हिंदू राजनीतिक दलों को तमाचा! जेल जाते जितेंद्र त्यागी उर्फ वसीम रिजवी ने कहा, ‘मैं अकेला हो गया हूं’ पढ़ें वो पूरा संदेश

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वसीम रिजवी उर्फ जितेंद्र त्यागी जिन्होंने, श्रीराम मंदिर निर्माण में शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष रहते महत्वपूर्ण निर्णय लिया और वर्तमान का हिंदू, अयोध्या के जिस श्रीराम मंदिर का जयघोष कर रहा है, उसमें उनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। उन्होंने, इस सच्चाई को स्वीकारा की अयोध्या श्रीराम मंदिर का गर्भ गृह ही प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली थी। इसके कारण वसीम रिजवी को इस्लामी कट्टरवादी, जिहादी और आतंकियों से क्या नहीं सहना पड़ा। वसीम रिजवी ने अपने ऊपर हो रहे हमलों का डटकर मुकाबला किया और अंत में अपने मन की बात को स्वीकार करते हुए सनातन धर्म में वापसी कर ली। अब उनका नाम जितेंद्र त्यागी है।

जितेंद्र त्यागी ने अपने ऊपर हो रहे हमलों के उत्तर दिये तो उन्हें जेल जाना पड़ा, उन पर हरिद्वार धर्म संसद में हेट स्पीच का आरोप लगा। इस प्रकरण में गिरफ्तार हुए, स्वास्थ्य कारणों से तीन माह के लिए जमानत मिली और अब वे फिर जेल गए। लेकिन, उसके पहले उन्होंने दु:खी मन से एक वीडियो संदेश दिया, जिसमें उन्होंने कहा, मैं अकेला हो गया हूं, पता नहीं कब तक जिंदा रहूं। मुझ पर फिदायीन हमला हो सकता है। हिंदुत्व का दम भरकर राजनीति करनेवाली पार्टियों के लिये यह तमाचे से कम नहीं है।

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हर हर शंभू

हो सकता है कि, मैं किसी फिदायीन हमले में मारा जाऊं, मेरी जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है। हरिद्वार के ज्वालापुर के कुछ अपराधी जेल में आकर मेरी गर्दन काटना चाहते थे, लेकिन जेल की सख्ती से ऐसा नहीं हो पाया। लेकिन, आज भी इस्लामिक कट्टरपंथी आपराधी प्रवृत्ति के लोग हीरो बनने के चक्कर में मेरी गर्दन काटना चाहते हैं। आतंकी संगठन हमला करके मेरी हत्या करना चाहते हैं। खैर, उस चीज से मुझे कोई परवाह नहीं है। अफसोस सिर्फ इस बात का है कि, जब मैं जेल से छूटकर आया तो बहुत से लोगों ने मुझसे फोन पर बात की, उनका प्रश्न था कि, सनातन धर्म में आपको जाकर क्या मिला? मैं समझता हूं जिस वक्त आतंकी गतिविधियों से, इस्लामिक जिहाद से, इस्लाम में बच्चों को दी जा रही कट्टरपंथी शिक्षा से और इस्लामिक क्रूरता से मैं परेशान तो

मुझे वह प्रेम नहीं मिला
1400 साल बाद पता नहीं कितनी नस्लों के बाद हम घर वापस हुए हैं, हमने सनातन धर्म को अपनाया। सनातन धर्म से हम पहले से ही प्रभावित थे। देवी देवताओं और खास करके हिंदू संस्कृति और हिंदू समाज में लोगों के जिस प्रकार से अच्छे विचार थे, तो हमने घर वापसी को सही समझा। आज भी सही समझता हूं, लेकिन थोड़ा सा अफसोस ये हुआ कि, मेरे साथ एक ऐसा रवैया अपनाया गया जैसे की कोई बहुत पुराना रिश्तेदार घर वापस आ जाए और उस परिवार में जितने सदस्य हैं उनमें जो आपसी प्रेम है और जो प्रेम बाहर से आए हुए पुराने रिश्तेदार को दिया जाना चाहिये, पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि, मुझे वह प्रेम मिला।

मरते दम तक सनातन धर्म में ही रहूंगा
मैं, आज यह बात इसलिए कर रहा हूं कि मेरी जिंदगी का ठीक नहीं है। मैं बहुत डिप्रेशन में भी हूं, हो सकता है कि मैं दुश्मनों से मरने के बजाय, मैं ये कर लूं कि मैं अपने जीवन को खुद समाप्त कर लूं। लेकिन, मैं सनातन धर्म में हूं और मरते दम तक सनातन धर्म में ही रहूंगा। बहुत से लोगों ने इस दौर में हमारा साथ भी दिया और बहुत से लोगों ने जो पहले साथ दिये थे वह चले भी गए। बहरहाल, मैं सभी का शुक्रगुजार हूं, सनातन धर्म को जो माननेवाले हैं, वो राजनीतिक फूट का शिकार हैं।

