जब स्वातंत्र्यवीर ने कहा- दूरदर्शी हैं आंबेडकर!

भारत महान वीभूतियों से विभूषित देश है। पारतंत्रता काल में अपने जीवन, परिवार और सुखों की चिंता छोड़कर स्वतंत्रता के मतवालों ने देश को चुना। असंख्य क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों को देश के लिए अर्पित कर दिये। इन महान विभूतियों के अतुलनीय त्याग के बाद राष्ट्र को स्वतंत्रता मिली। स्वतंत्रता काल में देश में दो विलक्षण प्रतिभाएं एक ही दिशा में कार्य कर रही थीं। एक स्वातंत्र्यवीर सावरकर और दूसरे डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर।

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स्वातंत्र्यवीर सावरकर का जीवन देश के लिए समर्पित था। अपने जीवनकाल में उन्होंने देश के उद्धार और समाज सुधार के लिए तन्मयता से कार्य किया और रूढ़िवादी विचारों का विरोध करते हुए सामाजिक सुधार करनेवाले सभी लोगों का सम्मान किया। उसी काल में ऐसी ही एक और प्रतिभा देश में थी डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर के रूप में। दोनों बैरिस्टर, अंधविश्वास से समाज को मुक्ति दिलाने के लिए निरंतर प्रयत्नशील। आंबेडकर के कार्यों को ही देखकर स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने कहा था कि वे दूरदर्शी हैं।

भारत महान वीभूतियों से विभूषित देश है। पारतंत्रता काल में अपने जीवन, परिवार और सुखों की चिंता छोड़कर स्वतंत्रता के मतवालों ने देश को चुना। असंख्य क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों को देश के लिए अर्पित कर दिये। इन महान विभूतियों के अतुलनीय त्याग के बाद राष्ट्र को स्वतंत्रता मिली। स्वतंत्रता काल में देश में दो विलक्षण प्रतिभाएं एक ही दिशा में कार्य कर रही थीं। एक स्वातंत्र्यवीर सावरकर और दूसरे डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर। इन दोनों व्यक्तियों के विचारों में कई साम्यताएं थीं। दोनों बैरिस्टर थे। उत्तम वक्ता, प्रतिभावान लेखक और नेतृत्व क्षमता के अद्भुत गुणों से परिपूर्ण।

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अस्पृश्यता के निर्मूलन के लिए किया कार्य

स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने अपने रत्नागिरी की स्थान बद्धता काल में अस्पृश्यता निर्मूलन और जाति-पांति खत्म करने के लिए बहुत कार्य किये। इसी प्रकार डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर ने अस्पृश्यता निर्मूलन और बहिष्कृत समाज के उद्धार के लिए नियमित रूप से कार्य किया। स्वातंत्र्यवीर ने सप्त बंदी की श्रृंखला को तोड़ने के लिए बड़े प्रयत्न किये। अस्पृश्यों को न सिर्फ मंदिर में प्रवेश दिलाया बल्कि उन्हें गर्भगृह में बैठाकर पूजा पद्धति में सम्मिलित किया। छुआ-छूत की भावना का शमन करते हुए उन्होंने भोजन के लिए समाज के सभी पंथ और वर्ग को एक पंक्ति में बैठाया। इसी प्रकार डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर ने नासिक के कालाराम मंदिर में प्रवेश की घोषणा की। इसका खुलकर समर्थन स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने किया। इसके लिए पत्रक निकलवाकर लोगों से इसका स्वागत करने की अपील की। स्वातंत्र्यवीर के इस समर्थन से अभिभूत बाबासाहेब ने ‘समता’ नामक पत्र में उनका स्वागत किया।

एक दूसरे के प्रति था आदर

धनी लोगों का, वर्तमान पत्र और जनसमुदाय का जो समर्थन गांधी को मिलता था उसकी तुलना में आंबेडकर को मिलनेवाला यश भी अत्यंत महत्वपूर्ण था जिसका स्वातंत्र्यवीर ने अभिनंदन किया।
‘आंबेडकर का व्यक्तित्व, उनकी विद्वता, उनकी संगठन क्षमता, नेतृत्व करने की शक्ति के कारण वे बड़े आधार के रूप में गिने जा रहे हैं।’ स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने इन शब्दों में आंबेडकर का अभिनंदन किया।

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ऐसा कार्यक्षम व्यक्ति नहीं मिलेगा

1941 में लॉर्ड लिनलिथगो ने कार्यकारी मंडल की पुनर्रचना की। इसमें सात भारतीय सदस्यों को सम्मिलित किया। लेकिन उसमें दलित, सिख वर्ग से किसी को नहीं लिया। इसका आंबेडकर ने तीव्र विरोध किया। जिसका स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने पूर्ण रूप से समर्थन किया। सावरकर ने महाराज्यपाल को पत्र लिखा जिसमें उल्लेखित किया कि, ‘दलित वर्ग के प्रतिनिधि के स्थान पर डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर जैसा योग्य व्यक्ति नहीं मिलेगा।’

सैन्यकरण पर भी आंबेडकर के दूरदर्शिता की दाद

सैन्यकरण और शस्त्र शिक्षा के प्रबल समर्थक थे स्वातंत्र्यवीर सावरकर। उन्होंने लिखा, ‘आंबेडकर बहुत ही दूरदर्शी हैं उन्होंने महार रेजिमेंट का गठन करके कश्मीर को अपने पास रखने का पराक्रम किया है।’

वर्तमान की आवश्यकता हैं सावरकर व आंबेडकर

देश हित को प्राधान्य देनेवाले स्वातंत्र्यवीर सावरकर और डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर वर्तमान की आवश्यकता हैं। जाति-पांति भूलकर एक सूत्री समाज के निर्माण के लिए इन दोनों महान विभूतियों की शिक्षा और उनके मार्गदर्शन से ही विकास की नई परिपाटी पर देश दौड़ पाएगा।

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