गुजरात दंगों में सजा काट रहे उन 11 की मुक्ति, गांव में स्वागत

गुजरात में 59 हिंदुओं को जिंदा जलाने के विरोध में दंगे उमटे थे। इसमें आक्रोषित भीड़ ने बड़े स्तर विरोध और तोड़फोड़ की थी। उस काल में राज्य सरकार ने तत्कालीन केंद्र की कांग्रेस सरकार से अतिरिक्त सुरक्षा बल भेजने की भी मांग की थी, परंतु वह उपलब्ध नहीं हुआ।

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गोधरा काण्ड की परिणति में हुए दंगों में बिलकिस बानो प्रकरण भी था। इस प्रकरण में 11 दोषी थे, जो पिछले 18 वर्षों से सजा काट रहे थे। इन्हें अब कारागृह से मुक्ति मिली है। यह मुक्ति 15 वर्षों तक जेल में रहने के बाद गुजरात सरकार की छूट नीति के अंतर्गत मिली है। इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने भी सरकार को निर्देश दिये थे।

मंगलवार का दिन बिलकिस बानो गैंगरेप और उसके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या के दोषियों के लिए बड़ा दिन बनकर आया। इन लोगों को लगभग 18 वर्षों के पश्चात जेल से मुक्ति मिली। अब यह लोग खुले में सांस ले पाएंगे। इस लंबे अंतराल में एक दोषी की मौत हो चुकी है, जबकि कई लोगों के परिवारों में सदस्यों की मौत हो चुकी है। इन सबके बाद इन 11 लोगों ने मुक्ति के बाद यही कहा कि, वे राजनीति का शिकार हुए हैं। उन्हें एक विशेष मानसिकता वाला होने के कारण राजनीति का शिकार बनाया गया।

सिंगोर गांव में खुशी
बिलकिस बानो प्रकरण में सभी दोषी सिंगोर गांव के हैं। जहां सभी का गांव और परिवारजनों ने शांति पूर्ण ढंग से स्वागत किया। इसके पहले गोधरा उप जेल से बाहर निकलने पर परिवारजनों ने मिठाई खिलाई और पैर छुए।

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कारसेवकों को जलाए जाने से हुए दंगे
27 फरवरी, 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस में सवार अयोध्या से लौट रहे कारसेवकों के डिब्बे में आग लगा दी गई थी। इसमें 59 कारसेवक व उनके परिवार के लोग जीवित जल गए थे। इसकी परिणति में दंगे भड़क उठे। उस समय बिलकिस बानो नामक महिला अपने परिवार के साथ गांव छोड़कर दूसरी जगह छिप हुई थी। आरोप लगा था कि, 3 मार्च, 2002 को भीड़ वहां आई, उसने बिलकिस बाने के साथ ज्यादती की और उसके परिवार के 7 लोगों की हत्या कर दी। जबकि बिलकिस के परिवार के 6 अन्य सदस्य भागने में सफल हो गए थे।

विशेष सीबीआई न्यायालय ने दी थी सजा
21 जनवरी, 2008 को मुंबई की विशेष सीबीआई न्यायालय ने 11 लोगों को दोषी पाया था और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इस सजा को बॉम्बे उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, जिसे न्यायालय ने अस्वीकार करते हुए सजा को वैसे ही रखा। दोषियों ने लगभग 18 वर्ष जेल में सजा काटने के बाद धारा 432 और 433 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय में याचिका की थी। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात सरकार को माफी नीति के अंतर्गत विचार करने का निर्देश दिया था।

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