भूखंड खरीदी में किसका भ्रष्ट ‘आचार’?

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मुंबई के दहिसर में अतिक्रमण की जमीन को अजमेरा डेवलपर्स से 900 करोड़ रुपए में बीएमसी द्वारा खरीदे जाने का मुद्दा बीजेपी ने बहुत ही आक्रामक तरीके से उठाया है। पार्टी के नेता और पूर्व सांसद किरीट सोमैया ने इस मुद्दे को लेकर शिवसेना तथा सीएम उद्धव ठाकरे को टार्गेट किया है। लेकिन इस मामले में नया खुलासा हुआ है। इस आरक्षित जमीन को खरीदने का प्रस्ताव 17 अक्टूबर 2011 को सुधार समिति ने मंजूर किया था। उस समय इस समिति के अध्यक्ष भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता और महानगरपालिका के प्रभारी भालचंद शिरसाट थे।

127 करोड़ के भूखंड की कीमत बढ़कर हो गई 336 करोड़

  • सुधार समिति और महानगरपालिका द्वारा जमीन की खरीदी की मंजूरी मिलने के बाद तीन वर्षों में इसके लिए 54 करोड़ 52 लाख 92 हजार रुपए जिलाधाकारी के अधिग्रहण विभाग के पास जमा किया गया।
  • 1 अप्रैल 2011 को जमीन की कुल कीमत 127 करोड़ 83 लाख 59 हजार रुपए, 100 प्रतिशत भरपाई और 93 करोड़ 87 लाख 893 रुपए 12 प्रतिशत के हिसाब से ब्याज को मिलाकर यह रकम 336 करोड़ रुपए जमा करने की सूचना दी गई थी।
  • खास बात यह है कि इस जमीन को कब्जा में लेने के लिए प्रशासन ने अब तक इसके डेवलपर को 349 करोड़ रुपए दे दिए हैं। इस मामले में बड़े पैमाने पर घोटाला किए जाने की बात कही जा रही है। बीजेपी ने इसके लिए उद्धव सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।

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भ्रष्टाचार के कारण बढ़ी कीमत
तत्कालीन सुधार समिति अध्यक्ष भालचंद्र शिरसाट ने संपर्क करने पर कहा कि अगर उस समय यह प्रस्ताव मंजूर नहीं किया गया होता तो इसका आरक्षण रद्द हो जाता। जब भूखंड के प्रस्ताव को मंजूर किया गया था, तो उस समय इसकी कीमत काफी कम थी। इसमें डेवलपर को 22 करोड़ और कुछ करोड़ भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया तथा रहिवासियों के पुनर्वसन के लिए खर्च आनेवाला था।

ऐसे बढ़ी कीमत
शिरसाट का दावा है कि इस भूखंड को कब्जे में नहीं लेने के लिए दबाव आ रहा था। इसका कारण यह था कि इस जगह पर एसआरए योजना लागू होने पर डेवलपर को तीन से चार सौ करोड़ रुपए का फायदा हो सकता था। अगर इसकी मंजूरी के समय इस भूखंड का अधिग्रहण किया जाता तो आज 349 करोड़ रुपए खर्च नहीं आता और इसका मालिक 900 करोड़ नहीं मांगता।

भ्रष्टाचार के कारण बढ़ी कीमत
शिरसाट का कहना है कि हमारे निर्रणय में कोई गल्ती नहीं हुई, बल्कि उस निर्णय पर अमल करने में देरी हुई। उन्होंने कहा कि जमीन खरीदी की मंजूरी के बाद सुधार समिति और मनपा का अधिकार समाप्त हो जाता है। इसके बाद राज्य सरकार के अधिकार में जमीन अधिग्रहण का काम शुरु होता है। हमने जब इसकी खरीदी को मंजूरी दी थी, उसके बाद से इसकी कीमत में बढ़ी रकम भ्रष्टाचार का नतीजा है। इसका हमें विरोध है। इसी को लेकर बीजेपी की लड़ाई है।

 

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