क्या है कार्बन डेटिंग? ज्ञानवापी शृंगार गौरी प्रकरण में की गई थी कार्बन डेटिंग की मांग

श्रीराम जन्मभूमि को लेकर चल रहे विवाद के समय वहां की भी कार्बन डेटिंग की गई थी। इसी आधार पर ज्ञानवापी शृंगार गौरी परिसर में मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की मांग गई गई थी।

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जीवों की आयु जन्म समय से पता चल जाती है, परंतु पौधे, मृत जीव, जीवाश्म का आयु निर्धारण कठिन होता है। इसके निर्धारण कि लिए कार्बन डेटिंग प्रक्रिया से जांच की जाती है। इससे संबंधित वस्तु या पौधे की आयु और उसके इतिहास का आधार लेकर उसकी विकास प्रक्रिया का पता चलता है।

किसकी होती है कार्बन डेटिंग?
कार्बन-14 एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कार्बन आधारित सामग्री की जांच करके आयु का पता लगाया जाता है। परंतु, यह जांच मात्र उसी पदार्थ या वस्तु की होती है, जो कभी जीवित रहा होगा या वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड लेता रहा होगा।

कार्बन डेटिंग जीवाश्म विज्ञानियों के लिए वरदान है, लेकिन पत्थर या चट्टानों की जांच के लिए इसकी कुछ सीमाएं हैं, जिसमें कार्बन डेटिंग मात्र उन्हीं चट्टानों की होती हैं जिनकी आयु पचास हजार वर्ष से कम हो।

क्या है कार्बन-14?
कार्बन-14 एक रेडियोएक्टिव है, इसका आधा जीवन लगभग 5,700 वर्षों का होता है। जब वायु मंडल से आती सूर्य की किरणें ब्रम्हांडीय किरणों से मिलती हैं तो कुछ कॉस्मिक किरणें वातावरण में परमाणु से टकराती हैं। इस टकराव में एक कार्बन-14 नामक परमाणु युक्त द्वितीयक ब्रम्हांड किरण का निर्माण होता है। कार्बन -14 परमाणु जब ऑक्सीजन से मिलता है तो कार्बनडाइ ऑक्साइड का निर्माण होता है। प्रकृति में मौजूद पौधे इस कार्बनडाइ ऑक्साइड को ग्रहण करते हैं, जिसे फोटो सिंथेसिस कहा जाता है।

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कार्बन-14 से आयु का अनुमान
कोई भी जीव, पौधा या मानव की जब मृत्यु होती है तो कार्बन-14 का संतुलन अवरुद्ध हो जाता है। वैज्ञानिक आयु स्थापित करने के लिए बची हुई कार्बन-14 की मात्रा का विश्लेषण करते हैं, जिससे आयु का अनुमान लगता है।

पत्थरों की आयु का कैसे लगता है अनुमान?
पत्थरों की आयु का पता लगाने के लिए पोटेशियम-40, यूरेनियम-235 या थोरियम-232 की डेटिंग कराई जा सकती है। पोटेशियम-40 की आधी आयु 1.3 बिलियन वर्ष, यूरेनियम-235 की आयु 704 वर्ष और थोरियम-232 की आयु 14 अरब वर्ष होती है। इसके अध्ययन से चट्टानों की आयु का अनुमान वैज्ञानिक लगा सकते हैं।

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