26/11 आतंकी हमला: तुकाराम ओंबले की वीरता ने उस षड्यंत्र से उठाया पर्दा

मुंबई पर हुए आतंकी हमले ने पाकिस्तानी षड्यंत्रों की पोल खोल थी। जिनसे विश्व को उसकी करतूतों का साक्ष्य मिला।

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भारतीय इतिहास के पन्नों पर 26 नवम्बर 2008 वह काला अध्याय है जिस दिन देश की औद्योगिक राजधानी समझी जाने वाली मुम्बई पर सबसे भीषण और सबसे सुनियोजित हमला हुआ था। इस हमले में प्रत्यक्ष हमलावर मात्र दस थे जिन्होंने, तीन दिनों तक पूरे देश में आतंक मचाए रखा। इस हमले को 14 साल बीत गए लेकिन, कुछ प्रश्नों का समाधान अभी तक नहीं हुआ, कुछ रहस्यों पर आज भी पर्दा है। हमले का एक पहलू यह भी है कि एएसआई तुकाराम ओंबले ने गोलियों से छलनी होकर भी आतंकवादी कसाब को जिंदा पकड़ लिया था। कसाब की पकड़ से ही भारत यह प्रमाणित कर पाया कि इस हमले के पीछे पाकिस्तान का हाथ है।

आतंकवादी हमलों से कोई नहीं बचा, आधी से ज्यादा दुनिया आक्रांत है। अमेरिका, इंग्लैंड और फ्रांस जैसे देशों ने भी आतंकवादी हमले झेले हैं। इन सब हमलों के पीछे एक विशेष मानस और मानसिकता रही है। जो दुनिया को केवल अपने रंग में रंगना चाहती है। हालांकि, अब तक हुए आतंकवादी हमलों में सबसे भीषण हमला अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड टॉवर पर हुआ हमला माना जाता है। पर मुम्बई का यह हमला उससे कहीं अधिक घातक माना गया। यह आधुनिकतम तकनीक और सटीक व्यूह रचना के साथ हुआ था। कोई कल्पना कर सकता है कि केवल दस आदमी सवा सौ करोड़ के देश की दिनचर्या तीन दिनों तक हलाकान कर सकते हैं।

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ऐसे पहुंचे भारत
कुल दस हमलावर आए थे, जो एक विशेष आधुनिकतम नौका द्वारा समुद्री मार्ग से मुम्बई समुद्र किनारे आए थे। वे रात्रि लगभग सवा आठ बजे कुलाबा तट पर पहुँचे थे। सभी एक ही बोट में आए थे। उनके हाथ में कलावा बंधा था और कुछ के गले में भगवा दुपट्टा भी दिख रहा था। सभी के पास बैग थे। ये जैसे ही समुद्र किनारे उतरे मछुआरों ने देखा। उन्हें ये लोग सामान्य न लगे, न कद काठी और न वेशभूषा में। सामान्यतः ऐसी भगवाधारी टीम नाव से कभी न आती। नाव भी विशिष्ट थी इसलिये मछुआरों को उनमें कुछ अलग लगा। मछुआरों ने इसकी सूचना वहां तैनात पुलिस पाइट को भी दी थी। किंतु पुलिस को मामला इतना गंभीर न लगा जितना बाद में सामने आया।

पांच टार्गेट लेकर आए थे आतंकी
आतंकीवादी कोलाबा से बाहर दो टोलियों में निकले, बाद में पाँच की टोली बंट गए। इन्हें पाँच टारगेट दिये गये थे। प्रत्येक टार्गेट पर दो-दो लोगों को पहुंचना था। ये टार्गेट थे होटल ताज, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, नरीमन हाउस, कामा अस्पताल और लियोपोल्ड कैफे थे। कौन कहाँ कब पहुँचेगा यह भी सुनिश्चित था। ये सभी रात सवा नौ बजे तक अपने अपने निर्धारित स्थानों पर पहुँच गए थे। हमला साढ़े नौ बजे से आरंभ हुआ। इन्हें पाकिस्तान में बैठकर कोई जकीउर रहमान कमांड दे रहा था। जकी ने साढ़े नौ बजे हमले की कमांड दी। ये सभी अपने दिमाग से नहीं अपितु मिल रही कमांड के आधार पर काम कर रहे थे, इसलिये अपने टार्गेट पर पहुँचकर इन्होंने कमांड का इंतजार किया। कहाँ बम फोड़ना है, कहाँ गोली चलानी है, कितनी गोली चलानी है, यह भी कमांड दी जा रही थी। ये हमला कितनी आधुनिक तकनीक से युक्त था, इसका अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान में बैठा जकीउर रहमान इन सभी को देख सकता था और वह देखकर बता रहा था कि किसे क्या करना है। वह किसी ऐसी आधुनिक प्रयोगशाला में बैठा था जहाँ से इन्हें आगे बढ़ने, दाएं या बाएं मुड़ने का मार्ग भी बता रहा था और आगे पुलिस प्वाइंट कहां है यह भी बताता था।

