पारंपरिक अदालत प्रणालियों से अलग, विवादों के त्वरित निपटान के लिए भारत सरकार, मौजूदा कानूनों में संशोधन और नए अधिनियमों के माध्यम से वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) तंत्र को बढ़ावा देने तथा मजबूत करने के लिए विभिन्न नीतिगत पहल कर रही है। इसी के एक भाग के रूप में, मध्यस्थता के लिए एक विशेष कानून लाने पर विचार किया गया है।
आवश्यक है कानून बनाना
चूंकि मध्यस्थता संबंधी कानून नियमों और विनियमों समेत कई अधिनियमों में निहित हैं, इसलिए यह आवश्यक समझा गया कि मध्यस्थता पर वर्तमान वैधानिक रूपरेखा को निर्धारित किया जाए और मौजूदा कानूनों में संशोधन के साथ एक व्यापक कानून पेश किया जाए। विधेयक में ‘सुलह’ और ‘मध्यस्थता’ शब्दों को परस्पर एक-दूसरे के स्थान पर उपयोग करने की अंतर्राष्ट्रीय प्रथा पर विचार किया गया है। भारत ने सिंगापुर मध्यस्थता समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं, इसलिए घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता के मुद्दों पर मध्यस्थता पर एक कानून बनाना आवश्यक है।
ये भी पढ़ें – देश के बाल क्रांतिवीरों को सम्मान… वह मांग हुई पूरी
इसलिए तैयार किया विधेयक
तदनुसार, वाणिज्यिक और अन्य विवादों के समाधान के लिए मध्यस्थता विशेषकर संस्थागत मध्यस्थता को बढ़ावा देने, प्रोत्साहित करने और सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से एक मसौदा विधेयक तैयार किया गया है। इसका उद्देश्य घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता समझौता लागू करना, मध्यस्थों के पंजीकरण के लिए एक निकाय बनाना, सामुदायिक मध्यस्थता को प्रोत्साहित करना तथा ऑनलाइन मध्यस्थता को एक स्वीकार्य और लागत प्रभावी प्रक्रिया बनाना है। मध्यस्थता के लिए विवाद से जुड़े अन्य मामलों या आकस्मिक मामलों को भी शामिल किया जा सकता है।
विधेयक की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:-
(क) मसौदा विधेयक मुकदमा-पूर्व मध्यस्थता का प्रस्ताव करता है और साथ ही तत्काल राहत के लिए सक्षम न्यायिक फोरम /अदालतों के समक्ष जाने संबंधी वादियों के हितों की रक्षा भी करता है।
(ख) मध्यस्थता समाधान समझौता (एमएसए) के रूप में मध्यस्थता के सफल परिणाम को कानून द्वारा लागू करने योग्य बनाया गया है। चूंकि मध्यस्थता समाधान समझौता पक्षों के बीच आपसी सहमति के समझौते से बाहर है, इसलिए सीमित आधार पर इसे चुनौती देने की अनुमति दी गई है।
(ग) मध्यस्थता प्रक्रिया, मध्यस्थता की गोपनीयता की रक्षा करती है और कुछ मामलों में इसे प्रकट करने के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करती है।
(घ) 90 दिनों के भीतर राज्य / जिला / तालुक कानूनी प्राधिकरणों के पास मध्यस्थता समाधान समझौते के पंजीकरण की भी सुविधा दी गयी है, ताकि उक्त समाधान के प्रमाणित रिकॉर्ड के रख-रखाव को सुनिश्चित किया जा सके।
(च) भारतीय मध्यस्थता परिषद की स्थापना का प्रावधान।
(छ) सामुदायिक मध्यस्थता की सुविधा।
विधेयक पेश करने से पहले की परामर्श प्रक्रिया के एक भाग के रूप में, लोगों के सुझाव आमंत्रित करने के लिए उपरोक्त मसौदा विधेयक की एक प्रति कानूनी मामलों के विभाग (http://legalaffairs.gov.in/) की वेबसाइट पर अपलोड की गई है।
Join Our WhatsApp Community