क्या दिल्ली सरकार का वह विभाग था जासूसी विभाग? सीबीआई ने ‘आप’ सरकार के ‘नंबर टू’ समेत कई अधिकारियों को लपेटा

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सीबीआई की (भ्रष्टाचार निरोधक शाखा) ने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया समेत सात लोगों पर प्राथमिकी दर्ज कराई है। इन लोगों पर जासूसी का आरोप लगा है। सिसोदिया के साथ जिन अन्य लोगों पर आरोप लगे हैं, वह बड़े सरकारी अधिकारी रहे हैं। न्यायिक हिरासत में बंद मनीष सिसोदिया की दिक्कत इससे बढ़ सकती है।

सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (सीबीआई) के निरीक्षक विजय ए.देसाई ने 9 मार्च को एक लिखित शिकायत दी थी। इस प्राथमिकी में दिल्ली के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, दिल्ली सरकार में तत्कालीन सचिव सतर्कता सुकेश कुमार जैन, सीआईएसएफ के सेवानिवृत्त डीआईजी राकेश कुमार सिन्हा- मुख्यमंत्री के तत्कालीन विशेष सलाहकार और संयुक्त निदेशक (एफबीयू), प्रदीप कुमार पुंज- इंटेलिजेंस ब्यूरो के सेवानिवृत्त संयुक्त उप निदेशक व तत्कालीन उप निदेशक (एफबीयू), सतीश खेत्रपाल- सीआईएसएफ के सेवानिवृत्त सहायक कमांडेंट व फीड बैक ऑफिसर के रूप में कार्यरत, गोपाल मोहन -दिल्ली के मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार विरोधी सलाहकार और अन्य अज्ञात का नाम दर्ज किया गया है।

शिकायतकर्ता सीबीआई आधिकारी ने अपने पत्र में आरोप लगाया है कि, जांच से पता चला है कि फेसबुक यूनिट (एफबीयू) ने अनिवार्य जानकारी एकत्र करने के साथ-साथ राजनीतिक खुफिया जानकारी भी एकत्र की, जो कुल रिपोर्ट की लगभग 40 प्रतिशत थी, जो इस यूनिट के परिधि के बाहर की थी। जांच में यह भी पता चला है कि सिसोदिया ने 22 अप्रैल, 2016 को पी.के पुंज द्वारा पेश किए गए एक नोट पर एफबीयू के लिए विशेष भत्ते के लिए मंजूरी दी थी, जिससे सरकारी खजाने पर लगभग 36 लाख रुपये का बोझ पड़ा था।

सीबीआई की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट
सीबीआई द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी में निरीक्षक देसाई ने कहा कि उपराज्यपाल, दिल्ली के आदेश के आधार पर, के.सी मीणा -उप सचिव (सतर्कता) सतर्कता निदेशालय, दिल्ली सचिवालय से एक लिखित शिकायत प्राप्त हुई थी। “इस शिकायत के आधार पर, सीबीआई ने 2 दिसंबर, 2016 को एक प्रारंभिक जांच की थी। इस जांच में पता चला कि एफबीयू के गठन की मंजूरी 20 सितंबर, 2015 को कैबिनेट के निर्णय संख्या 2217 के अंतर्गत दी गई थी, इसे टेबल्ड आईटम के रूप में दिल्ली के मुख्यमंत्री ने मंजूरी दी थी।

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एफबीयू का काम दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में विभिन्न विभागों/स्वायत्त निकायों/संस्थाओं/इकाइयों आदि के कामकाज के बारे में प्रासंगिक जानकारी और कार्रवाई योग्य प्रतिक्रिया एकत्र करना और ट्रैप के अंतर्गत कार्रवाई करना था। तदनुसार, सचिव (सतर्कता) को एफबीयू की स्थापना के लिए एक विस्तृत प्रस्ताव प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था। एफबीयू के लिए सृजित किए जा रहे पदों को शुरू में सेवारत और साथ ही सेवानिवृत्त कर्मियों द्वारा संचालित करने का प्रस्ताव था। बाद में, सचिव (सतर्कता) ने एफबीयू की स्थापना के लिए एक विस्तृत प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसे 28 अक्टूबर, 2015 को मुख्यमंत्री द्वारा अनुमोदित किया गया था और दिल्ली के मुख्यमंत्री के अनुमोदन के अनुसार, एफबीयू को सचिव (सतर्कता) को रिपोर्ट करने के लिए कहा गया था।

आरोप है कि सुकेश जैन जानबूझकर एफबीयू में 20 पदों के सृजन के प्रस्ताव को प्रशासनिक सुधार विभाग के पास भेजने से टालते रहे। इसके बाद जैन के प्रस्ताव के आधार पर ही, सिसोदिया ने एफबीयू में 20 पदों की मंजूरी दी, जो भ्रष्टाचार विरोधी शाखा में सृजित 88 पदों के सामने था। इन 88 पदों को 1 अप्रैल, 2015 को कैबिनेट के निर्णय संख्या क्र. 2137 में मंजरी दी गई थी। हालांकि, प्रशासनिक सुधार विभाग ने इन 88 पदों के सृजन के लिए केवल अस्थायी रूप से सहमति व्यक्त की थी, इसके लिए विस्तृत अध्ययन को कहा गया था।

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