भारत लोकतांत्रिक राष्ट्र है। जिसमें न्याय का अधिकार सभी को है लेकिन, क्या ये अधिकार अशांति, आतंकी गतिविधि करनेवाले घुसपैठियों को भी देना चाहिए? यही प्रश्न वर्षों से झेल रहा था जम्मू। जब अवसर मिला तो प्रशासन ने जम्मू में अवैध रूप से बसाए गए रोहिंग्या मुसलमानों पर कार्रवाई कर दी। इस कार्रवाई से रोंहिग्या मुसलमानों का जो दर्द उठा उसका दुख अधिवक्ता प्रशांत भूषण को भी छू गया है। और वे रोहिंग्या मुसलमान मोहम्मद सलीमुल्लाह का दर्द लेकर सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने लगे।
एक तो चोरी दूसरे सीना जोरी… दशकों से घुसपैठ करके भारत में रहनेवाले रोहिंग्या मुसलमानों की यही स्थिति है। अवैध रूप से रहनेवाले रोहिंग्या का पता लगाने के लिए जम्मू प्रशासन ने एक अभियान चलाया था। इसमें अवैध रूप से रहनेवाले लगभग 155 रोहिंग्याओं को हिरासत केंद्रों में भेज दिया गया। इससे रोहिंग्याओं को बड़ा दुख हुआ तो वे सर्वोच्च न्यायालय में अंतरिम याचिका दायर करने से लेकर संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी मामलों के आयुक्त की दुहाई देने लेगे हैं।
ट्रोल हो गए प्रशांत भूषण
अधिवक्ता प्रशांत भूषण का विवादों से चोली-दामन का साथ रहा है। वे रोहिंग्या के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय लेकर पहुंचे तो लोगों ने ट्रोल करना शुरू कर दिया। उन्हें सोशल मीडिया पर 1993 के मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन के सुनवाई वाले मामले से भी जोड़कर लोग खरी-खोटी सुनाने लगे।
Join Our WhatsApp Community