बहुसंख्य समाज को कुचल रहे
कुछ सियासी पार्टी एक विशेष समुदाय के दस से ग्यारह पर्सेंट वोट हासिल करने के लिए, उनके खुश करने के लिए बहुसंख्यक समाज को कुचल रही है, क्योंकि उनको सत्ता प्राप्त करनी है। कुछ अपने मफात के लिए कर रही हैं और कुछ सनातन धर्म में जो आपसी फूट है उसके लिए कर रही हैं। हालांकि, बड़े स्तर पर वह समाप्त हो चुका है। आपसी फूट न होती तो एक हजार साल तक हम गुलाम न होते। हिंदोस्तान की सनातनी संख्या कभी कम नहीं थी। जिस वक्त मंगोल और अफगानिस्तान से लूटने के लिए लोग आए उस समय भी हम बड़ी तादाद में थे। परंतु, उस समय भी हमारे अंदर बहुत बड़ी फूट थी। हमारी लड़कियों को यहां हिदोस्तान से उठाकर ले गए। अफगानिस्तान में एक चौराहा बना हुआ था, जिस पर ‘दुख्तरे हिंद एक दिनार’ लिखा हुआ था। उस पर हम एक फिल्म भी बना रहे हैं और बंगाल में हिंदुओं के साथ जो हो रहा है उस पर भी हम फिल्म बनाने जा रहे हैं।

अफगानिस्तान का ‘दुख्तरे हिंद एक दिनार’
दुख्तरे हिंद यानी हिदुस्तान की बेटी, जिन्हें नंगा करके उस चौराहे पर एक दिनार में बेचा जाता था। हमारे बीच से वो लुटेरे हमारी लड़कियों को उठाकर लेकर जाते थे, लेकिन अफसोस की बात है कि आपसी फूट की वजह से हम खामोश रह जाते थे।

अल्पसंख्यक समाज को हिंदोस्तान में मिली आजादी
आज भी ऐसा ही हो रहा है। हम ये समझते हैं कि, हिंदोस्तान में आजादी के बाद बहुसंख्यक समाज को तो पाकिस्तान में आजादी मिली लेकिन, अल्पसंख्यक समाज को हिंदोस्तान में आजादी मिली। जिसकी वजह से वो कभी भी सनातन धर्म के किसी भी देवी देवताओं के खिलाफ खुलकर चैलेंज करते हैं या गाली देते हैं। अनुच्छेद 19 के अंतर्गत वे समझते हैं कि, उनका यह अधिकार है। ऐसे में कोई भी दूसरा व्यक्ति या हम जैसा कोई व्यक्ति किताब में लिखी बातों को कह देता है, तो उसको ‘हेट स्पीच’ मान लिया जाता है। यह अफसोस की बात है।

सेकुलर होने का अर्थ यह नहीं कि, जुल्म के खिलाफ न बोलें
मैं यह भी कहना चाहता हूं कि, हमारे बच्चों को एक होने की जरूरत है। जब तक हम जाति पांति को भूलकर एकजुट नहीं होंगे, जिहाद जैसी समस्या से हमेशा परेशान रहेंगे। इस्लामिक आतंकवाद पूरी दुनिया में आतंक का सबब बना हुआ है, हिंदोस्तान उससे अछूता नहीं है। आए दिन सनातन धर्म के जो कुछ कमजोर लोग हैं उनकी गर्दनें भी काटने की खबरें आया करती हैं लेकिन, अफसोस की बात है कि कुछ सेकुलर लोग जो हमारे देश में हैं। सेकुलर होने का यह मतलब नहीं है कि, आप किसी जुल्म के खिलाफ आवाज न उठाएं। हम इन्सान हैं और इन्सान से मुहब्बत करते हैं लेकिन, किसी के ऊपर जुल्म हो रहा है तो आवाज जरूर उठानी चाहिए। खासकर किसी अपने पर जुल्म हो रहा है तो आवाज जरूर ही उठानी चाहिये। नहीं तो जालिम की ताकत बढ़ती है और फिर से जुल्म करने की वह जुर्रत करता है। हमको अपनी आवाज उठानी चाहिये कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए।

मुल्लाओं ने प्रोपगेंडा किया
दिल में कुछ बातें थी, मैंने ये सोचा पता नहीं कब तक जिंदा रहूं, आपसे शेयर कर लूं। मैंने एक किताब भी लिखी है, शायद मेरे मरने के बाद व शाया होगी, उसमें बहुत कुछ हमने लिखा है। हमने क्या खोया और क्या पाया। मुल्लाओं ने हमारे खिलाफ प्रोपगेंडा किया, हमारी पीठ पर एक लंबी फेहरिस्त चिपका दी उन, अपराधों की जो अपराध हमने किया ही नहीं। हम शिकार हो चुके थे आतंकी मानसिकता का। जबसे हमने समाज बदलाव की बात की थी, तब से कट्टरपंथी विचार रखनेवाले मुल्ला हमारे खिलाफ हो चुके थे। सरकारी मदद से हमारे खिलाफ पता नहीं पूरे देश में कहां-कहां फर्जी मुकदमे लिखवाए और वो लिखे भी गए। मैं उन गुनाहों में शामिल नहीं हूं लेकिन, फिर भी यह कानून है और हमें अपना पक्ष रखना है।

जिंदू हूं सनातन में, मरूंगा सनातन में ही
जब तक जिंदा हूं सनातन के लिए लड़ूंगा, मेरा सनातन में आने के फैसला बिल्कुल सही था। लोग चाहे कुछ भी कहें कि हमने गलत फैसला लिया, लेकिन सनातनी बड़े अच्छे हैं और मैं जीना भी यहीं चाहता हूं और मरना भी सनातनी बनकर ही चाहता हूं।

शुक्रिया जय श्रीराम

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