वीर सावरकर के विरुद्ध वह षड्यंत्र था! गांधी हत्या में फंसाने के लिए लगाया गलत कानून, न्याय के लिए दायर याचिका सर्वोच्च न्यायालय में स्वीकार, लाइव स्ट्रीमिंग की मांग

स्वतंत्रताकाल और उसके पश्चात हिंदू महासभा देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी। जिसके नेता स्वातंत्र्यवीर सावरकर थे। जवाहरलाल नेहरू ने अपनी सत्ता के लिए देश के विभाजन पर अकेले सहमति दे दी और भारत की सत्ता प्राप्ति कर ली।

Dr.Pankaj Phadnis

गांधी जी की हत्या के प्रकरण में वीर सावरकर को फंसाया गया था। यह सब वीर सावरकर के राजनीतिक भविष्य को समाप्त करने के लिए किया गया था। इसका परिणाम था कि, न्यायालयीन सुनवाई के बाद स्वातंत्र्यवीर सावरकर को ससम्मान छोड़ना पड़ा। उस काल में वीर सावरकर पर हुए इस अन्याय के विरुद्ध अभिनव भारत काँग्रेस के संस्थापक अध्यक्ष डॉ.पंकज फड़नीस ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की है। इस याचिका को डब्लूपी/328-2023 नंबर दिया गया है और शीघ्र ही यह लिस्टिंग में आ जाएगी। इस याचिका में चुनौती देते हुए बताया गया है कि, वीर सावरकर को ‘मिस्ट्रियल’ अर्थात एक गलत कानून में फंसाया गया था। इस पूरे प्रकरण की लाइव स्ट्रीमिंग की मांग भी याचिका में की गई है।

अपनी याचिका में डॉ.पंकज फड़नीस ने जो मांग रखी है, उसमें, वीर सावरकर को कैसे गलत ढंग से फँसाया गया और कैसे कानूनों का उल्लंघन किया गया? इसकी पुनर्जांच हो न्याय मिले। इसके अलावा स्वातंत्र्यवीर सावरकर के स्वप्न को पूर्ण किये जाने का आदेश दिया जाए, जिससे सरकार द्वारा भारतीय छात्रों को अमेरिका में पढ़ने के लिए भेजा जाए। इस याचिका में एक और महत्वपूर्ण पक्ष है सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस प्रकरण की सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग का। जिससे इस प्रकरण को लोग देख पाएं।

स्वातंत्र्यवीर सावरकर को षड्यंत्र कर फँसाया: गांधी हत्या के प्रकरण में पुनर्जांच की मांग करते हुए याचिकाकर्ता ने कहां है कि, जिन कानूनों के अंतर्गत वीर सावरकर पर प्रकरण चलाया गया वह कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन था। वीर सावरकर को इस प्रकरण में, एक अभियुक्त दिगंबर बड़गे, जिसे सरकारी गवाह बनाया गया था और माफी दे दी गई थी, उसके बयान पर जोड़ दिया गया। जिन कानूनों के अधीन यह सब किया गया, उसमें ऐसे प्रावधान ही नहीं थे। साक्ष्य झूठे थे, एक आरोपी को जिस प्रकार से एप्रूवर बनाया गया था, वह गैर कानूनी प्रक्रिया थी। जिस न्यायालय ने अप्रूवर के रूप में आरोपी दिगंबर बड़गे को मान्यता दी थी, वह निर्णय करना कानूनन उस न्यायालय के न्यायाधिकार में वह था ही नहीं।

क्या किया कांग्रेस ने? इस प्रकरण में न्यायालय द्वारा उसके न्यायाधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर अप्रूवर के रूप में दिगंबर बड़गे को मान्यता दी गई थी। इसके लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने न्यायालय के निर्णय देने के तीन महीने बाद यानी 9 सितंबर, 1948 को एक अध्यादेश पारित किया और उस न्यायालय को बैक डेटेड तारीख से अधिकार दे दिया। यह संविधान का उल्लंघन है, जिसके लिए सर्वोच्च न्यायालय से मांग की गई है कि, उस अध्यादेश को गैनकानूनी करार दिया जाए। यदि ऐसा होता है तो दिगंबर बड़गे को अप्रूवर के रूप में मिली मान्यता भी रद्द हो जाएगी।

वीर सावरकर का स्वप्न पूरा करें: 8 फरवरी, 1944 को अमेरिकन दूतावास के अधिकारी ने वीर सावरकर से मुंबई के सावरकर सदन में भेंट की। अधिकारी ने वीर सावरकर से विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की। इस चर्चा की रिपोर्ट उस अमेरिकी अधिकारी ने वाशिंग्टन को भेजा। उसमें उन्होंने पूछा कि आप हिंदू राष्ट्र की बात करते हैं, हिंदू राष्ट्र में अल्पसंख्यकों को क्या अधिकार रहेगा? इस पर वीर सावरकर ने दो टूक उत्तर दिया कि, हिंदू राष्ट्र का यह अर्थ नहीं है कि, हिंदुओं को अलग अधिकार मिलेगा और मुसलमानों को वह अधिकार नहीं रहेगा। जितने धर्म हैं सब पर इक्वालिटी ऑफ लॉ लागू रहेगा।

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वीर सावरकर ने 1944 में कहा था कि, यदि उनका बस चलता तो, दस हजार बच्चों को शिक्षा के लिए अमेरिका भेजते। जिससे भारतीय समाज का भला हो पाता। इसलिए वर्तमान सरकार को स्वातंत्र्यवीर सावरकर की वह मांग मानते हुए दस हजार छात्रों को अमेरिका शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजना चाहिये।

हो लाइव स्ट्रीमिंग
स्वातंत्र्यवीर सावरकर को झूठे रूप से फँसाने के प्रकरण की सर्वोच्च न्यायालय में होनेवाली सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग करना चाहिये। इसे जनसामान्य को सुनने और देखने का अवसर देना चाहिये। जिससे सच्चाई का ज्ञान लोगों को हो सके।
रणजीत सावरकर – कार्याध्यक्ष, स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक

इस प्रकरण में याचिकाकर्ता डॉ.पंकज फड़नीस सावरकर के प्रखर अनुयायी हैं। वे पंद्रह वर्षों तक दादर स्थित सावरकर सदन में रह चुके हैं और स्वतंत्रता प्राप्ति काल और उसके पश्चात वीर सावरकर के साथ किये गए द्वेषपूर्ण व्यवहार की सच्चाई हर मंच पर उठाना चाहते हैं। इसके लिए वे सर्वोच्च न्यायालय में याचिका लेकर पहुंचे हैं।

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