21 वर्ष हो गए जब गोधरा में साबरमती ट्रेन की बोगी को जिहादियों ने आग के हवाले कर दिया था। इसमें अयोध्या से लौट रह कारसेवक सवार थे। आग लगाने के पहले उत्पातियों ने ट्रेन पर पथराव किया जिससे बचने के लिए कारसेवकों ने दरवाजे बंद कर लिये थे, इससे आक्रोशित जिहादियों ने बोगी में आग लगा दी। जिसमें पुरुष महिला और बच्चों समेत 59 लोगों को जिंदा अग्नि समाधि मिल गई।
घटना की विवरण
27 फरवरी, 2002 को सुबह साढ़े सात बजे थे। साबरमती एक्सप्रेस अयोध्या से 26 फरवरी को निकली थी और दूसरे देन सुबह गोधरा पहुंची थी। ट्रेन के एस-6 डिब्बे में अयोध्या से लौट रहे कारसेवक बैठे थे। ट्रेन उस दिन चार घंटे देरी से चल रही थी। सूत्रों के अनुसार ट्रेन गोधरा से एक स्टेशन पहले दाहोद पहुंची तो किसी बात पर एक मुस्लिम चायवाले से विवाद हो गया। उसे ट्रेन में चढ़ने नहीं दिया। यहीं से विवाद उठ खड़ा हुआ। यह भी गोधरा कांड के पीछे की कहानियों में से एक कहानी है जिसकी पुष्टि कहीं से नहीं है।
गोधरा से निकलते ही…
इसके बाद ट्रेन गोधरा पहुंची। सुबह का समय था बाहर ठंड थी। राम की नगरी से लौट रहे कारसेवकों में से कई परिवार के साथ थे और सोए हुए थे। ट्रेन स्टेशन से निकलकर एक किलोमीटर दूर पहुंची ही थी कि किसी ने चेन खींच दी और ट्रेन रोक ली। इस बीच ट्रेन के एस-6 और एस-7 बोगी पर पथराव शुरू हो गया था और एस-6 से धुआं उठने लगा। पथराव से बचने के लिए बोगी के अंदर बैठे कारसेवक बाहर निकलने की हिम्मत नहीं कर सके। जबकि दंगाई भीड़ ने बाहर से पेट्रोल डालकर बोगी में आग लगा दी जिसकी चपेट में चार बोगियां आ गईं। बेचारे कारसेवकों को न यही समझा कि क्या हो रहा है और न बाहर निकलने का आवसर मिला। इस भीषण अग्निकांड में 59 कारसेवक जीवित ही आग में भून दिये गए।
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वो साजिश थी…
गोधरा में कारसेवकों को जीवित जलाए जाने की घटना का प्रतिसाद पूरे गुजरात में दिखा। राज्य उद्वेलित हो गया। इस दंगे के शांत होने के बाद इसकी उच्च स्तरीय जांच हुई और मामले की सुनवाई विशेष न्यायालय में हुई। न्यायालय ने भी माना कि यह घटना जघन्य थी। इसके पीछे सोची समझी साजिश थी। इसके दो कारण भी हैं। 1992 में बाबरी ढांचा गिराए जाने के दस साल बाद इस घटना को अंजाम दिया गया। दंगाइयों ने उस बोगी को निशाना बनाया जिसमें कारसेवक बैठे थे।