केरल की ‘अभया’ को 28 साल बाद मिला न्याय!

कोट्टयम के पायस कॉन्वेन्ट में रहनेवाली 19 वर्षीय कक्षा 12वीं का छात्रा नन अभया की लाश 27 मार्च 1992 को कूंए में मिली थी। इस मामले की जांच के दौरान क्राइम ब्रांच और बाद में सीबीआई ने इस मामले को आत्महत्या मानने से इन्कार कर दिया था। अब हत्या के 28 साल बाद इस मामले में फैसला आया है।

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केरल में हुई नन अभया की हत्या मामले में पादरी और एक नन को दोषी करार दिया गया है। हत्या के 28 साल बाद इस मामले में फैसला सुनाया गया है। विशेष सीबीआई न्यायालय ने इस मामले में सजा सुनाते हुए पादरी को दोहरे आजीवन कारावास तथा अपराध में सहायक नन को भी आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इस मामले को सीबीआई ने आत्महत्या मानने से इन्कार कर दिया था।

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कोट्टयम के पायस कॉन्वेन्ट में रहनेवाली 19 वर्षीय कक्षा 12वीं का छात्रा नन अभया की लाश 27 मार्च 1992 को कूंए में मिली थी। इस मामले की जांच के दौरान सीबीआई ने इस मामले को आत्महत्या मानने से इन्कार कर दिया था। अब हत्या के 28 साल बाद इस मामले में फैसला आया है। इस मामले में पादरी थॉमस कोटूर और नन सेफी को हत्या (धारा 302), अवैध तरीके से प्रवेश (धारा 449), सबूत मिटाने (धारा 201) समेत अन्य धाराओं के अंतर्गत दोषी पाया गया था। इसमें पादरी थॉमस को 28 वर्ष के आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है।

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ये है घटनाक्रम…

  • 27 मार्च 1992 को अभया ने पादरी कोटूर और नन सेफी को आपत्तिजनक परिस्थिति में देख लिया। जिसके बाद इस मामले में सम्मिलित तीन लोगों ने मिलकर उस रात अभया की कुल्हाड़ी से मारकर हत्या कर दी। अगली सुबह 19 वर्षीय कक्षा 12वीं की छात्रा और नन अभया की लाश कूंए में मिली। उस समय अभया संत पायस कॉन्वेन्ट, कोट्टयम में रहती थी। इस मामले की जांच करते हुए स्थानीय पुलिस और क्राइम ब्रांच ने डूबने से मौत बताकर मामले की जांच खत्म कर दी थी।
  • 1993 में इस मामले में एक सामाजिक कार्यकर्ता जोमोन पुथेनपुरक्कल ने एक्शन कमेटी बनाकर इसे कोर्ट में चुनौती दी। उनकी याचिका पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने मामले की पुनर्जांच का आदेश दिया। जिसके बाद मामला सीबीआई को सौंपा गया।
  • सीबीआई अधिकारियों ने इस मामले की जांच करते हुए तीन लोगों को गिरफ्तार किया था। जिसमें कोट्टयम कॉलेज के पूर्व मलयालम प्रोफेसर पूथरीक्कयिल, कोट्टयम कैथोलिक चर्च के डायोशेसन चांसलर पादरी कोटूर और नन सेफी का समावेश था। अभया कोट्टयम कॉलेज में ही पढ़ती थी।
  • 19 नवंबर 2008 को सीबीआई ने अभया के मौत की गुत्थी को सुलझा लिया। इस मामले के तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया।
  • 1 जनवरी 2009 को तीनों अभियुक्तों को जमानत मिल गई।

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ऐसे खुला मामला…

बता दें कि इस मामले में 177 गवाह थे। जिनमें से कई की तो इन 28 वर्षों में मौत हो गई थी। इस बीच बेटी की हत्या के मामले में इंसाफ की आस लगाए नन अभया के पिता थोमस और मां लीलम्मा की भी मौत हो गई। लेकिन इस मामले को इंसाफ तक पहुंचाने में एक चोर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

चोर के ईमान ने दिलाया इंसाफ..

28 साल चले मामले में बहुत से गवाह मुकर गए थे। लेकिन छोटी चोरी की घटनाओं को अंजाम देनेवाला एक शख्स अंत तक नहीं मुकरा। घटनावाले दिन वो संत पायस कॉन्वेन्ट में चोरी के उद्देश्य से प्रवेश किया था। इस बीच उसने तीन लोगों को हत्या की साजिश को अंजाम देते देख लिया। उसकी यही गवाही मामले को उजागर करने और फैसले तक पहुंचाने में मददगार साबित हुई।

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