Child Pornography: सर्वोच्च न्यायालय ने पलटा मद्रास हाई कोर्ट का फैसला, जानें क्या है निर्णय

सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को पोक्सो अधिनियम में संशोधन करने और बाल पोर्नोग्राफी शब्द के स्थान पर बाल यौन उत्पीड़न और शोषणकारी सामग्री शब्द रखने की सलाह दी है।

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चाइल्ड पोर्नोग्राफी (Child Pornography) पर सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। अब चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड (Download) करना और देखना भी पॉक्सो एक्ट (Pocso Act) के तहत अपराध माना जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) के फैसले को रद्द कर दिया है।

सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से बाल पोर्नोग्राफी को बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री से बदलने के लिए एक अध्यादेश जारी करने का अनुरोध किया और सभी उच्च न्यायालयों से बाल पोर्नोग्राफी शब्द का उपयोग नहीं करने को कहा। इसी आधार पर मद्रास हाई कोर्ट ने एक आरोपी के खिलाफ मोबाइल फोन में चाइल्ड पोर्नोग्राफी सामग्री रखने के आरोप में चल रहे मामले को रद्द कर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया और मामले को वापस सेशन कोर्ट में भेज दिया। इस आदेश के खिलाफ बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कई संगठनों ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।

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चाइल्ड पोर्नोग्राफी अपराध: सर्वोच्च न्यायालय
पॉक्सो और आईटी अधिनियम के तहत अब किसी व्यक्ति के लिए बाल पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना या देखना अपराध है। सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर 19 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। दरअसल, मद्रास हाई कोर्ट ने माना था कि किसी के निजी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पर केवल चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना या देखना अपराध नहीं है। यह पॉक्सो एक्ट और आईटी एक्ट के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आता है। मद्रास हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ एनजीओ जस्ट राइट फॉर चिल्ड्रन अलायंस ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।

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