मुंबई की लड़की की दिल्ली में हत्या कर उसके शव के 35 टुकड़े किए जाने का सनसनीखेज मामला इन दिनों सुर्खियों में है। इस बीच दिल्ली के साकेत न्यायालय ने आफताब की पुलिस कस्टडी पांच दिनों के लिए बढ़ा दी है। इसके साथ ही कोर्ट ने आफताब की नार्को टेस्ट करने की भी अनुमति दे दी है।
अब दिल्ली पुलिस आफताब का नार्को टेस्ट करेगी। इस टेस्ट से वह मामले की जड़ तक पहुंचने की कोशिश करेगी।
आइए, जानते हैं कैसे होता है यह टेस्ट और कैसे कसा जाता है अपराधियों पर शिकंजा..
सबसे पहले नार्को टेस्ट वर्ष 1922 में किया गया था। रॉबर्ट हाउस नाम के एक डॉक्टर यह टेस्ट दो अपराधियों पर किया था। यह टेस्ट अपराधियों से सच उगलवाने में काफी सफल रहा था।
ऐसे होता है नार्को टेस्ट
-शातिर और बड़े अपराधियों का किया जाता है नार्को टेस्ट
-नार्को टेस्ट के लिए न्यायालय से अनुमति लेना जरुरी
-बच्चों, वृद्धों और शारीरिक रूप से कमजोर लोगों का नहीं होता नार्को टेस्ट
टीम में कौन-कौन होता है?
नार्को टेस्ट करने से पहले एक्सपर्ट की एक टीम का गठन किया जाता है। टीम में फॉरेंसिक एक्सपर्ट के साथ ही डॉक्टर, मनोवैज्ञानिक, जांच अधिकारी और पुलिस का समावेश होता है। 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक आदेश जारी कर कहा था कि व्यक्ति की अनुमती के बिना उसका नार्को टेस्ट नहीं किया जा सकता।
दी जाती हैं कई तरह की दवाएं
नार्को टेस्ट में अपराधी को ट्रुथ ड्रग दिया जाता है। इसके सेवन के बाद इंसान सच बोलने लगता है। इसे कई दवाओं को मिलाकर बनाया जाता है। इन्हें इंजेक्शन के माध्यम से दिया जाता है। इन्जेक्शन द्वारा इथेनॉल और सोडियम पेंटाथॉल के साथ ही कई ऐसी दवाएं दी जाती हैं। इससे इंसान अर्धबेहोशी की स्थिति में चला जाता है। उसकी कल्पना करने की शक्ति खत्म हो जाती है और वो सच उगलने लगता है।
पहले पूछे जाते हैं आसान सवाल
-इंजेक्शन द्वारा दी गई दवा काम कर रही है या नहीं, यह पता लगाने के लिए उससे पहले बुहत ही आसान सवाल पूछे जाते हैं।
-इसके बाद टीम उससे हां और नहीं में जवाब दिए जाने वाले सवाल पूछती है।
-इसके बाद उससे सख्त सवाल पूछे जाते हैं। इस दौरान विशेषज्ञ मशीन पर नजर बनाए रखते हैं।
-इस टेस्ट में एक मशीन का इस्तेमाल किया जाता है। यह मशीन इंसान की उंगलियों से जुड़ी होती है और इसमें इंसान की सभी एक्टीविटीज कैद हो जाती हैं।