कसाब की गिरफ्तारी ने खोले राज
बहुत संभव है कि इन पाँचों टीम को कमांड देने वाले अलग अलग लोग हों। बाकी हमलावरों को मार गिराया गया इसलिये उनका रहस्य, रहस्य ही रह गया। जकी का नाम इसलिये सामने आया क्योंकि, कसाब पकड़ा गया और उसने नाम बताया। कसाब और इस्माइल नाम के दो आतंकी कार से गिरगांव चौपाटी की सड़क पर जा रहे थे। वहां बैरिकेडिंग की गई थी। जहां एएसआई तुकाराम ओंबले अपने साथियों के साथ तैनात थे। बैरिकेडिंग के लगभग पचास मीटर पहले ही एक गाड़ी रुकी। गाड़ी इस्माइल चला रहा था और कसाब बगल में था। गाड़ी मुड़ने लगी, पुलिस ने रोकने की कोशिश की तो कसाब ने गोलियां चलाना शुरू कर दी। पुलिस ने जवाबी गोलियाँ चलाई, गोली इस्माइल को लगी, गाड़ी तिरछी होकर रुक गयी, कसाब ने उसे सरकाकर ड्राइविंग संभालने की कोशिश करने लगा।

इस मौके का लाभ उठाया एएसआई तुकाराम ओंबले ने। वे दौड़कर कार के पास गए। जैसे ही वे करीब पहुंचे स्टेनगन से गोलियाँ चलनी शुरू हो गयी। तुकाराम ने बंदूक की नाल पकड़ ली। गोलियां उनके सीने और शरीर को बेधने लगी। गोलियों की बौछार के बीच उन्होंने उछालकर कसाब के ऊपर गिरने की कोशिश भी की। स्टेनगन वे पकड़े थे, गोलियां चल रहीं थीं, उनके सीने पर लग रहीं थीं । उनकी पीठ के पीछे अन्य पुलिस टीम थी इसका लाभ दो सिपाहियों को मिला । वे फुर्ती से निकले और कसाब को जिन्दा पकड़ लिया।

ऑपरेशन ब्लैक टॉर्नेडो
आतंकवादियों से निबटने के लिए सुरक्षा बलों ने ऑपरेशन “ब्लैक टोर्नेडो” चलाया था। यह मुकाबला कोई साठ घंटे चला। अंतिम मुकाबला होटल ताज में हुआ था। आतंकवादी अपनी योजना और कमांड के अनुसार हर स्पाट पर दो-दो लोग थे। होटल ताज को इन दो आतंकवादियों से मुक्त कराने में सुरक्षा बलों को पसीना आ गया था। इसका एक कारण यह था कि सुरक्षा बलों को इनकी लोकेशन का पता देर से लगा जबकि, आतंकवादियों को होटल के हर कोने की गतिविधियों का पता कमांड से चल रहा था। आतंकवादियों को होटल में सुरक्षा बलों के मूवमेंट का पता होता था, जबकि सुरक्षा बलों को डेढ़ दिन तक इनके मूवमेंट का पता न चल रहा था। आतंकवादियों ने होटल के कैमरे और लिफ्ट सिस्टम को नष्ट कर दिया था। जबकि, पाकिस्तान में बैठा इनका कमांडर होटल की हर गतिविधि को देख रहा था और उसी अनुसार इन्हें कमांड दे रहा था जिससे ये अपनी लोकेशन बदल लेते थे। इसलिये वे होटल ताज में जन और धन दोनों का अधिक नुकसान कर पाए।

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