Assembly elections: राजनीति के अखाड़े में मठाधीशों की दावेदारी का अजब संयोग, जानें क्या

हमारी भारतीय परंपरा में धर्म को सदैव राजनीति से ऊपर रखा गया है। देश में दोनों को अलग-अलग रखने के पैरोकार भी बहुत हैं। कभी धर्म राजनीति से प्रभावित हुआ हो या नहीं, लेकिन राजनीति के धर्म से प्रभावित होने के कई उदाहरण मिल जाते हैं। यह प्रभाव परिणाम और विचार दोनों स्तरों पर देखा गया है।

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Assembly elections: राम मंदिर आंदोलन के बाद कई साधु-साध्वी (Sadhu-Sadhvi) देश की राजनीति की मुख्यधारा में आए। उनमें से कइयों ने अपनी अलग छाप भी छोड़ी। कालान्तर में धर्म क्षेत्र से राजनीति (Politics) में आने की प्रवृत्ति कम हुई। लेकिन वर्तमान में राजस्थान (Rajasthan), मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हो रहे विधानसभा चुनावों में कई मठाधीश (abbots) चुनावी मैदान में कूद पड़े हैं। राजनीति में धर्म गुरुओं की इस दिलचस्पी को लेकर यह संयोग ही है कि वो मंदिर आंदोलन का काल था और यह श्रीराम मंदिर निर्माण का समय है।

हमारी भारतीय परंपरा में धर्म को सदैव राजनीति से ऊपर रखा गया है। देश में दोनों को अलग-अलग रखने के पैरोकार भी बहुत हैं। कभी धर्म राजनीति से प्रभावित हुआ हो या नहीं, लेकिन राजनीति के धर्म से प्रभावित होने के कई उदाहरण मिल जाते हैं। यह प्रभाव परिणाम और विचार दोनों स्तरों पर देखा गया है।

राजस्थान के योगी 
राजस्थान विधानसभा चुनावों में धर्म गुरुओं की बात करें तो नाथ संप्रदाय के महंत एवं अलवर के सांसद बाबा बालक नाथ (Baba Balak Nath) राजस्थान विस के लिए चुनावी मैदान हैं। बालक नाथ भी योगी हैं। अलवर की तिजारा विधानसभा सीट से भाजपा ने उनको अपना उम्मीदवार बनाया है। बालकनाथ का पर्चा दाखिल कराने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी पहुंचे थे। नाथ संप्रदाय का हरियाणा और राजस्थान बॉर्डर के कई जिलों में मजबूत दबदबा बताया जाता है। कुछ लोग उन्हें राजस्थान का योगी आदित्यनाथ के रूप में देखने की मंशा पाले राजस्थान में बीजेपी के भीतर मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी मान रहे हैं।

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देवासी धर्म गुरु ओटाराम और तारातारा मठ के महंत भी मैदान में
इसी तरह भोपाजी के नाम से प्रसिद्ध देवासी धार्मिक गुरु ओटाराम देवासी (Otaram Dewasi) राज्य की सिरोही विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी हैं। राजस्थान और गुजरात में ओटाराम देवासी के कई अनुयायी हैं। वे प्रतिदिन प्रवचन भी देते हैं। ओटाराम देवासी पिछली वसुंधरा राजे सरकार में राज्यमंत्री रहे थे। जैसलमेर जिले की पोकरण सीट से महंत प्रतापपुरी महाराज को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया है। प्रतापपुरी बाड़मेर जिले के तारातारा मठ के महंत हैं। आर्य समाज से जुड़े काफी लोग इस मठ के प्रति आस्था रखते हैं। कांग्रेस ने भी मुस्लिम धर्मगुरु साले मोहम्मद को चुनाव मैदान में उतारा है, जो फकीर परिवार के नाम से मशहूर हैं व सीमा क्षेत्र में इनका खास प्रभाव है। सालेह मोहम्मद के पिता गाजी फकीर मुस्लिमों के बड़े धर्मगुरु माने जाते हैं।

सीएम शिवराज को चुनौती देते मिर्ची बाबा
मध्य प्रदेश में रीवा सीट पर सबके महाराज नाम से मशहूर सुशील सत्य महाराज एक बार फिर चुनावी मैदान में हैं। वे 2018 में भी इसी सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। मध्य प्रदेश में धर्म गुरुओं की चुनावी समर में सबसे अधिक चर्चा मिर्ची बाबा यानी महामंडलेश्‍वर स्वामी वैराग्यानंद (Mahamandaleshwar Swami Vairagyananda) की है। बुधनी सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती है। यहां से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भाजपा प्रत्याशी हैं। मिर्ची बाबा को कांग्रेस सरकार में राज्यमंत्री का दर्चा दिया गया था। लेकिन भाजपा शासन में पाशा पलट गया। मिर्ची बाबा को एमपी सीएम शिवराज सिंह से काफी नाराजगी है। क्योंकि इन्हीं के काल में बाबा को जेल की हवा भी खानी पड़ी थी। इसलिए मिर्ची बाबा बुधनी से ही कांग्रेस से टिकट मांग रहे थे । लेकिन जब कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया, तो ये लखनऊ जाकर समाजवादी पार्टी से टिकट लेकर सीएम चौहान को चुनौती देने मैदान में आ डटे हैं। छत्तीसगढ़ में रायपुर दक्षिण सीट से दूधाधारी मठ के प्रमुख रामसुंदर दास भी राजनीति सफर की शुरुआत कर रहे हैं।

  • अश्वनी राय
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