मुंबई के बालक बलवान निकले, ये कारण आया सामने

सिरो सर्वे के माध्यम से स्वास्थ्य विभाग एक निश्चित अंतराल पर लोगों के शरीर में बननेवाली रोग प्रतिरोधक क्षमता का अध्ययन करता है। इसे चिकित्सकीय भाषा में एंटीबॉडी कहते हैं।

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मुंबई में जनसंख्या घनत्व के हिसाब से संक्रामक रोगों का खतरा सदैव बना रहता है। यही कारण है कि स्वास्थ्य सेवाएं शहर में सज्ज रखने का प्रयत्न कियाा जाता रहा है। अब कोरोना की तीसरी लहर की चर्चा है, सरकार इसके प्रतिबंधात्मक और उपचार संसाधन खड़ा करने का उपाय कर रही है। तीसरी लहर का सबसे बड़ा खतरा बच्चों के है ऐसा अनुमान व्यक्त किया जा रहा है। इसी परिप्रेक्ष्य में मुंबई महानगर पालिका ने बच्चों का सिरो सर्वे करवाया है जिसके परिणाम अच्छे आए हैं।

बच्चों का सिरो सर्वे मुंबई के नायर अस्पताल और कस्तुरबा अस्पताल के सूक्ष्म जीव वैद्यकीय निदान प्रयोगशाला के द्वारा किया गया है। इसके लिए शहर के अलग-अलग क्षेत्रों से आए बालकों के रक्त नमूनों का परीक्षण किया गया।

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इसके अंतर्गत शहर के 24 प्रशासकीय विभाग से 2 हजार 176 नमूने इकट्ठा किये गए थे। यह नमूने जिन बालकों के थे उससे प्रयोगशालाएं अंजान थीं। इन संकलित रक्त का एंटीबॉडी परीक्षण किया गया। जिसके परिणाम आश्चर्यजनक ही नहीं परंतु कोरोना से लड़ाई में आशादायक भी हैं।
मुंबई शहर के 51.18 प्रतिशत बालकों में एंटीबॉडी पाई गई है। इसमें से मनपा प्रयोगशाला के 54.36 प्रतिशत और      निजी प्रयोगशाला के 47.03 प्रतिशत नमूनों में एटीबॉडी मिली
10 से 14 वर्ष क आयु के 53.43 प्रतिशत किशोरों में एंटीबॉडी मिली

यदि आयु वर्ग के हिसाब से एंटीबॉडी मिलने का प्रमाण देखा जाए तो…
1 से 4 वर्ष 51.04 प्रतिशत
 5 से 9 वर्ष 47.33 प्रतिशत
 10 से 14 वर्ष 53.43 प्रतिशत
15 से 18 वर्ष 51.39 प्रतिशत नमूनों में एंटीबॉडी मिली है

इसके पहले मार्च 2021 में किये गए सिरो सर्वे में 18 वर्ष से कम आयु वर्ग के 39.04 प्रतिशत बालकों में एंटीबॉडी पाई गई थी। इसका अर्थ है कि अब बालकों में एंटीबॉडी निर्माण की प्रमाण बढ़ा है, जबकि इसका दूसरा कारण है कि दूसरी लहर में बड़ी संख्या में बच्चे कोविड 19 संक्रमण के सानिध्य में आ चुके हैं।

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