्वाद लेने आते हैं। उस व्यक्ति की मृत्यु को समाधि मृत्यु कहा जाता है। उसकी मत्यु के बाद उसके पार्थिव शरीर को फूलों के बीच रखा जाता है और शोभा यात्रा निकाली जाती है।

आत्महत्या का ही एक रुप?
जैन धर्म में जहां इस मान्यता को अति पवित्र और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना जाता है, वहीं कुछ लोग इसका विरोध भी करते हैं। उनका मानना है कि मानवतावादी दृष्टिकोण से यह प्रथा आत्महत्या का ही एक रुप है। वर्ष 2006 में निखिल सोनी नामक एक व्यक्ति ने संथारा के विरोध में जनहित याचिका दायर कर इस प्रथा पर रोक लगाने की मांग की थी। याचिका में इसे आत्महत्या का ही एक रुप बताते हुए आधुनिक समय में इस मान्यता पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया था।

राजस्थान उच्च न्यायालय ने लगा दी थी रोक
2015 में राजस्थान उच्च न्यायालय ने इस याचिका पर फैसला सुनाया था। न्यायालय ने इस मान्यता को गैर कानूनी बताते हुए इस पर रोक लगा दी थी। न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि अगर धर्म ग्रंथ में यह कहा गया है कि संथारा से मोक्ष प्राप्ति होती है तो मोक्ष प्राप्ति का एक ही मार्ग नहीं है। यह प्रथा जैन धर्म के लिए अनिवार्य नहीं है। इसी टिप्पणी के साथ न्यायालय ने इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया था। न्यायालय ने इस फैसले के साथ यह भी कहा था कि संथारा लेने के लिए प्रेरित करेनवाले व्यक्ति को आईपीसी की धारा 306 के तहत दोषी माना जाएगा और उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

सर्वोच्च न्यायालय ने फैसले पर लगा दी थी रोक
राजस्थान उच्च न्यायालय के इस फैसले पर काफी विवाद हुआ था और जैन धर्म के लोगों ने इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। उसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान उच्च न्यायालय के इस फैसले को स्थगित करते हुए संथारा प्रथा को जारी रखने की स्वीकृति दी थी।

प्रथा आज भी जारी
संथारा प्रथा का अनुसरण करते हुए मृत्यु को प्राप्त करने वाले जैन धर्म के लोगों का कोई आधिकारिक आंकड़ा तो प्राप्त नहीं है, लेकिन एक अनुमान के अनुसार मुबंई और इसके आसपास के उपनगरों में हर वर्ष 30-35 लोग संथारा लेते हैं। 2015 मे टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक खबर के अनुसार पिछले सात साल में 400 लोगों ने संथारा लिया था।

इन्होंने लिया था संथारा

  • उन दिनों डोंबिवली और नालासोपारा में कई लोगों ने संथारा लिया था। डोंबिवली के रंताशी शामजी सावला संथारा लेने के कुछ ही दिनों बाद मृत्यु को प्राप्त हुए थे।
  • नालासोपारा की कस्तूरीबेन गाला ने संथारा लिया था। 17वें दिन उन्होंने मृत्यु को प्राप्त किया था।
  • 2018 में जैन मुनि तरुण सागर की मृत्यु हुई थी। बताया गया था कि उन्होंने संथारा लिया था। वे 51 वर्ष के थे।
    राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात में जैन समुदाय के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। इन प्रदेशों में समुदाय के कई लोग संथारा के माध्यम से मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
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