भारत के इकलौते विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य में 20 जुलाई को आग लग गई, लेकिन जहाज के चालक दल ने अग्निशमन प्रणालियों का उपयोग करके आग पर काबू पा लिया। इस वजह से किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है। घटना की जांच के लिए बोर्ड ऑफ इंक्वायरी के आदेश दे दिए गए हैं। इससे पहले पिछले साल 08 मई को भी इसी युद्धपोत पर आग लगने की घटना हुई थी, उस समय भी ड्यूटी पर तैनात क्रू की त्वरित कार्रवाई से आग पर काबू पा लिया गया था।
नौसेना प्रवक्ता के अनुसार इस वक्त कर्नाटक के कारवार बंदरगाह पर तैनात आईएनएस विक्रमादित्य के एक हिस्से में आज अचानक आग लग गई। समुद्र में परीक्षणों के संचालन के लिए एक योजनाबद्ध उड़ान के दौरान यह हादसा हुआ। ड्यूटी स्टाफ ने उठ रही आग और धुएं को देखने के बाद फायर फाइटिंग ऑपरेशन लांच किया। तत्काल अग्निशमन प्रणालियों का उपयोग करके आग पर काबू पा लिया गया और पोत में सवार सभी कर्मी सुरक्षित हैं। बयान में कहा गया है कि पोत में सवार सभी कर्मियों की गिनती की गई और कोई बड़ा नुकसान नहीं पहुंचा है। नौसेना ने घटना की जांच के लिए बोर्ड ऑफ इंक्वायरी के आदेश दे दिए गए हैं।
पहले भी घट चुकी है ऐसी घटना
इससे पहले पिछले साल 08 मई को भी इसी युद्धपोत पर आग लगने की घटना हुई थी, उस समय भी ड्यूटी पर तैनात क्रू की त्वरित कार्रवाई से आग पर काबू पा लिया गया था। आईएनएस विक्रमादित्य का पुराना नाम एडमिरल गोर्शकोव है। कीव क्लास के इस विमान वाहक पोत को रूस से भारत ने 2.33 अरब डॉलर के सौदे के तहत खरीदा था। इसने 1996 तक सोवियत और रूसी नौसेना में अपनी सेवाएं दी हैं। खास बात है कि तीन फुटबॉल मैदानों के बराबर इस पोत पर कुल 22 डेक हैं और इसमें 1600 कर्मी रह सकते हैं। इस इकलौते विमानवाहक युद्धपोत को 16 नवम्बर, 2013 को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था।
आईएनएस विक्रमादित्य ही इकलौता युद्धपोत
भारतीय नौसेना को अमेरिका से मिलने वाले सभी 24 एमएच-60 रोमियो हेलीकॉप्टर इसी विमान वाहक पोत से संचालित होंगे। इन्हें 2023 या अंत तक नौसेना के बेड़े में शामिल किया जाएगा। भारत के पास फिलहाल आईएनएस विक्रमादित्य ही इकलौता युद्धपोत है। नौसेना का दूसरा विमानवाहक युद्धपोत आईएनएस विक्रांत समुद्री परीक्षण के चारों दौर से गुजर चुका है। भारत का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएसी ‘विक्रांत’ अगले माह ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मनाने के लिए राष्ट्र को सौंप दिया जाएगा। इसी माह के अंत में जहाज की डिलीवरी नौसेना को किये जाने का लक्ष्य रखा गया है।