स्वातंत्र्यवीर सावरकर के जीवन का अतिसंघर्षमयी काल था, उन्हें दी गई दोहरे आजीवन कारावास की सजा का काल। इस संघर्षमयी काल का शब्दांकन स्वयं स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने किया और राष्ट्र के समक्ष आया एक ग्रंथ, जिसका शीर्षक है ‘माझी जन्मठेप’ (मेरा आजीवन कारावास)। इस ग्रंथ का पहली बार रंगमंचीय अविष्कार हुआ स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक के सभागृह में और अवसर था, वीर सावरकर के 57वें आत्मार्पण दिन का। भव्य सभागृह में बड़ी संख्या में उपस्थित वीर सावरकर अनुयायियों के समक्ष जब रंगमंचीय प्रस्तुति हुई तो कइयों का अंतर्मन आर्द्र हो गया और भावनाएं अश्रु के माध्यम से बहने लगीं।
स्वातंत्र्यवीर सावरकर के 57वें आत्मार्पण दिन पर स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक, मुंबई के तत्वावधान और ‘नाट्यसंपदा कलामंच’ के माध्यम से रंगमंचीय अविष्कार किया गया। जिसमें कलाकारों ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर के आत्मचरित्र की मौखिक प्रस्तुति की, जिसमें उस भीषणतम् यातनाओं का दर्द था, जिस पर राष्ट्र स्वातंत्र्य के लिये क्रांतिकार्य की भावना जयगान कर रही थी और समर्पण की शपथ रगों को प्रफुल्लित कर रही थी। पचास वर्षों के दोहरे कालापानी की सजा पानेवाले स्वातंत्र्यवीर सावरकर एकमात्र क्रांतिकारी थे। जिन यातनाओं के आगे पशु भी हार जाता है, वह यातनाएं वीर सावरकर की दासी बन गई थीं। नृशंस अंग्रेजों की यातनाओं से जहां मौत बंदियों के सिर पर मंडराती थी, वहां स्वातंत्र्यवीर सावरकर के शौर्य और वीरता के सामने वह हार मान चुकी थी। इसी को रंगमंच पर जब प्रस्तुत किया गया तो, उसकी भावनात्मक प्रस्तुति मात्र से रोंगटे खड़े हो गए और प्रेरणापुंज, क्रांति प्रणेता स्वातंत्र्यवीर सावरकर द्वारा राष्ट्र के लिए सहे गए कष्टों पर मन रोने लगा।
अप्रतिम संकल्पना, सुंदर प्रस्तुति
‘माझी जन्मठेप’ के अभिवाचन में स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक, मुंबई के तत्वावधान में संपन्न हुआ, जिसमें विशेष सहयोग स्मारक की कोषाध्यक्ष मंजिरी मराठे का रहा और संकल्पना अनंत वसंत पणशीकर, दिग्दर्शन डॉ.अनिल बांदिवडेकर का था। संकलन अलका गोडबोले, शब्दोच्चार मार्गदर्शन सुहास सावरकर, संगीत मयुरेश माडगावकर, प्रकाश योजना श्याम चव्हाण, अभिवाचन कला प्रस्तुतिकरण अभिजीत धोत्रे, अमृता कुलकर्णी, नवसाजी कुडव, जान्हवी दरेकर, शांतनु अंबाडेकर, मुग्धा गाडगिल-बोपर्डीकर, कुंतक गायधनी ने किया।