मुंबई के दहिसर में आरक्षित भूखंड खरीदी में घोटाले का आरोप लगाया जा रहा है लेकिन इस भूखंड खरीदी का पहला प्रस्ताव 17 अक्टूबर 2011 को ही मंजूर किया गया था। उस समय जमीन का अनुमानित मूल्य मात्र 67 करोड़ 27 लाख 31 हजार रुपए था। लेकिन महानगरपालिका के नियम के अनुसार जिलाधिकारी कार्यालय के अधिग्रहण अधिकारी ने इस जमीन का फिर से मूल्यांकन किया और बाजार भाव के हिसाब से इसकी कीमत 127 करोड़ रुपए आंकी। इस तरह 127 करोड़ और 8 वर्षों का इसका 12 प्रतिशत ब्याज 93 करोड़ 97 लाख मिलाकर इसका कुल मूल्य 336 करोड़ रुपए हो गया।
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खास बातें
- खेल के मैदान, उद्यान, हॉस्पिटल, प्रसूति गृह और दवाखाना ताथ रास्ते के लिए आरक्षित इस भूखंड का क्षेत्रफल 32 हजार 394 वर्ग मीटर है। इस भूखंड की खरीदी के भूखंड के मालिक निपल्स रियल्टिज एलएलपी ने 27 दिसंबर को बीएमसी को 2010 को खरीदी की सूचना दी थी। इसके बाद सुधार समिति और मनपा की मंजूरी मिलने के बाद इसके अधिग्रहण करने की कार्रवाई शुरू कर दी गई।
- इस जमीन को कब्जे में लेने की कार्रवाई शुरू करने के बाद मनपा ने 2014 में इसके लिए 54 करोड़ 52 लाख 92 हजार रुपए जमीन अधिग्रग्रहण विभाग के उपजिलाधिकारी के पास जमा कराया।
- पैसे जमा करने के बाद इस भूखंड का संयुक्त भूमापन किया गया। इस समय इसकी कीमत दुगुनी हो गई।
- अधिकारी ने फिर इसका मूल्यांकन किया और एलआरआर अक्टूबर 2013 के अनुसार 2018 में इस जगह की कीमत 88 करोड़ 50 लाख हो गई।
- 1 अप्रैल 2019 में उपजिलाधिकारी ने मनपा को सूचना देकर इसकी कीमत 336 करोड़ रुपए बताते हुए रकम फौरन जमा करने को कहा।
- 11 अगस्त 2019 को आयुक्त के कार्यालय में हुई बैठक में तत्कालीन मनपा आयुक्त प्रवीणसिंह परदेसी ने इस भूखंड को अतिक्रमण की जमीन बताते हुए आगे की प्रक्रिया रोकने का आदेश दिया।
- इस बीच जमीन मालिकों ने इसकी कीमत बढ़ाकर देने की मांग की है। इस प्रकरण में मनपा ने अपन पक्ष रखने के लिए वकील नियुक्त किया है।
- धनंजय मुंडे ने 17 जुलाई 2018 को विधानमंडल में इस पर आपत्ति का मुद्दा उठाया था।
- प्रवीण दरेकर ने भी 8 जुलाई 2020 को इस पर विधानमंडल में अपनी आपत्ति जताई थी।
Join Our WhatsApp Communityसर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध लाया गया प्रस्ताव खारिज
दहिसर भूखंड खरीदी के 23 दिसंबर 2011 के निर्णय को मनपा प्रशासन की ओर से रद्द करने का प्रस्ताव 23 अगस्त 2020 को सुधार समिति के समक्ष रखा गया। इसमें विधि विभाग की राय ली गई। यह प्रस्ताव 11 जनवरी 2011 के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध था। सुधार समिति ने सहमति से भूखंड अधिग्रहण का निर्णय लिया।सदा परब, सुधार समिति अध्यक्ष