ऑनलाइन शिक्षा का यह है सच!

सर्वेक्षण रिपोर्ट कहती है, "अधिकांश माता-पिता महसूस करते हैं कि लॉकडाउन के दौरान उनके बच्चे की पढ़ने- लिखने की क्षमता कम हो गई है।"

120

कोरोना महामारी का असर हमारे जीवन के हर क्षेत्र पर पड़ रहा है, लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रभाव बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर देखा जा रहा है। एक नए सर्वेक्षण के अनुसार, महामारी में स्कूल बंद होने से ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 8 प्रतिशत विद्यार्थी नियमित रूप से ऑनलाइन अध्ययन करते हैं, जबकि 37 प्रतिशत बिल्कुल भी अध्ययन नहीं करते हैं।

साथ ही, महामारी के कारण होने वाले वित्तीय परिणाम परेशानी से विद्यार्थियों का निजी स्कूलों से पलायन शुरू हो गया है। निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में से एक चौथाई से अधिक बच्चों ने 17 महीने के लंबे स्कूल लॉकडाउन के दौरान या तो परिवार की आय कम होने के कारण या ऑनलाइन शिक्षा में आ रही दिक्कतों की वजह से निजी स्कूलों से सरकारी स्कूलों में शिफ्ट कर लिया है।

इन प्रदेशों में किया गया सर्वे
अर्थशास्त्री जीन द्रेजे, रीतिका खेरा और शोधकर्ता विपुल पैकरा की देखरेख में किए गए एक सर्वेक्षण में 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों असम, बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, झारखंड, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में यह सर्वे किया गया। इस सर्वे में कक्षा 1 से 8 तक के 1,400 विद्यार्थियों को शामिल किया गया।

ऑनलाइन शिक्षा की पहुच सीमित
इस साल अगस्त में किया गया यह सर्वेक्षण ग्रामीण बस्तियों और शहरी इलाकों के 1,400 घरों के साक्षात्कार पर आधारित हैं। इनमें ज्यादातर ऐसे बच्चे शामिल थे, जो सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वे में 60 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र के दलित और आदिवासी बच्चे और उनके परिवारों को शामिल किया गया। सर्वेक्षण यह स्पष्ट करता है कि ऑनलाइन शिक्षा की पहुंच “बहुत सीमित” है। 24 प्रतिशत शहरी छात्र नियमित रूप से ऑनलाइन अध्ययन कर रहे हैं, जबकि ग्रामीण छात्रों के लिए यह आंकड़ा केवल 8 प्रतिशत है।

ये भी पढ़ेंः न काम, न कमाई… एमएमआरडीए ने ऐसे करोड़ो रुपए उड़ाए

आ रही हैं कई समस्याएं
ऑनलाइन शिक्षा की सीमित पहुंच के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि कई परिवारों के पास स्मार्टफोन नहीं है।स्मार्टफोन वाले घरों में भी, ऑनलाइन सीखने के संसाधनों तक पहुंचने वाले बच्चों का अनुपात शहरी क्षेत्रों में सिर्फ 31 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 15 प्रतिशत है। ऐसा मुख्य रूप से इसलिए है क्योंकि स्मार्टफ़ोन अक्सर कामकाजी वयस्कों द्वारा उपयोग किए जाते हैं, और स्कूली बच्चों, विशेष रूप से छोटे भाई-बहनों के लिए उपलब्ध हो भी सकते हैं और नहीं भी। विशेष रूप से गांवों में एक और समस्या यह है कि स्कूल ऑनलाइन अध्ययन सामग्री नहीं भेज रहे थे या माता-पिता को इसकी जानकारी नहीं थी।

निजी स्कूलों से बच्चों का पलायन
सर्वेक्षण में शामिल 1,400 बच्चों में से, लगभग पांचवां हिस्सा निजी स्कूलों में पढ़ रहा था। सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि एक चौथाई बच्चे जो शुरू में निजी स्कूलों में नामांकित थे, अगस्त 2021 तक सरकारी स्कूलों में चले गए थे। यह संख्या अधिक हो सकती है क्योंकि कई माता-पिता वर्तमान में “स्थानांतरण प्रमाण पत्र” लेने से पहले सभी बकाया राशि का भुगतान करने के लिए निजी स्कूलों की शर्त को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

शिक्षा नीति में बदलाव जरुरी
रिपोर्ट कहती है, “अधिकांश माता-पिता महसूस करते हैं कि लॉकडाउन के दौरान उनके बच्चे की पढ़ने- लिखने की क्षमता कम हो गई है।” रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चों के इस तरह की समस्या के समाधान के लिए शिक्षा नीति में बड़े बदलाव की आवश्यकता है।

Join Our WhatsApp Community
Get The Latest News!
Don’t miss our top stories and need-to-know news everyday in your inbox.