पर्यावरणवादी ग्रेटा थनबर्ग द्वारा पोस्ट किए गए टूलकिट के विशेषज्ञ (रिसोर्स पर्सन) के रुप में विदेशी नागरिक पीटर फ्रेडरिक का नाम लिया जा रहा है। इंफो-वार-अगेंस्ट इंडिया के संबंध में ओएसआइएनटी जांच में भी इस शख्स का नाम उजागर हुआ था। प्राप्त जानकारी के अनुसार पीटर का संबंध खालिस्तानी आंतकवादियों के साथ ही पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ से है।
द यूएस एंडिंग वारः फ्रॉम प्रोक्सी वार टू इंफो-वार अंगेस्ट इंडिया शीर्षक से प्रकाशित इस रिपोर्ट में 2007 से शुरू इस साजिश के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसमें अमेरिका में मौजूद कंपनियां, फर्जी विदेशी विशेषज्ञ और मुखौटा संस्थाएं शामिल हैं। रिपोर्ट में इसके पूरे इतिहास के बारे में विस्तार से बताया गया है।
1980 में आया भिंडर का नाम
1980 के आसपास उथल-पुथल के वर्षों में एक अज्ञात खालिस्तानी भजन सिंह भिंडर उर्फ इकबाल चौधरी का नाम सामने आया था। उसका दावा था कि वह मूल रुप से मलेशिया का रहनेवाला है और अमेरिका में काम कर रहा था। वह पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ की सहायता से एक अन्य आतंकवादी लाल सिंह के माध्यम से भारत के अलग-अलग शहरों में बड़े पैमाने पर हिंसक गतिविधियां को अंजाम देने के लिए आतंकी नेटवर्क की फंडिंग कर रहा था। लेकिन लाल सिंह के दादर रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार होने के बाद उसका यह षड्यंत्र असफल हो गया।
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2011 में भारत ने भिंडर को काली सूची में डाल दिया
इस साजिश का खुलासा होने के बाद 2011 में भारत ने भिंडर को भी काली सूची में डाल दिया। भारत में उक्त हमलों की योजना के-2 यानी कश्मीर-खालिस्तान नाम की बड़ी साजिश का हिस्सा थी। यह साजिश लाहौर में जमात-ए-इस्लामी के तत्कालीन सचिव आमिर उल अजीम के संरक्षण में कई पाकिस्तानी प्रतिष्ठानों की सहायत से रची गई थी, साजिशकर्ताओं में पाकिस्तान के वर्तमान मंत्री फवाद चौधरी के चाचा चौधरी अल्ताफ हुसैन भी शामिल थे।
भारत में हथियार भेजने की रची साजिश
उस वक्त भिंडर अमेरिका में अपने गैंग के साथ ड्रग तस्करी नेटवर्क और डीवीडी पाइरेसी नेटवर्क में लिप्त था। इसी क्रम में उसने जबर्दस्त खूनखराबा किया था और अमेरिका के सबसे प्रमुख गुरुद्वारे पर नियंत्रण कर लिया था। फ्रीमोंट नामक इस गुरुद्वारे को हर साल करोड़ों डॉलर चंदा मिलता है। इस दौरान भिंडर ने पाकिस्तान के रास्ते भारत में भेजने के लिए हथियार खरीदी की कोशिश भी की थी। लेकिन इससे पहले ही वह अमेरिकी पुलिस के रडार पर आ गया और अपने इस नापाक साजिश को अंजाम नहीं दे सका।
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2006-7 में भिंडर को मिला पीटर फ्रेडरिक
साजिश विफल होने के बाद और नई सदी में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स उपलब्ध होने के बाद भिंडर ने अपना ध्यान भारत के खिलाफ इंफो-वार छेड़ने पर फोकस कर दिया। इसके लिए उसने संगठन बनाने और नए लोगों की तलाश शुरू कर दी। 2006-7 में भिंडर को युवा ईसाई पीटर फ्रेडरिक मिला,जो बोलने के साथ ही लिखने में निपुण था और आधुनिक तकनीकी का जानकार था। वह उस समय अच्छी कमाई की तलाश में था। इसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार था। वह भिंडर का विशेषज्ञ और कार्यकर्ता बनने का ऑफर ठुकरा नहीं सका।
आइएसआइ लिंक का पर्दाफाश
फिलहाल किसानों से जुड़े टूलकिट को शेयर करने को लेकर रवि दिशा को गिरफ्तार किया गया है। इसमें पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के लिंक का भी पर्दाफाश हुआ है। दिल्ली पुलिस ने कहा है कि वह टूलकिट के संबंध में पीटर फ्रेडरिक नामक शख्स की भूमिका की जांच कर रही है।
टूलकिट मामले में आया नाम
2006 में भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर रहे फ्रेडरिक का नाम टूलकिट मामले में भी आया है। फ्रेडरिक पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से भी जुड़ा है। दिल्ली पुलिस के मुताबिक ग्रेटा थनबर्ग ने जो टूलकिट शेयर किया था, उसमें फ्रेडरिक का भी नाम था। 2006 में वह भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर था। तब उसे भजन सिंह भिंडर उर्फ इकबाल चौधरी की कंपनी में देखा गया था। फ्रेडरिक आइएएसआइ के के-2( कश्मीर-खालिस्तन) डेस्क से जुड़ा एक प्रमुख व्यक्ति और भिंडर का सहयोगी है।