मुंबई के साथ ही महाराष्ट्र के अन्य शहरों की आबादी जिस तेजी से बढ़ रही है। इन शहरों में आबादी के साथ ही तरह-तरह के अपराधों में भी तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। इन अपराधों पर नियंत्रण पाने में पुलिस बल कम पड़ रहा है। इसके साथ ही इसकी जांच की गति भी प्रभावित हो रही है। गृह विभाग के अंतर्गत आनेवाले पुलिस बल और फॉरेंसिक विभाग में स्टाफ की भारी कमी है। इस कारण समय पर फॉरेंसिक रिपोर्ट नहीं मिलने से राज्य में हजारों मामले जांच का इंतजार कर रहे हैं। प्रजा फाउंडेशन नामक एक गैरसरकारी संस्था ने इन दोनों विभागों में अधिकारियो व कर्मचारियों का आंकड़ा जारी किया है।
आबादी बढ़ी लेकिन पुलिस बल नहीं
मुंबई, पुणे, नाशिक और नागपुर के साथ ही राज्य के अनेक शहरों में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। इसके साथ ही अपराधों में भी तेजी से वृद्धि हो रही है। इन शहरों में हर दिन सैकड़ों अपराध होते हैं। लेकिन इन पर नियंत्रण और इनकी जांच के लिए संबंधित विभागों के पास पर्याप्त अधिकारी-कर्मचारी नहीं हैं। कई आपराधिक मामलों में पुलिस उसकी फॉरेंसिक जांच पर निर्भर रहती है। इसके बिना उस केस की जांच को आगे बढ़ाना संभव नहीं होता। लेकिन ऐसे हजारों मामले हैं,जिनकी फॉरंसिक रिपोर्ट आनी बाकी है। ऐसे मामले साल दर साल बढ़ते जा रहे हैं।
51, 068 अधिकारी-कर्मचारी की जगह मात्र 41,788 कार्यरत
प्रजा फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार मुंबई पुलिस बल में जुलाई 2019 से 2020 के दरम्यान 51, 068 अधिकारी-कर्मचारी की जगह मात्र 41,788 अधिकारी-कर्मचारी ही काम कर रहे हैं। इस तरह वर्तमान में 18 फीसदी अधिकारी-कर्मचारी कम हैं। इस वजह से अपराधों की जांच में 35 फीसदी कमी आई है।
फॉरेंसिक विभाग में है बहुत कम स्टाफ
पुलिस बल की तरह ही फॉरेंसिक विभाग में भी अधिकारी व कर्मचारियों की कमी है। फॉरेसिंक विभाग में राज्य भर में 8 प्रादेशिक विभाग और पांच महानगरीय विभाग हैं। राज्य भर से आए डीएनए ,बिसरा और अन्य तरह की जांच रिपोर्ट फॉरेंन्सिक विभाग तैयार करता है।
ये हैं आंकड़े
- फॉरेंसिक विभाग के पर्थम दर्जे के अधिकारी 36 पद स्वकृत किए गए हैं। उनकी जगह मात्र 13 अधिकारी काम कर रहे हैं। यानी 23 जगह रिक्त है।
- दोयम दर्जे के 98 अधिकारियों की स्वीकृति है,जबकि मात्र 41 अधिकारी कार्यरत हैं। यानी 57 जगह रिक्त है।
- तीसरे दर्जे के कुल 178 जगह की स्वीकृति है, लेकिन मात्र 120 लोग कार्यरत हैं। यानी 58 जगह खली है।
- चतुर्थ श्रेणी के 426 कर्मचारियों की स्वीकृति है, लेकिन मात्र 249 कार्यरत हैं।
- ये आंकड़े 2019से 2020 के बीच के हैं।
क्या कहते हैं अधिकारी?
फॉरेंसिक विभाग के निदेशक कृष्णा कुकर्णी का कहना है कि प्रजा फाउंडेशन संस्था द्वारा जारी आंकड़े सही हैं। स्टाफ की कमी के कारण जांच में देरी होती है। जिन अपराधों की फॉरेंसिक रिपोर्ट ज्यादा जरुरी होती है, उसकी जांच को प्राथमिकता दी जाती हैं।
गृह विभाग का एक अधिकारी
गृह विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि फॉरेंसिक विभाग की रिपोर्ट आने में देरी होने से अपराधों के आरोप पत्र दाखिल करने में विलंब होता है। इस वजह से कई बार अपराधी जमानत पर छूट जाते हैं और बिन्दास्त बाहर घुमते हैं।