आतंकवादियों के हमले में एक हफ्ते में दो बिहारी मजदूरों की हत्या किए जाने को लेकर कश्मीर से लेकर बिहार तक शोक की लहर है। इससे डरे हुए बिहारी मजदूर अब घाटी छोड़कर बिहार अपने गांव-घर लौटने की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन कई लोगो के वेतन फंसे हुए हैं। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि करें तो क्या करें।
10 अक्टूबर को भागलपुर के वीरेंद्र पासवान और उसके बाद 16 अक्टूबर को बांका जिले के अरविंद कुमार की हत्या किए जाने के बाद घाटी के बिहारी मजदूर बहत डरे हुए हैं। उन्हें खुद को निशाना बनाए जाने का डर सता रहा है।
घाटी में हैं बिहार के इन क्षेत्रों के मजदूर
अरविंद के गृह जिले बांका के कई लोग वर्षों से घाटी में रहकर अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ करते हैं। लेकिन अब बिहारी मजदूरों को निशाना बनाए जाने के बाद वे अपने गांव लौटना चाहते हैं। बांका के साथ ही कोसी और सीमांचल तथा पूर्व बिहार के अन्य जिलों के लोग भी घाटी को छोड़ने का मन बना चुके हैं। घाटी में बिगड़ते हालात ने इन सबके मन में डर पैदा कर दिया है। लेकिन कई मजदूरों के वेतन फंसे होने के कारण उनके सामने गंभीर समस्या पैदा हो गई है।
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हिंदू ही नहीं, मुसलान मजदूर भी लौटना चाहते हैं बिहार
कश्मीर घाटी छोड़ने की तैयारी कर चुके बिहारी श्रमिकों में हिंदू ही नहीं, मुसलमान भी शामिल हैं। घाटी में सबसे ज्यादा बिहारी मजदूर अररिया, किशनगंज और पुर्णिया के रहनेवाले हैं। ये सभी वहां काम की तलाश में गए हुए हैं। बताया जाता है कि छह महीने के लिए कोसी और सीमांचल से हजारों की संख्या में मजदूर काम करने जम्मू-कश्मीर जाते हैं। इनमें कई मजदूर वेतन बाकी होने को लेकर फंस गए हैं। इन्होंने कई महीनों तक वहां काम किया है लेकिन पैसे मिलने बाकी हैं। अब डर के कारण ये घाटी छोड़ने पर मजबूर हैं। लॉकडाउन के कारण पहले से ही परेशान घाटी के बिहारी मजदूरों की मुश्किलें अब और बढ़ गई हैं।