अब वो आतंकी नहीं… गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम में शिथिलता

यह कानून भारत की संप्रभुता और एकता को खतरें में डालने वाली गतिविधियों को रोकने के उद्देश्य से बनाया गया था।

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सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के अंतर्गत आतंकी संगठन का समर्थन करने या उसके साथ जुड़ाव मात्र से किसी पर अधिनियम 38 (आतंकी संगठन की सदस्यता) और अधिनियम 39 (आतंकी संगठन की सहायता) के अंतर्गत कार्रवाई नहीं की जा सकती है।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने एक प्रकरण पर सुनवाई दौरान निर्णय दिया है कि, मात्र एक आतंकवादी संगठन के साथ संबंध अधिनियम 38 के अंतर्गत कार्रवाई के लिए पर्याप्त नहीं हैं और केवल एक आतंकवादी संगठन को दिया गया समर्थन अधिनियम 39 के अंतर्गत कार्रवाई के लिए पर्याप्त नहीं है।

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क्या है गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए)
यह अधिनियम 1967 में आया था। इसे संविधान के अनुच्छेद 19(1) के अंतर्गत दी गई बुनियादी स्वतंत्रता पर तर्कसंगत सीमाएं निर्धारित करने के लिए लाया गया था।

अधिनियम को 2019 में संशोधित किया गया, जिससे यह अधिक प्रभावशाली हो गया। इसके अंतर्गत राष्ट्र के विरुद्ध और विध्वंसकारी कार्यों में संलिप्त किसी संगठन को आतंकवादी संगठनों की सूची में डाला जा सकता है। संशोधन के पश्चात कोई व्यक्ति जो किसी आतंकवादी संगठन से संलिप्त हो उसकी जांच के बाद उसे आतंकी घोषित किया जा सकता है। अपने ऊपर लगे आतंकी आरोप को हटाने के लिए संबंधित व्यक्ति को रिव्यू कमेटी के समक्ष जाना होता है। इसके बाद वह न्यायालय की शरण में भी जा सकता है।

ऐसे होती है कार्रवाई
गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के अंतर्गत अनुच्छेद 18,19,20,38 और 39 के अंतर्गत कार्रवाई होती है।

इसमें 43डी(2) अनुच्छेद के अंतर्गत आरोपित व्यक्ति की पुलिस हिरासत अवधि को दोगुना करने का अधिकार प्राप्त है। जिसके अंतर्गत 30 दिन की पुलिस हिरासत मिल सकती है, जबकि न्यायिक हिरासत भी 90 दिन तक खिंच सकती है। जबकि सामान्य प्रकरणों में हिरासत की अवधि 60 दिन तक हो सकती है।

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