पाठ्यक्रम से हटाए गए इकबाल नहीं थे महान, सच्चाई पढ़ दंग हो जाएंगे

‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा...’ जैसा तराना लिखने वाले इकबाल 1910 में ‘तराना-ए-मिल्ली’ नज्म लिखते हैं। ‘चीन-ओ-अरब हमारा हिन्दोस्तां हमारा। मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहां हमारा।’

129
इकबाल

लेख: आर.के. सिन्हा

मोहम्मद इकबाल को दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम से हटा दिया है। इस फैसले का वे सभी स्वागत तो करेंगे ही जिन्होंने इकबाल को करीब से पढ़ा है। आमतौर पर इकबाल को लेकर दो बातें बताकर ही उन्हें अबतक महान बताया जाता रहा है। पहला, यह कि उन्होंने ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा…’ जैसा गीत लिखा। दूसरा, कि उन्होंने ही राम की शान में एक कविता लिखी। पर कभी यह नहीं बताया जाता या आधुनिक भारत के ज्ञानी लोगों को पता नहीं है कि उन्होंने अमृतसर में हुए जलियांवाला बाग नरसंहार पर एक शब्द भी निंदा का नहीं कहा था। हालांकि, वे तब अमृतसर के करीब लाहौर में ही थे। जलियांवाला कांड को याद करके अब भी आम हिंदुस्तानी सहम जाते हैं। उनमें गोरी ब्रिटिश सरकार से बदला लेने की भावना जाग जाती है। जलियांवाला कांड ने भारत के लाखों नौजवानों को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ खड़ा कर दिया था। पर इकबाल निर्विकार भाव से सारी चीजों को देखते रहे थे। पाकिस्तान के चोटी के इतिहासकार डॉ. इश्तिहाक अहमद कहते हैं कि मोहम्मद इकबाल ने जलियांवाला कांड पर चुप्पी साध ली थी। उन्होंने गोरी सरकार के खिलाफ जलियांवाला कांड पर न तब और न ही बाद में कभी कुछ लिखा। जरा सोचिए, कि उस जघन्य नरसंहार को लेकर इतने नामवर शायर की कलम की स्याही सूख गई थी या कुछ और था? वे उन मारे गए मासूमों के चीखने की आवाजों से मर्माहत नहीं हुए थे शायद वे किसी कारण से प्रसन्न ही हुए हों। क्या पता?

जलियावाल बाग नरसंहार पर चुप्पी
जलियांवाला नरसंहार की शुरुआत रोलेट एक्ट के साथ शुरू हुई, जो 1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से तैयार किया गया था। इस एक्ट को जलियांवाला बाग की घटना से करीब एक माह पूर्व 8 मार्च को गोरी सरकार ने पारित किया था। इस अधिनियम को लेकर पंजाब सहित पूरे भारत में भयंकर विरोध शुरू हुआ। विरोध प्रदर्शन के लिए अमृतसर में, जलियांवाला बाग में प्रदर्शनकारी इकट्ठा थे। वे रोलेट एक्ट के खिलाफ शांति से विरोध कर रहे थे। विरोध प्रदर्शन में पुरुष, महिलाओं के साथ बच्चे भी मौजूद थे। तभी जनरल डायर के नेतृत्व में सैनिकों ने जलियांवाला बाग में प्रवेश किया और एकमात्र निकासी द्वार को दुष्टतापूर्वक बंद करवा दिया ताकि कोई भागने तक न पाये। इसके बाद डायर ने सैनिकों को वहां मौजूद निहत्थे लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलाने का आदेश दे दिया था। उसके कुछ ही क्षणों के बाद वहां लाशों के ढेर जमा हो गए थे।

प्राप्त की ब्रिटिशों से ‘सर’ की उपाधि
इकबाल के विपरीत गुरुदेव रविन्द्रनाथ टेगौर ने अपना सर का खिताब ब्रिटिश सरकार को वापस कर दिया था। गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने सर की उपाधि जलियांवाला कांड की घोर निंदा करते हुए लौटाई थी। उन्हें साल 1915 में गोरी सरकार ने ‘नाइट हुड’ की उपाधि दी थी। इसके विपरीत इकबाल ने जलियांवाला नरसंहार कत्लेआम के कुछ सालों के बाद शायद पुरस्कार स्वरूप 1922 में सर की उपाधि ली। शायद अंग्रेजों ने इकबाल को उनकी चुप्पी का इनाम दिया।

ये भी पढ़ें – सोरोस की चेली, राहुल की सहेली? अमेरिका के चर्चा सत्र में ऐसे कैसे चेहरे

