Murshidabad Violence: मुर्शिदाबाद हिंसा पर हाईकोर्ट कमेटी की रिपोर्ट से तृणमूल कांग्रेस में हड़कंप? जानिए क्या है मामला?

पुलिस ने हिंसा पर काबू पाने के लिए समय रहते कोई ठोस कदम नहीं उठाया, और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल की तैनाती से पहले तक स्थिति बेकाबू बनी रही।

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मुर्शिदाबाद जिले (Murshidabad District) में अप्रैल महीने में हुई साम्प्रदायिक हिंसा (Communal Violence) की जांच के लिए कलकत्ता हाई कोर्ट (Calcutta High Court) द्वारा नियुक्त तीन सदस्यीय समिति (Committee Report) की रिपोर्ट ने तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) को बड़ी मुश्किल में डाल दिया है। रिपोर्ट में जहां राज्य पुलिस की लापरवाही को उजागर किया गया है, वहीं, स्थानीय तृणमूल कांग्रेस नेताओं को इस हिंसा का मुख्य साजिशकर्ता बताया गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस ने हिंसा पर काबू पाने के लिए समय रहते कोई ठोस कदम नहीं उठाया, और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल की तैनाती से पहले तक स्थिति बेकाबू बनी रही। समिति ने स्थानीय टीएमसी पार्षद महबूब आलम और नेता अमीरुल इस्लाम को हिंसा के पीछे मुख्य भूमिका में बताया है। यानी राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं की देखरेख में मुर्शिदाबाद में हिंदुओं को चुन चुन कर निशाना बनाया गया, घर जलाए गए, मारे गए और पुलिस सब कुछ जानकर भी खामोश बनी रही।

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जनता में नाराजगी, चुनाव पर पड़ेगा असर
भरतपुर से तृणमूल विधायक हमायूं कबीर ने रिपोर्ट को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि मुर्शिदाबाद हिंसा से जुड़े कुल 65 मामले दर्ज किए गए हैं और कई गिरफ्तारियां हुई हैं। दर्जनों परिवारों को घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। इसका असर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में साफ दिखेगा। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि आम लोग जिले के कई जनप्रतिनिधियों से नाराज़ हैं। साथ ही राज्य प्रशासन की भूमिका पर भी लोगों में असंतोष है।

हिंसा में भूमिका पर सीधे आरोप
रिपोर्ट में कहा गया है कि 11 अप्रैल को दोपहर दो बजे के बाद शुरू हुई हिंसा में महबूब आलम खुद नेतृत्व कर रहे थे। वहीं, अमीरुल इस्लाम घटनास्थल पर पहुंचकर उन घरों की पहचान कर रहे थे जिन्हें अब तक नहीं जलाया गया था, और इसके बाद उन घरों को जलाने की कार्रवाई की गई। महबूब आलम ने इन आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि वह घटना के समय वहां मौजूद नहीं थे, जबकि अमीरुल इस्लाम से इस पर प्रतिक्रिया नहीं मिल सकी है।

राज्य सरकार पर विपक्ष का निशाना
इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने ममता सरकार पर जोरदार हमला बोला है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री सुकांत मजूमदार ने कहा कि सरकार ने शुरुआत में हिंसा को बाहरी तत्वों की साजिश बताने की कोशिश की थी, लेकिन समिति की रिपोर्ट ने यह थ्योरी खारिज कर दी है। रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि स्थानीय मुस्लिम पड़ोसियों ने नकाब पहन लिया ताकि पहचान में ना आए और चुन चुन कर हिंदू घरों में हमले, लूटपाट और आगजनी की। राज्य सरकार अब भी असली साजिशकर्ताओं को बचाने की कोशिश कर रही है। भाजपा के प्रदेश महासचिव जगन्नाथ चटर्जी ने दावा किया कि मुर्शिदाबाद की यह हिंसा पूरी तरह पूर्व नियोजित थी और इसके पीछे एक बड़ी साजिश है।

हाई कोर्ट की टिप्पणी से मेल खाती है रिपोर्ट
मुर्शिदाबाद के धूलियन, सूती और शमशेरगंज इलाकों में आठ अप्रैल से हिंसा शुरू हुई थी, जो 12 अप्रैल तक जारी रही। अंततः हाई कोर्ट के विशेष खंडपीठ—न्यायमूर्ति सौमेन सेन और न्यायमूर्ति राजा बसु चौधरी के आदेश पर 12 अप्रैल की रात सीएपीएफ (बीएसएफ और सीआरपीएफ) की तैनाती की गई।

खंडपीठ ने यह भी कहा था कि अगर केंद्रीय बलों की तैनाती पहले की जाती, तो स्थिति इतनी गंभीर और विस्फोटक नहीं होती। अब जो समिति की रिपोर्ट सामने आई है, वह विशेष खंडपीठ की उस समय की टिप्पणी की पुष्टि करती है।

रिपोर्ट के अनुसार, हिंसा की जड़ में वक्फ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ प्रदर्शन की आड़ में हिंदू समुदाय को निशाना बनाना था, जिसे रोकने में राज्य सरकार नाकाम रही। अब इस रिपोर्ट ने तृणमूल कांग्रेस के लिए बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। (Murshidabad Violence)

देखें यह वीडियो – 

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