हिजाब पहनने को लेकर देश में किसी को कई दिक्कत नहीं है। यदि मुद्दा है तो वह मात्र शैक्षणिक संस्थानों के यूनिफार्म के उल्लंघन का है। जिसे लोगों ने इस्लाम के विरोध का रूप दे दिया।
इस प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय में भी निर्णय अब बड़ी बेंच करेगी। दो न्यायाधीशों की खंडपीठ में इस प्रकरण में निर्णय अलग-अलग आया। न्यायाधीश हेमंत गुप्ता और सुधांशु धुलिया की खंडपीठ के समक्ष कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब न पहनने के प्रकरण में आए उच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध सुनवाई चल रही थी। जिसमें न्यायाधीश हेमंत गुप्ता ने हिजाब प्रतिबंध के उच्च न्यायालय के निर्णय पर सहमति दी, वहीं सुधांशु धुलिया ने हिजाब प्रतिबंध हटाने का निर्णय सुनाया है। उसके बाद इस याचिका को सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा, जिनके आदेशानुसार बड़ी बेंच इस प्रकरण में सुनवाई करके आदेश देगी।
क्या हिजाब न पहनने वाली महिलाएं आवारगी बढ़ाती हैं। तो उत्तर आएगा… नहीं… तो इस्लाम में क्या हिजाब अनिवार्य है, आइए जानते हैं क्या कहते हैं इस्लाम के जानकार।
बीबीसी हिंदी ने इस विषय में अलग अलग इस्लामी जानकारों से राय जानी, इसमें कई मौलवियों की राय है कि, मुस्लिम महिलाओं को हिजाब के बजाय परंपरागत रूप से समाज की अन्य महिलाओं की तरह सिर पर पहना जानेवाला दुपट्टा ओढ़ना चाहिये।
इसी प्रकार जामिया मिल्लिया में इस्लामिक अध्ययन के प्रोफेसर एमीरेट्स अख्तरूल वासे एक हिंदी वेबसाइट से कहते हैं, ,”यह हिंदू धर्म या सिख धर्म की महिलाओं के पहनने वाले कपड़ों से अलग नहीं है, जहां सिर को घूंघट या दुपट्टे से ढका जाता है। इस्लामी कानून के तहत सलवार, कमीज़ (या जंपर) के साथ सिर्फ दुपट्टा ज़रूरी है, जो सीने और सिर को ढंकता है।
जामिया मस्जिद, बेंगलुरु के इमाम-ओ-ख़तीब मौलाना डॉ. मक़सूद इमरान रश्दी ने बीबीसी हिंदी से कहा, “सिर्फ़ इतना ही ज़रूरी है कि पूरे बदन को ढकने वाली यूनिफॉर्म के साथ एक दुपट्टा, चाहे उसका रंग जो भी हो, पहना जाए। बुर्का पहनना जरूरी नहीं है। अगर दुपट्टा पहना जाता है, तो यह इस्लाम के निर्देश को पूरा करने के लिए काफी है।
इस्लामी जानकारों के अनुसार तो हिजाब पर कहीं विवाद होना ही नहीं चाहिए। फिर यह विवाद क्यों, क्या इस पर इस्लाम को माननेवालों को गुमराह किया जा रहा है। कौन जहर घोलकर अपनी रोटी सेंकना चाह रहा है, यह जानना जरूरी है।
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