Harvard University: विदेशी छात्रों को अब हार्वर्ड में नहीं मिलेगा एडमिशन, ट्रंप प्रशासन ने क्यों लिया ऐसा फैसला?

विश्वविद्यालय की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, हर साल 500-800 भारतीय छात्र और विद्वान हार्वर्ड में अध्ययन करते हैं। वर्तमान में, हार्वर्ड विश्वविद्यालय में भारत के 788 छात्र नामांकित हैं।

54

संयुक्त राज्य अमेरिका (America) के बाहर के देशों के युवाओं (Youth) का अब उच्च शिक्षा (Higher Education) के लिए हार्वर्ड विश्वविद्यालय (Harvard University) में पढ़ने का सपना पूरा नहीं हो पाएगा। कुछ समय से चल रहे टकराव के बाद आखिरकार ट्रंप प्रशासन (Trump Administration) ने गुरुवार (22 मई) को हार्वर्ड विश्वविद्यालय की अंतरराष्ट्रीय छात्रों को दाखिला देने की पात्रता को रद्द कर दिया। इससे अमेरिका का सबसे पुराना यह शिक्षण संस्थान (Educational Institutions) सकते में है।

सीएनएन चैनल की खबर के अनुसार, हार्वर्ड विश्वविद्यालय को ट्रंप प्रशासन की नीतिगत मांगों के आगे झुकने से इनकार करने की कड़ी सजा मिली है। अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग ने बयान में कहा, “हार्वर्ड अब विदेशी छात्रों को दाखिला नहीं दे सकता है और मौजूदा विदेशी छात्रों को स्थानांतरित होना होगा या अपनी कानूनी स्थिति खोनी होगी।”

यह भी पढ़ें – MP News: न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश नियुक्त

गृह सुरक्षा सचिव क्रिस्टी नोएम ने अपने विभाग को हार्वर्ड विश्वविद्यालय के छात्र और विनिमय आगंतुक कार्यक्रम प्रमाणन को समाप्त करने का आदेश दिया है। दरअसल गृह सुरक्षा विभाग ने पिछले महीने हार्वर्ड से अनुरोध कर विदेशी छात्रों के आचरण का रिकॉर्ड तलब किया था। हार्वर्ड ने यह रिकार्ड विभाग को सौंपने से इनकार कर दिया था। ट्रंप प्रशासन के फैसले पर यहां के प्रोफेसर्स ने कहा कि हार्वर्ड इस समय अपनी वैचारिक स्वायत्तता के लिए प्रशासन से सीधी लड़ाई लड़ रहा है। उन्होंने चेतावनी दी है कि विदेशी छात्रों के बड़े पैमाने पर पलायन से संस्थान की शैक्षणिक क्षमता को नुकसान पहुंचने का खतरा है।

व्हाइट हाउस ने ट्रंप प्रशासन के फैसले का बचाव करते हुए कहा,”विदेशी छात्रों का नामांकन एक विशेषाधिकार है। वह अधिकार नहीं है। साथ ही हार्वर्ड अपनी महानता खो चुका है। परिसर अमेरिका विरोधी, यहूदी विरोधी और आतंकवाद समर्थक आंदोलनकारियों का अड्डा बन गया है।”

व्हाइट हाउस की प्रवक्ता अबीगैल जैक्सन ने बयान में कहा, ” हार्वर्ड देश के छात्रों पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाली गतिविधियों को बंद नहीं करा पाया है। अब उसे इस ढिलाई की कीमत तो चुकानी ही होगी।”

उल्लेखनीय है कि हार्वर्ड विश्वविद्यालय और ट्रंप प्रशासन के अधिकारी महीनों से टकराव में उलझे हुए हैं। प्रशासन ने विश्वविद्यालय से कई बार कहा कि वह कैंपस प्रोग्रामिंग, नीतियों, भर्ती और प्रवेश प्रक्रिया में बदलाव करे, जिससे कैंपस में यहूदी विरोधी भावना को जड़ से खत्म किया जा सके।प्रशासन का दावा है कि इजराइल-हमास युद्ध पर परिसर में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला थम नहीं सका है। विश्वविद्यालय के नेतृत्व का तर्क है कि उसके छात्रों और कर्मचारियों के दृष्टिकोण का मूल्यांकन संघीय सरकार की भूमिका से बहुत आगे हैं। हार्वर्ड के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन कोई नहीं कर सकता। हार्वर्ड अपनी अकादमिक स्वतंत्रता की रक्षा हर हाल में करेगा।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने ट्रंप प्रशासन की तीखी आलोचना की है। विश्वविद्यालय के प्रवक्ता जेसन न्यूटन ने इस फैसले को गैरकानूनी बताया। उन्होंने बयान में कहा कि विश्वविद्यालय 140 से अधिक देशों से आने वाले छात्रों और विद्वानों की मेजबानी करने के लिए प्रतिबद्ध है। ट्रंप प्रशासन की प्रतिशोधात्मक कार्रवाई हार्वर्ड समुदाय और अमेरिका को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है। उन्होंने कहा कि इस समय विश्वविद्यालय में 9,970 विदेशी छात्र पढ़ रहे हैं। 2024-25 शैक्षणिक वर्ष में 6,793 अंतरराष्ट्रीय छात्रों का नामांकन हुआ है।

देखें यह वीडियो – 

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.