2021 के वो पांच राजनीतिक घटनाक्रम, जिनकी रही चर्चा

वर्ष 2021 कई यादगार राजनीतिक घटनाओं का साक्षी रहा। इन घटनाओं का देश की राजनीति पर दूरगामी परिणाम होना तय है।

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वर्ष 2021 में कई तरह के राजनीतिक उतार-चढ़ाव देखने को मिले। 2021 कई यादगार राजनीतिक घटनाओं का साक्षी रहा। किसानों का ऐतिहासिक आंदोलन, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की ऐतिहासिक वापसी और पंजाब में कैप्टन-सिद्धू के बीच रार जैसी कई राजैतिक घटनाएं घटीं, जिसका गहरा प्रभाव देश की राजनीति पर लंबे समय तक देखा जाएगा।

ऐसी ही पांच घटनाओं पर एक नजर

कृषि कानून और किसान आंदोलन
वर्ष 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले एक वर्ष से विवादों में चल रहे कृषि कानूनों को वापस लेने की ऐतिहासिक घोषणा की। उन्होंने देश के संबोधन के दौरान यह घोषणा करते हुए कहा कि लगता है कि हमारी तपस्या में कोई कमी रह गई या हम किसानों को समझा नहीं पाए, इसलिए मैं तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करता हूं। कैबिनेट में इस घोषणा को लेकर निर्णय लिए जाने के बाद 29 नवंबर को संसद के दोनों सदनों ने कृषि कानूनों के निरस्तिकरण विधेयक 2021 को बिना चर्चा की मंजूरी दे दी, जिसके बाद एक दिसंबर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी इसे मंजूरी दे दी। कृषि कानूनों के रद्द होने के साथ ही एक साल से अधिक समय से जारी किसान आंदोलन समाप्ति की ओर बढ़ गया।

मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला विस्तार वर्ष 2021 में किया गया। विपक्ष को आलोचना का अवसर कम से कम मिले, इसलिए मंत्रिमंडल में बड़े पैमाने पर फेरबदल किया गया। इसमें 36 नए चेहरों को शामिल किया गया। साथ ही सात मौजूदा राज्यमंत्रियों को प्रमोट कर कैबिनेट मंत्री बनाया गया। साथ ही साथ आठ नए चेहरों को भी मंत्रिमंडल में स्थान दिया गया। राष्ट्रपति भवन में हुए शपथ ग्रहण समारोह में 43 नेताओं ने मंत्री पद की शपथ ली। इनमें 15 कैबिनेट और 28 राज्यमंत्री शामिल थे। जानकारों का मानना है कि 2022 मे पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के देखते हुए मंत्रिमंडल का विस्तार किया गया और मंत्री पदों का बंटवारा भी उसी अनुसार किया गया।

 पश्चिम बंगाल का चुनाव और ममता बनर्जी की ऐतिहासिक जीत
कोरोना की दूसरी लहर के बीच 2021 में हुआ पश्चिम बंगाल चुनाव काफी महत्वपूर्ण घटना रहा। भारतीय जनता पार्टी की पूरी शक्ति लगाने के बावजूद वहां ममता बनर्जी को मिली ऐतिहासिक जीत ने उन्हें बंगाल ही नहीं, राष्ट्रीय स्तर का एक बड़ा चेहरा बना दिया। उनका खेला होबे का नारा भी खूब चर्चित हुआ और भाजपा के तमाम दावे गलत साबित हुए। पीएम मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की तमाम मेहनत के बावजूद भाजपा मात्र 77 सीटों पर सिमट गई। हालांकि दो सीटों से 77 सीटों पर जीत भी भाजपा के लिए कोई घाटे का सौदा नहीं कहा जा सकता। हालांकि इस पूरे प्रकरण में प्रदेश में जिस तरह की हिंसा हुईं, उसने पश्चिम बंगाल को राष्ट्रीय स्तर पर बदनाम जरुर किया।

कैप्टन बनाम सिद्धू
पंजाब में कांग्रेस की कलह भी 2021 में सुर्खियों में रही। प्रदेश के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच जुबानी जंग इतनी बढ गई कि कैप्टन को पार्टी को ही अलविदा कहना पड़ा। गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी के बहाने सिद्धू गुट द्वारा शुरू की गई इस लड़ाई ने पंजाब की राजनीति में भूचाल ला दिया। कांग्रेस हाई कमान के लिए अमरिंदर सिंह से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा लेना आसान नहीं था, क्योंकि पंजाब में कांग्रेस को संभालने और सत्ता की कुर्सी तक पहुंचाने में कैप्टन की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है। लेकिन सिद्धू को साधने के लिए पार्टी को कैप्टन की बलि देनी पड़ी। इसके बावजूद सिद्धू पार्टी के लिए अब तक सिर दर्द बने हुए हैं। दरअस्ल सिद्धू को बड़ी उम्मीद थी कि कैप्टन के बाद मुख्यमंत्री के पद पर उनकी ताजपोशी होगी, लेकिन पार्टी ने दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बानकर सिद्धू की सारी मेहनत और उम्मीदों पर पानी फेर दिया। कैप्टन को पार्टी छोड़ना कांग्रेस के लिए आत्मघाती कदम साबित हो सकता है। जो सर्वेक्षण रिपोर्ट आ रही है, उसके अनुसार पंजाब में कांग्रेस को झटका लग सकता है।

बॉलीवुड ड्रग्स कनेक्शन
अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध अवस्था में हुई मौत के बाद मामले की शुरू की गई जांच ने ड्रग्स कनेक्शन का रुख ले लिया। सुशांत की मौत या आत्महत्या के बारे में तो कोई खुलासा नहीं हो सका, लेकिन उससे ड्रग्स कनेक्शन का बॉलीवुड में फैले जाल का पर्दाफाश जरुर हो गया। एनसीबी की जांच की जद में बॉलीवुड की कई बड़ी हस्तियां आ गईं। मामले में कई गिरफ्तार किए गए तो कईयों से पूछताछ की गई। मामला बढ़ता हुआ बॉलीवुड स्टार शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान तक पहुंच गया। एनसीबी ने उसे गिरफ्तार तो किया लेकिन यह गिरफ्तारी उसके लिए महंगी साबित हुई। इस मामले ने राजनीतिक मोड़ ले लिया। आर्यन खान को तो जमानत मिल गई लेकिन राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता और महाराष्ट्र के अल्पसंख्यक मंत्री नवाब मलिक तथा एनसीबी के विभागीय अधिकारी समीर वानखेड़े के बीच सोशल मीडिया से लेकर न्यायालय तक जमकर जंग चली। अंजाम यह हुआ कि आर्यन खान मामले की जांच से वानखेड़े को हटा दिया गया और उल्टा उनकी जांच शुरू हो गई।

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