आरक्षण कोटा पर पुनर्विचार : तो मराठा आरक्षण की राह हो जाएगी आसान!

सर्वोच्च न्यायालय ने देश में आरक्षण की अधिकतम सीमा को 50 प्रतिशत निश्चित किया था। लेकिन अब सर्वोच्च न्यायालय के अधीन आए आरक्षण के मामलों को देखते हुए तीस वर्ष पहले इंदिरा साहनी विरुद्ध भारत सरकार के मामले में दिये गए निर्णय पर पुनर्विचार किया जाएगा।

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सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ अब मंडल आयोग की सिफारिशों के अंतर्गत सुनाए गए अपने आदेश पर पुनर्विचार करेगी। यह आदेश तीस वर्ष पहले दिया गया था। जिसके अंतर्गत आरक्षण कोटा की सीमा को 50 प्रतिशत पर नियंत्रित किया गया था। यदि कोटा की सीमा पर किसी प्रकार की छूट मिलती है तो इसका सीधा लाभ मराठा आरक्षण को मिल सकता है।

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय में प्रलंबित है। राजस्थान में गुजर समाज आरक्षण के मुद्दे पर कई वर्षों से आंदोलन कर रहा है। इन सभी सुनवाइयों और आंदोलनों के बीच एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय ने अपने तीस वर्ष पुराने निर्णय पर पुनर्विचार के लिए सभी राज्यों को नोटिस जारी किया है। इसके अंतर्गत राज्यों से उनकी राय पूछी गई है।

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इस प्रकरण की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ कर रही है। इसके अंतर्गत इस पर विचार हो सकता है कि पूर्व में आरक्षण को पचास प्रतिशत तक सीमित रखने की सीमा को अब बढ़ाया जा सकता है कि नहीं।

तो मिल जाएगा मराठाओं का आरक्षण
मुंबई उच्च न्यायालय ने मराठा आरक्षण को अपनी मंजूरी दी थी लेकिन उसके साथ ही यह निर्दिष्ट किया था कि इसे 16 प्रतिशत से 12-13 प्रतिशत किया जाए। जैसा कि राज्य पिछड़ा आयोग ने संस्तुति की है। उच्च न्यायालय के इस निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। जिसे सर्वोच्च न्यायालय की बृहद बेंच के समक्ष सुनवाई के लिए भेजा गया था।

संविधान के 102वें संशोधन के अनुसार राष्ट्रपति के पास पिछड़ों को अधिसूचित करने का सर्वाधिकार होता है। अब इसमें एक प्रश्न ऐसा है कि क्या राज्य विधान सभा के पास भी ऐसे अधिकार हैं। इस पर अब सर्वोच्च न्यायालय को विचार करना है कि क्या राष्ट्रपति को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निश्चित किये गए मानदंडों को मानना होगा।

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तो सीमा से बाहर होगा महाराष्ट्र में आरक्षण कोटा
यदि महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को मान्यता मिल जाती है तो राज्य में यह कोटा 68 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। जबकि मंडल आयोग के अंतर्गत दिये गए आदेश के अनुसार आरक्षण कोटा के पचास प्रतिशत की सीमा को अतिआवश्यक परिस्थितियों में ही भंग किया जा सकता है।

आरक्षण सीमा की पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1979 में मोरारजी देसाई की सरकार वे बी. पी. मंडल की अध्यक्षता में ‘द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ का गठन किया था।
  • इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सामाजिक एवं शैक्षणिक आधार पर 3,743 पिछड़ी जातियों की पहचान की, जिनकी जनसंख्या कुल जनसंख्या की लगभग 52% थी (अनुसूचित जाति एवं जनजाति के अलावा)।
  • इसके लगभग दस वर्ष बाद 1990 में वी. पी. सिंह की सरकार ने सरकारी सेवाओं में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये 27% आरक्षण की घोषणा कर दी।
  • वर्ष 1991 में पी. वी. नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने 27% आरक्षण के अलावा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये 10% आरक्षण की व्यवस्था की।
  • इन प्रावधानों को प्रसिद्ध ‘इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले’ (वर्ष 1992) में सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, जहां अन्य पिछड़ा वर्ग के लिये आरक्षण व्यवस्था को बनाए रखा गया परंतु आर्थिक आधार पर दिये गए 10% आरक्षण के प्रावधान को निरस्त कर दिया गया।

क्या था इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ के मामले में निर्णय

  • विशेष परिस्थितियों को छोड़कर कुल आरक्षित सीटों का कोटा 50% की सीमा से अधिक नहीं होना चाहिये।
  • बैकलॉग के पदों को भरने में भी 50% कोटे की सीमा का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिये।
  • इस प्रावधान को 81 वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से निरस्त कर दिया गया।
  • अन्य पिछड़ा वर्ग सूची में किसी जाति को जोड़ने तथा हटाने के परीक्षण के लिये एक स्थाई गैर-विधायी इकाई होनी चाहिये।

आरक्षण सीमा पर पुनर्विचार की आवश्यकता क्यों

  • सर्वोच्च न्यायालय में दायर कई याचिकाओं में यह तर्क दिया गया था कि मराठा आरक्षण कानून वर्ष 1992 में ‘इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार के मामले’ में सर्वोच्च न्यायालय की नौ-न्यायाधीशोंवाली पीठ द्वारा निर्धारित आरक्षण की 50% सीमा का उल्लंघन करता है।
  • इंदिरा साहनी मामले में दिया गया निर्णय लगभग 30 वर्ष पहले किया गया था, अत: इस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

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पिछड़े वर्गों की जनसंख्या अधिक

  • ‘द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग’ के अनुसार, सामाजिक एवं शैक्षणिक आधार पर लगभग 52% आबादी पिछड़ी थी (अनुसूचित जाति एवं जनजाति के अलावा)।
  • महाराष्ट्र में 85% प्रतिशत लोग पिछड़े वर्गों से संबंधित हैं। इसी प्रकार अन्य राज्यों में भी पिछड़े लोगों का प्रतिशत 50% की सीमा से अधिक है।
  • 28 राज्यों द्वारा अपने यहां संबंधित पिछड़े वर्गों को आरक्षण प्रदान करने के लिये 50% की कोटा सीमा का उल्लंघन किया गया है।

क्या है 103वां संविधान संशोधन
इसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिये 10% कोटा प्रदान किया गया है। न्यायालय को इस 10% कोटे को समाहित करते हुए कोटे पर 50% की सीमा पर फिर से विचार करना चाहिये।

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