मुस्लिम लीग के थे नेता
इकबाल को महान बताने वाले जरा उनके 29 दिसंबर, 1930 को अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के प्रयागराज में हुए सम्मेलन में दिए अध्यक्षीय भाषण को पढ़ लें। तब उनकी आंखें खुल जाएंगी। इकबाल अपनी लंबी तकरीर में पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा राज्यों को और स्वायत्तता देने की मांग करते हैं। ये सभी राज्य मुस्लिम बहुल थे। इनमें मुसलमानों की आबादी 70 फीसद से अधिक थी। वे अपने भाषण में कहीं भी इन राज्यों में रहने वाले अल्पसंख्यकों के पक्ष में कोई मांग नहीं रखते। चर्चा तक नहीं करते, वे मुस्लिम बहुल राज्यों में उन्हीं को अतिरिक्त शक्तियां देने की वकालत करते थे। इन सभी सूबों और पूर्वी बंगाल (बाद में बना पूर्वी पाकिस्तान) की ही वकालत इकबाल ने सदा की है। इकबाल ने एक तरह से पाकिस्तान का ख्वाब 1930 में ही देखना शुरू कर दिया था। हालांकि पाकिस्तान की मांग उनकी मृत्यु के बाद में लाहौर में 23 मार्च, 1940 को मुस्लिम लीग ने पहली दफा की थी।

तराना ए मिल्ली पढ़ें इकबाल के हिमायती
‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा…’ जैसा तराना लिखने वाले इकबाल 1910 में ‘तराना-ए-मिल्ली’ नज्म लिखते हैं। इसमें उनके तेवर बदलते हैं। वे बहुलतावादी भारत के विचार को खारिज करते हैं। ‘तराना-ए-मिल्ली’ की चंद पंक्तियों को पढ़ लीजिए। ‘चीन-ओ-अरब हमारा हिन्दोस्तां हमारा। मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहां हमारा।’ यानी सारे जहां से अच्छा… लिखने वाला शायर रास्ते से भटकता है या अपने दिल की बात जुबान पर ले ही आता है। हैरानी इस बात पर होती है कि देश के सेक्युलरवादी सच को स्वीकार ही नहीं करते। वे इकबाल को उनकी एक रचना के आधार पर ही महान बताते रहते हैं।

राजपाल के हत्यारे के समर्थन में थे इकबाल
दिल्ली विश्वविद्यालय के इकबाल को लेकर लिए गए फैसले से मशहूर हिंद पॉकेट बुक्स को शुरू करने वाले मल्होत्रा परिवार को अवश्य संतोष पहुंचा होगा। इस परिवार ने उपर्युक्त फैसले को मीडिया के माध्यम से पढ़ा भी होगा। मल्होत्रा परिवार का इकबाल से गिला जायज है। दशकों और कई पीढ़ियों के बाद भी उनके मन के किसी कोने में यह बात रहती है कि इकबाल ने उनके साथ इंसाफ नहीं किया था। इकबाल उस शख्स के जनाजे में शामिल हुए थे जिसने मल्होत्रा परिवार के पुराण पुरुष राजपाल का कत्ल किया था। हत्यारे का नाम था इल्मउद्दीन। यह बात एक सदी पहले के लाहौर की है। इल्मउद्दीन ने 1923 में प्रताप प्रकाशन के मालिक राजपाल की नृशंस हत्या कर दी थी। वो राजपाल से नाराज इस बात से था क्योंकि उन्होंने ‘रंगीला रसूल’ नाम से एक किताब प्रकाशित की थी। इसके छपते ही पंजाब में कठमुल्ले भड़क गए थे। उनका कहना था कि लेखक ईशनिंदा का दोषी है। वे लेखक को खोजने लगे। लाहौर में लेखक के खिलाफ आंदोलन चालू हो गये। किताब में लेखक का नाम नहीं था। राजपाल लेखक का नाम “गुप्त” रखना चाहते थे। जब लेखक नहीं मिला तो इल्मउद्दीन ने प्रकाशक राजपाल का ही कत्ल कर डाला। हत्यारे को गिरफ्तार कर लिया गया। बहरहाल, इल्मउद्दीन हीरो बन चुका था। जब उस पर केस चल रहा था उस वक्त इकबाल उसके पक्ष में माहौल बना रहे थे। यानी वो एक हत्यारे के साथ खड़े थे। उनकी गुजारिश पर मुंबई से मोहम्मद अली जिन्ना भी पैरवी करने आए। पर कोर्ट ने इल्मउद्दीन को फांसी की सजा सुनाई थी। उसे 1929 में फांसी के बाद जब लाहौर में दफनाने के लिए लोग कब्रिस्तान में लेकर जा रहे थे तब इकबाल भी थे। ऐसे थे धर्मनिरपेक्ष कठमुल्लों के आदर्श शायर इकबाल!

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.