Goa Temple Stampede: गोवा के लैराई देवी मंदिर में भगदड़, 6 लोगों की मौत; जानें कितने घायल

गोवा के लैराई देवी मंदिर में भगदड़ मचने से छह लोगों की मौत हो गई और 30 से अधिक घायल हो गए। घटना की सूचना मिलते ही मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने स्थिति का जायजा लेने के लिए उत्तरी गोवा के जिला अस्पातल और बिचोलिम अस्पताल का दौरा किया।

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उत्तरी गोवा (North Goa) में एक धार्मिक तीर्थयात्रा (Religious Pilgrimage) के दौरान भगदड़ (Stampede) मच गई। इस दुर्घटना में कम से कम 6 लोगों की मौत (Death) हो गई और 30 घायल (Injured) हो गए। घायलों को गोवा मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया है। भगदड़ की खबर मिलते ही गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत (Chief Minister Pramod Sawant) अस्पताल पहुंचे। उन्होंने घायलों के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली और पीड़ित परिवारों को सांत्वना दी।

गोवा में लैराई देवी का मंदिर (Lerai Devi Temple) प्रसिद्ध है। इस स्थान पर बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। यह मंदिर दक्षिण गोवा के शिरोडा गांव में स्थित है। इस मंदिर में हर साल तीर्थयात्रा होती है। इसमें 40 से 50 हजार श्रद्धालु भाग लेते हैं। शनिवार को यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, भीड़ में शामिल लोग एक स्थान पर उतरते समय तेज गति से चलने लगे। इससे भीड़ में अफरा-तफरी मच गई।

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मुख्यमंत्री ने दिए जांच के आदेश
घटना की जानकारी मिलने पर गोवा के मुख्यमंत्री डॉ. प्रमोद सावंत स्थिति का आकलन करने के लिए अस्पताल पहुंचे। उन्होंने उत्तर गोवा जिला अस्पताल और बिचोलिम अस्पताल में घायलों से मुलाकात की। उनके उपचार के संबंध में निर्देश दिए गए। अधिकारियों को घायलों को सभी चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया। उन्होंने हादसे की जांच के आदेश दे दिए हैं।

घटना के पीछे की वजह की पुष्टि नहीं हुई
अधिकारियों ने अभी तक भगदड़ के पीछे की वजह की आधिकारिक पुष्टि नहीं की है, लेकिन शुरुआती रिपोर्ट के अनुसारं, यह दुर्घटना भीड़भाड़ और उचित व्यवस्था न होने के कारण हुई। घटना से जुड़ी अधिक जानकारी का इंतजार है।

आग पर चलने की परंपरा
लैराई देवी यात्रा गोवा का एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहार है। यह तीर्थयात्रा हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र (मार्च-अप्रैल) माह में होती है। यह यात्रा कई दिनों तक चलती है। इस त्यौहार की सबसे प्रमुख विशेषता आग पर चलने की परंपरा है। जिसमें ‘ढोंड़’ कहे जाने वाले भक्त जलते अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं। यह अनुष्ठान उनकी आस्था और आध्यात्मिक शुद्धता का प्रतीक है।

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